गौमांस पर प्रतिबन्ध – एक विवादस्पद समस्या|Beef ban – a controversial issue
भारत के स्वतन्त्र होने से पहले महात्मा गाँधी ने कहा था कि यदि हमारे पास सत्ता आएगी, तो मैं गौरक्षा के लिए काम करते हुए गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दूंगा। महात्मा गाँधी ने यह भी कहा कि उनके लिए गाय का कल्याण अपनी आजादी से भी प्रिय है। देश में गौरक्षा की परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है। जब बहादुरशाह जफर को 1857 ई. में दोबारा दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया, तो उनका पहला कदम था- गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाना। जब भारत का संविधान बना तो राज्य के नीति-निर्देशक तत्व बने, जिनमें कहा गया है कि सरकार को गौरक्षा करने और गौहत्या रोकने की तरफ कदम उठाने चाहिए।
हाल ही में हमारा देश गायों के वध और बिक्री व गौमांस की खपत पर प्रतिबन्ध के विवाद में शामिल है। भारत में यह विवाद कई दशकों से अस्तित्व में है। गुप्त काल के अन्तर्गत गाय वध एक पूँजी अपराध था और यहाँ तक कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म सहित अन्य धर्मों के सिद्धान्तों ने अहिंसा और गाय की पूजा पर बल दिया।
इस विवाद के पीछे का कारण यह है कि हिन्दू बहुमत गाय को पवित्र (धार्मिक) मानते हैं। सबसे पहले बीफ (गौमांस) विवाद महाराष्ट्र के साथ शुरू हुआ। इस विवाद के बाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने महाराष्ट्र पशु संरक्षण विधेयक, 1995 के अनुसार महाराष्ट्र राज्य में बैल और उसके वंश के कत्ल करने पर रोक लगा दी।
प्राचीनकाल से ही भारत में गौवध को एक निन्दनीय अपराध माना जाता रहा है। सम्भवतः इसका एक पक्ष धार्मिक कारण भी माना जा सकता है। लेकिन भारत में गौरक्षा को केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अन्य दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। हमारे यहाँ ‘बास इण्डिक्स’ नामक गाय की नस्ल है और यह सर्वमान्य है कि जो पोषक तत्व उसके दूध में है, वे दूसरी नस्लों में नहीं है। वर्ष 1958 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से इस्लामिक सम्प्रदाय को ठेस नहीं पहुँचनी चाहिए, क्योंकि इस्लाम में गौमांस खाना अनिवार्य नहीं है। संघ के आनुषांगिक संगठन के अनुसार जर्सी गाय को भारतीय गायों की तरह पवित्र नहीं माना जा सकता। इसी तर्क को आधार बनाकर महाराष्ट्र के गौमांस व्यवसायी जर्सी गायों के मांस की अनुमति माँग रहे हैं। फरवरी, 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने गौवंश हत्या बन्दी कानून लागू किया था।
गौमांस कारोबारियों की याचिका को खारिज करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 6 मई, 2017 को एक आदेश में कहा कि महाराष्ट्र में गौमांस रखना अब अपराध नहीं है, लेकिन गौहत्या करना अब भी गैरकानूनी होगा। यदि कोई बाहर से बीफ लाता है, तो उसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। न्यायालय में गौवंश की हत्या पर रोक लगाने के लिए महाराष्ट्र सरकार के निर्णय को तो सुरक्षित रखा, लेकिन साथ ही आदेश दिया कि राज्य के बाहर वध किए गए गौवंश का मांस रखना या खाना अपराध नहीं माना जाएगा। न्यायालय ने पशु संरक्षण संशोधन अधिनियम की धारा 5 और 9 को निरस्त कर दिया। इन धाराओं के तहत अन्य राज्यों में वध किए गए गौवंश का मांस रखना भी अपराध था। पीठ ने कहा कि ये धाराएँ असंवैधानिक थीं और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) में प्रदत्त लोगों की गोपनीयता जानबूझकर रखना अपराध हो सकता है, लेकिन इसे साबित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी, न कि व्यक्ति की। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1976 तक इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार ने गायों की हत्या, गौमांस रखने या खाने पर रोक लगाई हुई थी। वर्ष 2015 में इस कानून में संशोधन किया गया और इस कानून में गौवंश की हत्या, उसके मांस रखने या खाने को भी शामिल कर लिया गया। महाराष्ट्र पशु संरक्षण संशोधन अधिनियम पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई। इस अधनियम के तहत राज्य में गौवंश के वध और उसके मांस रखने व खाने पर भी प्रतिबन्ध था। अधिनियम में गौवंशों का वध करने पर पाँच वर्ष की’ जेल और रु 10,000 हजार जुर्माना तथा उसका मांस रखने पर एक वर्ष की कैद और रु 2,000 हजार जुर्माना का प्रावधान है। न्यायालय ने कानून की इन दोनों धाराओं को निरस्त करने पर स्थगन सम्बन्धी राज्य सरकार की दलीलें ठुकरा दीं, जिसे कई याचिकाकर्ताओं ने कठोर होने की संज्ञा देते हुए चुनौती दी थी।
राज्य सरकारों एवं अन्य देशों द्वारा गौहत्या प्रतिबन्ध
देश के 29 राज्यों में से 24 में पहले से ही गौहत्या पर प्रतिबन्ध है। विश्व के अन्य देशों में भी गौहत्या पर प्रतिबन्ध है। क्यूबा में फिडेल कास्त्रों द्वारा बनाया हुआ गौ हत्या निषेध कानून आज भी लागू है। साथ ही ईरान में गौहत्या पर कानूनी प्रतिबन्ध है। इण्डोनेशिया के नूपनिसद द्वीप में गौमांस भक्षण निषिद्ध है।
गौमांस पर प्रतिबन्ध लगाने का कारण|Reason for banning beef
गाय कृषि और दुग्ध उत्पादन में महत्वपूर्ण आधार है। काफी वर्षों पहले गौवंश की संख्या एक अरब 21 करोड़ थी और भारत की जनसंख्या केवल 35 करोड़ थी, लेकिन आज देश की जनसंख्या एक अरब से भी अधिक है और गौवंश की संख्या 10 करोड़ से भी कम है। यदि जनसंख्या के अनुपात में गौवंश बचा होता है, तो आज आजीविका के संसाधनों से जुड़ी समस्याएँ नहीं होती।
मांस के निर्यात का सबसे अधिक प्रभाव पशुधन पर पड़ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण उत्पादन एवं निर्यात विकास प्रधिकरण द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2003-04 में भारत से 3.4 लाख टन गाय-भैंस के मांस का निर्यात किया गया था, जो वर्ष 2012-13 में बढ़कर 18.9 लाख टन हो गया था। वर्ष 2015-16 में इस निर्यात में 25.6 की वृद्धि हो गई। निर्यात के इस आँकड़े ने भारत को मांस निर्यातक देशों में अग्रणी बना दिया है। विश्व में निर्यात किए जाने वाले मांस का यह 58.7% हिस्सा है। सरकार ने प्रसंस्करण संयन्त्रों के आधुनिकीकरण के एिल आर्थिक मदद’ के रूप में सब्सिडी के प्रावधान किए हैं, इसलिए यह कारोबार दिन-दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है। इससे हरित क्रान्ति अभिवान हतोत्साहित होता है।
गाय के मांस की माँग विश्व के बाजारों में बढ़ रही है। खाद्य और कृषि संगठन इस मांस को पैष्टिक और स्वादिष्ट बताकर उसका प्रचार करने में लगे हैं। इस कारण इसकी माँग और बिक्री में निरन्तर बढ़ोतरी होती जा रही है। इसलिए अवैध लाभ कमाने के लिए प्रतिदिन अवैध तरीके से गायों की हत्या की जा रही है।
हिन्दू धर्म के अन्तर्गत गाय को माता का दर्जा देने के कारण गाय हिन्दुओं के जीवन में अत्याधिक महत्व रखती है। वह उनकी आस्था के केन्द्र में है। अतः गौमांस खाना देश के बहुसंख्यक वर्ग की आस्था एवं भावनाओं को ठेस पहुँचाता है। गौ हत्या पर प्रतिबंध केवल हिन्दुओं की आस्था के कारण ही नहीं लगाना चाहिए, अपितु गाय एक ऐसा पशु है जिसका सब कुछ जैसे दूध, मूत्र, गोबर इत्यादि सभी काम आता हैं। इसके अतिरिक्त एक शोध यह प्रमाणित करता है कि गाय एकमात्र ऐसी प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करेन के साथ ही ऑक्सीजन छोड़ती भी है। साथ ही गाय के 10 ग्राम घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है, जो मुनष्य के जीवन में गाय के महत्व को प्रकट करते हैं।
गौमांस पर प्रतिबंध लगाना अनुचित
गौमांस खाने पर लगाए गए प्रतिबंध का विरोध करते हुए इसके समर्थकों का कहना है कि खाने का विषय लोगों की व्यक्तिगत पसन्द-नापसन्द का मामला है, इसे धर्म के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। भारतीय हिन्दू समाज को छोड़कर अन्य किसी भी धर्म या समुदाय में गौमांस सेवन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है और उन्होंने अपने खान-पान जीवन शैली में गौमांस को शामिल कर लिया है, जोकि शरीर में पोषण की आवश्यकता भी बन गई है। ऐसे में यदि गौमांस पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो उनका खान-पान भी प्रभावित होगा जिसे लोग सहजता से स्वीकार भी नहीं कर पाएँगे।
इस विषय को धार्मिक दृष्टिकोण की अपेक्षा यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो गाय भी प्रकृति द्वारा निर्धारित खाद्य श्रृंखला का अभिन्न अंग है। मांसाहारी द्वारा शाकाहारी का भक्षण खाद्य श्रृंखला का नियम है। यदि गौमांस का सेवन रोक दिया जाता है, तो इससे प्रकृति में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न होगी एवं ऊर्जा प्रवाह में कमी आएगी, जोकि पारिथितिकी के लिए भी उचित नहीं है। संवैधानिक पक्ष से भी गौमांस पर प्रतिबंध लगाना न्यायसंगत नहीं है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ सभी धर्मों के प्रति एक ही दृष्टिकोण रख जाता है। गौमांस पर यदि प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो कारण कोई भी कानून धर्म के आधार पर बनाकर आम जनता पर थोपा नहीं जा सकता। ऐसा किया जाना भारत की विविधता में एकता की प्रकृति के विपरीत होगा।
निष्कर्ष
गौमांस एक विवादास्पद मुद्दा है, जिस पर लम्बी बहस हो रही है। धार्मिक आस्था के अनुसार हिन्दू धर्म में गाय को माता कहा जाता है। इसकी हत्या से हिन्दू संस्कृति और परम्परा को ठेस पहुँचती है। इस पर प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में कुछ सरकार नहीं कर सकती है। इस प्रतिबन्ध के बाद गौरक्षकों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हो गई है। गौरक्षा के नाम पर कुछ लोग निर्दोष लोगों की भी हत्या कर रहे हैं। यह सब गलत है। गौहत्या पर लगे प्रतिबन्ध के साथ-साथ लोगों को नैतिकता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। कानून को अपने हाथ में लेना भी गैर-कानूनी होता है
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