भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास|History of demonetization in India

विमुद्रीकरण

नोटबन्दी या विमुद्रीकरण (Demonetization) एक आर्थिक प्रक्रिया है, जिसमें सरकार प्रचलित मुद्रा को कानूनी तौर पर बन्द कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है। यह प्रक्रिया सिक्कों के लिए भी लागू होती है। पुराने नोटों या सिक्कों के बदले नए नोट या सिक्के बाजार में लाए जाते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती है। वह अवैध हो जाती है। सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है, ताकि वे अमान्य हो चुके अपने पुराने नोटों को बदल सके।

भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास

भ्रष्टाचार, काला धन, नंकली नोट, महँगाई या आतंकवादी गतिविधियों पर नियन्त्रण हेतु विमुद्रीकरण का उपयोग किया जाता है। भारत में कई बार सिक्कों और नोट की नोटबन्दी हुई है।

भारत में पहली बार वर्ष 1964 में रु500, 1000 और 10,000 हजार के नोटों को बन्द करने का फैसला लिया गया था। 1970 के दशक में भी प्रत्यक्ष कर की जाँच से जुड़ी वांचू कमेटी ने विमुद्रीकरण का सुझाव दिया था, लेकिन सुझाव सार्वजनिक हो गया, जिसके चलते नोटबन्दी नहीं हो पाई। जनवरी, 1978 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार ने एक कानून बनाकर रु1000, 5000 और 10,000 के नोट बन्द कर दिए थे, जबकि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल ने इस नोटबन्दी का विरोध किया था।

कई बार सरकार पुराने नोटों को एकदम बन्द करने के बदले धीरे-धीरे बन्द कर देती है। वर्ष 2005 में मनमोहन सिंह की कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने वर्ष 2005 से पहले के 500/ के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। 8 नवम्बर, 2016 को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देश में रु1000 और 500 के नोट बन्द करने अर्थात् विमुद्रीकरण की घोषणा की। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सरकार की इस घोषणा का समर्थन किया। उन्होंने बताया कि सभी मूल्यवर्ग के नोटों की आपूर्ति में वर्ष 2011 और 2016 के बीच में 20% की वृद्धि हुई थी। 500 व 1000 के जाली नोट को आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया था। इसी के परिणामस्वरूप नोटों को समाप्त करने का निर्णय किया गया था। इसके बाद सरकार रु500 और 2000 हजार के नए नोट बाजार में लेकर आई।

विमुद्रीकरण के कारण

सामान्यतः जब किसी भी अर्थव्यवस्था में काले धन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, तो वहाँ एक समानान्तर अर्थव्यवस्था का संचलन होने लगता है जिससे सरकार द्वारा जन-कल्याण हेतु अपनाई जाने वाली नीतियों का प्रभावी परिणाम कम होने लगता है और धीरे-धीरे निष्प्रभावी हो जाता है।

इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार, अवैध आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ने लगती है। अतएव इन सभी से निपटने हेतु सरकार द्वारा विमुद्रीकरण का सहारा लिया जाता है। साथ ही अर्थव्यवस्था में नकली नोटों के प्रचलन में एक स्तर से अधिक वृद्धि हो जाने पर विमुद्रीकरण की नीति को अपनाना अपरिहार्य हो जाता है। काले धन एवं नकली नोटों में वृद्धि हो जाने पर कई प्रकार की गतिविधियों, जैसे- आतंकवाद व उग्रवाद में वृद्धि होने लगती है।

भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास|History of demonetization in India

विमुद्रीकरण के लाभ

विमुद्रीकरण का सबसे प्रमुख लाभ सरकार के कार राजस्व की वृद्धि के रूप में सामने आया तथा विमुद्रीकरण के बाद अघोषित आय पर लगाए गए टैक्स और जुर्माने से सरकारी खजाने में बड़ी राशि आ गई। विमुद्रीकरण से एक और आतंकवादियों को होने वाली गैर-कानूनी फण्डिग पर रोक लगाने में सफलता हासिल की गई है। सीमा पार हो रहे नकली नोट के कारोबार पर भी अंकुश लगा है। इसके अतिरिक्त इससे मुद्रा परिवर्तन के तहत लोगों द्वारा छुपाई जाने वाली आय सम्बन्धित जानकारी भी प्राप्त हुई है, जिससे कर आधार में वृद्धि हो सकती है।

विमुद्रीकरण के द्वारा देश कैशलेस हस्तान्तरण की ओर अग्रसर हुआ। विश्व बैंक का कहना है कि कैशलेस अर्थव्यवस्था से अधिक-से-अधिक पारदर्शिता आएगी, साथ ही कैशलेस से मौद्रिक लेन-देन में भी आसानी व सुविधा का मार्ग प्रशस्त हुआ है। विश्व विमुद्रीकरण से रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र का जनता के पक्ष में सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सम्पत्तियों के दाम कम होने से लोगों को घर खरीदने में सुविधा हुई है। विमुद्रीकरण द्वारा लोगों ने ऑनलाइन बाजार से प्लास्टिक मुद्रा पर विश्वास करना प्रारम्भ कर दिया। इसे अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भी अच्छा माना गया है।

विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि अब लोग डिजिटल लेनदेन करने लगे हैं। नकद रहित लेनदेन में तेजी आई है अर्थात् अब हमारा देश डिजिटल इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहा है और यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार रोकने में काफी सहायक होगी।

देश की अर्थव्यवस्था के लिए उठाया गया विमुद्रीकरण का कदम एक सफल प्रयास है। विमुद्रीकरण से बचत व निवेश पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आने से व्यावासय में सुगमता आ गई और निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास बढ़ गया है। विमुद्रीकरण के बाद टैक्स कलेक्शन में 14.5% की बढ़ोतरी हो चुकी है। सरकार के हिस्से में आई रकम से सरकार और लोक कल्याणकारी योजनाओं का दायरा बढ़ा है और पहले से चली आ रही योजनाओं के बजट में भी वृद्धि हुई है।

भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास|History of demonetization in India

विमुद्रीकरण का नकारत्मक पक्ष

भारत में विमुद्रीकरण होने से जनता को कई परेशानियों का समाना करना पड़ा। देश को मुद्रामुक्त बनाने के इस प्रयास के लिए लोगों को अपने नोट बैंक में जमा कराने के लिए लम्बी लाइनों में लगना पड़ा। बैंक कर्मचारियों को अत्याधिक दबाव के कारण तनाव से गुजरना पड़ा। विमुद्रीकरण ने आर्थिक विकास को बहुत प्रभावित किया। ऐसी आशा की जा रही थी कि आरबीआई द्वारा नीतिगत द्वारों में परिवर्तन करने से अर्थव्यवस्था को व्यापक लाभ होगा, किन्तु ऐसा नहीं हुआ।

विमुद्रीकरण ने ग्रामीण जीवन को अत्याधिक प्रभावित किया। भारतीय मजदूर संघ संगठन का कहना है कि 25,000 असंगठित क्षेत्र से जुड़ी आर्थिक इकाइयों बन्द हो गईं। रियल एस्टेट क्षेत्र से हजारों मजदूर बेरोजगार हो गए। कृषि जो कि नकद अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं, 80% नकदी वापस बैंकों में आ जाने से बुरी तरह प्रभावित हुई। नकद पर आधारित खपत समाप्त हो जाने से बहुत सारे दैनिक उत्पाद सम्बन्धी उद्योग बूरी तरह चरमरा गए इससे बाजार पर मन्दी की मार पड़ी तथा जीडीपी तत्कालिक तौर पर 0.5% तक गिर गई।

विमुद्रीकरण के दौरान मुद्रा बदलने की जो प्रक्रिया अपनाई जानी थी, उसे लेकर समुचित जानकारी हर जगह नहीं पहुँच पाई, जबकि सूचना के अधिकार के तहत सरकार को महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाते समय उनसे सन्दर्भित सभी तथ्यों को समुचित रूप से प्रकाशित करना होता है और इससे प्रभावित होने वाले लोगों को इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी देनी होती है। लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विमुद्रीकरण को लेकर आरबीआई के दिशा निर्देश सही ढंग से नहीं पहुँच सके, जो दुर्भाग्यपूर्ण था। नोट बदलने की प्रक्रिया में 100 लोगों की मृत्यु हो गई एवं लोगों को इलाज करवाने व शादी-विवाह जैसे सामाजिक कार्यों के लिए बहुत कठिनाई उठानी पड़ी। विमुद्रीकरण कैशलेस अर्थव्यवस्था की बात करता है, जिसके लिए इण्टरनेट एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवश्यकता होती है। गाँवों में अभी भी शिक्षा और बिजली की कमी है। इसलिए इस उपकरण का उपयोग करने में कठिनाई थी, जिससे ग्रामीण आबादी परेशान थी।

भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास|History of demonetization in India

विमुद्रीकरण के दौर में देश के पर्यटन उद्योग को बड़ा धक्का लगा है। इस दौरान देश में स्थायी मुद्रा की कमी से विदेशी पर्यटकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भारत में पर्यटन उद्योग में मन्दी आ गई। उद्योग संगठन Associated Chambers of Commerce and Industry of India (ASSOCHAM) के सर्वेक्षण के अनुसार नोटबन्दी से उपभोक्ताओं का विश्वास कम हुआ है, जिससे इस सीजन में होने वाली घरेलु बुकिंग में कम-से-कम 65% की गिरावट आई है। इसी कारण नवम्बर में नोटबन्दी की मार से पर्यटकों का रूझान कम हो गया था।

निष्कर्ष

विमुद्रीकरण की सारी कार्य योजना और नीति का गहराई से अवलोकन किया जाए तो यह नीति प्रगति के लिए ही लाई गई जिसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था से कालेधन, भ्रष्टाचार, जाली नोटों का समाप्त करना था, जिससे सरकार को कुछ हद तक सफलता मिली है। आज देश समायोजन, कर आधार में वृद्धि, पारदर्शी शासन एवं समतामूलक समाज की स्थापना समावेशी विकास की दिशा में कारगर पहल कहा जा सकता है।

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