पाठ्यक्रम मूल्यांकन के सिद्धांत|Principles of Curriculum Evaluation

पाठ्यक्रम मूल्यांकन के सिद्धांत|Principles of Curriculum Evaluation

प्रतिमान/मॉडल क्या है? पाठ्यक्रम विकास के प्रमुख मॉडलों पर प्रकाश डालिए।

शिक्षा विकास की प्रक्रिया है तथा इसका प्रारूप पाठ्यक्रम पर आधारित होता है। पाठ्यक्रम के प्रमुख आधार व्यक्ति, समाज, दर्शन एवं विषय हैं। सामाजिक दृष्टिकोण दार्शनिक विचारधाराओं एवं व्यक्तिगत मान्यताओं में परिवर्तन होता रहता है। अतः शिक्षा भी परिवर्तनशील है। परिवर्तन ही विकास की ओर ले जाता है। इसलिए शिक्षा के समुचित विकास हेतु पाठ्यक्रम का विकास करना भी आवश्यक है। प्राचीन समय में पाठ्यक्रम निर्माण का कोई निश्चित ढंग नहीं होता था। पाठ्यक्रम निर्माण का विधिवत् कार्य बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से शुरू हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पाठ्यक्रम विकास की संकल्पना विकसित होने के साथ इसके अनेक प्रतिमान प्रकाश में आए।

प्रतिमान का अर्थ (Meaning of Model)- प्रतिमान किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा क्रिया का ऐसा परिकल्पनात्मक या कार्यात्मक रूप होता है जिससे उसके वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। प्रतिमान अंग्रेजी के ‘Model’ शब्द का पर्यायवाची है। सामान्य जीवन में विभिन्न वस्तुओं के मॉडल देखने को मिलते हैं। हेनरी सीसिल वील्ड ने मॉडल को. Universal Dictionary of English Language में इस प्रकार परिभाषित किया है- ‘किसी आदर्श के अनुरूप व्यवहार क्रिया को ढालने तथा क्रिया की ओर निर्देशित करने की प्रक्रिया मॉडल या प्रतिमान होती है।’

‘To confirm in behavior, action and to direct one’s to action according to some particular design or ideals.’ -Henry Cecil Wyld

पाठ्यक्रम विकास का सामान्य प्रतिमान (General Model of Curriculum Development)- शिक्षा के उद्देश्यों एवं प्रतिक्रियाओं एवं परिस्थितियों के आधार पर पाठ्यक्रम के अनेक प्रतिमान विकसित किये गये हैं, किन्तु प्रायः पाठ्यक्रम का विकास शिक्षकों एवं अन्य सम्बन्धित घटकों के सहयोग से आवश्यकतानुसार सामान्य रूप में कर लिया जाता है। इसे पाठ्यक्रम का सामान्य प्रतिमान कहा जाता है। सामान्य प्रतिमान के प्रमुख क्रमिक पद निम्न प्रकार के होते हैं-

पाठ्यक्रम मूल्यांकन के सिद्धांत|Principles of Curriculum Evaluation

1. शिक्षकों एवं अन्य रुचिशील व्यक्तियों के दल पाठ्यक्रम के क्षेत्र का सर्वेक्षण तथा उपलब्ध साधनों का आकलन।

2. शैक्षिक उद्देश्यों का स्पष्ट रूप में निर्धारण।

3. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त पाठ्यवस्तु का चयन एवं निर्माण।

4. विद्यालयों में पाठ्यवस्तु के पूर्व परीक्षण से पहले रुचिशील शिक्षकों द्वारा विचारगोष्ठियों एवं कार्यगोष्ठियों का आयोजन।

5. पाठ्य-सामग्री का कुछ विद्यालयों में पूर्व परीक्षण।

6. पूर्व-परीक्षण के आधार पर पाठ्य सामग्री का मूल्यांकन एवं आवश्यक संशोधन।

7. यदि आवश्यक हो तो अधिक व्यापक स्तर पर पूर्व परीक्षण तथा पुनः मूल्यांकन एवं संशोधन ।

8. तैयार की गयी सामग्री का प्रकाशन एवं प्रसार तथा उसके समुचित उपयोग की दृष्टि से शिक्षकों के सेवारत प्रशिक्षण का आयोजन।

9. निर्मित सामान्य (पाठ्यक्रम) का क्रियान्वयन ।

10. पाठ्यक्रम का मूल्यांकन एवं आवश्यकतानुसार संशोधन।

पाठ्यक्रम विकास के कुछ विशिष्ट प्रतिमान (Some Specific Models of Curriculum Development)- कुछ पाठ्यक्रम विशेषज्ञों द्वारा पाठ्यक्रम विकास के अनेक विशिष्ट प्रतिमान विकसित किये गये हैं जो पाठ्यक्रम कार्यकर्ताओं के लिए बहुत उपयोगी हैं।

1. पाठ्यक्रम की व्यवस्था पर आधारित प्रतिमान- पाठ्यक्रम व्यवस्था आधारित इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिमानों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रतिमान की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें पाठ्यक्रम को निवेश के रूप में प्रदर्शित किया गया है। इसके साथ ही यह प्रतिमान पाठ्यक्रम परिवर्तन के समय समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों को भी राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनिवार्य अंग (उत्पाद) के रूप में स्वीकार करता है।

हिल्डा टाबा का व्यापक मूल्यांकन पाठ्यक्रम प्रतिमान (Hilda Taba Comprehensive Evaluation Curriculum Model)- हिल्डा टाबा पाठ्यक्रम के प्रारूप का अर्थ शिक्षण आयाम से है, परीक्षण से नहीं। ब्लूम ने मूल्यांकन की जो परिभाषा प्रस्तुत की है, उसी के अर्थ में हिल्डा टाबा ने मूल्यांकन शब्द का प्रयोग किया है। टाबा का पाठ्यक्रम का प्रारूप मूल्यांकन की भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानती है।

ब्लूम ने मूल्यांकन को इस प्रकार परिभाषित किया है- ‘विद्यालय में छात्रों की प्रगति हेतु उनके व्यवहार के सम्बन्ध में प्रमाणों को एकत्रित करने तथा उनका अर्थापन करने की प्रक्रिया मूल्यांकन कहलाती है।’

‘Evaluation is the process of gathering and interpreting evidence on the changes in behavior of all the students as they progress through school.’

हिल्डा टाबा ने अपने व्यापक मूल्यांकन पाठ्यक्रम प्रतिमान के चार प्रमुख सोपानों का उल्लेख किया है, जिन्हें प्रतिमान के रेखाचित्र में प्रदर्शित किया गया है।

प्रथम सोपान – उद्देश्यों का निर्धारण- इस सोपान के अन्तर्गत शिक्षा के उद्देश्यों की दृष्टि से पाठ्यक्रम का मूल्यांकन किया जाता है। उसमें ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक, सृजनात्मक एवं प्रत्यक्षीकरण उद्देश्यों से सम्बन्धित प्रमाणों को एकत्रित करके शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है।

द्वितीय सोपान – शिक्षण-अधिगम क्रियाओं के लिए प्रमाण- इस सोपान के अन्तर्गत समुचित शिक्षण-विधियों, प्रविधियों एवं पाठ्यक्रम को प्रयुक्त करके अधिगम के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं तथा अधिगम अनुभवों हेतु प्रमाण एकत्रित किये जाते हैं।

तृतीय सोपान – अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण- इसके अन्तर्गत अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण एकत्रित किये जाते हैं। उदाहरणार्थ- पुनर्बलन एवं अभिप्रेरणा से छात्र अधिक सीखते हैं। अभ्यास अधिगम को स्थायी बनाता है। दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग बालकों के अधिगम को प्रभावित करता है।

चतुर्थ सोपान- उद्देश्यों से सम्बन्धित छात्रों के व्यवहारों के लिए प्रमाण- अन्तिम सोपान के अन्तर्गत पाठ्यक्रम की सार्थकता एवं उपादेयता की जाँच उद्देश्यों की दृष्टि से की जाती है। इस प्रकार परीक्षण का स्वरूप उद्देश्य-केन्द्रित होता है। अतः व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रमाणों का संकलन किया जाता है। इन प्रमाणों के आधार पर पाठ्यक्रम का सुधार एवं विकास किया जाता है। हिल्डा टाबा ने इन्हीं सोपानों के आधार पर पाठ्यक्रम के प्रारूप के लिए चार अवस्थाओं का भी उल्लेख किया है। इन अवस्थाओं एवं सोपानों में बहुत अधिक समीपता भी है। ये चार अवस्थाएँ निम्न हैं-

1. मूल्यांकन हेतु आवश्यक प्रदत्तों के स्वरूप का निर्धारण करना।

2. आवश्यक यन्त्रों एवं प्रक्रिया का चयन करना अथवा उनके स्वरूप को निर्मित करना।

3. आवश्यक परिवर्तन से सम्बन्धित परिकल्पना के विकास हेतु प्रदत्तों का विश्लेषण एवं अर्थापन करना।

4. परिकल्पना को कार्य रूप में परिवर्तित करना । इस प्रकार इस प्रतिमान में अवस्थाओं अथवा सोपानों का अनुसरण करते हुए प्रभावों के आधार पर पाठ्यक्रम का विकास एवं सुधार किया जाता है।

राल्फ टायलर का प्रतिमान (Model of Ralph Tyler)-

1. टायलर मॉडल (Taylor Model)- टायलर मॉडल के मुख्य रूप से चार आधारभूत अवयव हैं। अतः यहाँ इन्हीं अवयवों के आधार पर ही पाठ्यचर्या को चार भागों में विभक्त किया गया है। यह भाग निम्नलिखित हैं-

(1) विद्यालय के प्रयोजन।

(2) परियोजन से सम्बन्धित शैक्षणिक अनुभव।

( 3) इन अनुभवों को संगठित करना।

(4) इन प्रयोजनों की प्राप्ति हेतु मूल्यांकन करना।

यहाँ पर टायलर के मॉडल के अवयव से यह स्पष्ट है कि उद्देश्यों का निर्धारण मुख्य रूप से तीन स्रोतों द्वारा किया जाता है-

(1) समाज

(2) विद्यार्थी/छात्र/अध्येता

(3) विषयवस्तु

अतः टायलर के मॉडल को इन तीनों तत्वों पर आधारित माना जाता है।
पाठ्यक्रम विकास मॉडल पर फ्रेंकलिन बौबिट के विचार (Views of Franklin Bobbitt at Curriculum Development Model)- सन् 1918 में इस विषय पर प्रकाशित प्रथम पुस्तक ‘द करीकुलम’ (The Curriculum) में फ्रेंकलिन बौबिट ने कहा है कि एक विचार के रूप में पाठ्यक्रम की जड़ें रेस कोर्स के लिए लैटिन शब्द में हैं और पाठ्यक्रम का वर्णन ऐसे कार्यों एवं अनुभवों के रूप में किया है जिनके माध्यम से बच्चे अपेक्षित वयस्क के रूप में विकसित होते हैं ताकि वयस्क समाज में सफलता प्राप्त की जा सके। इसके अलावा पाठ्यक्रम में केवल विद्यालय में होने वाले अनुभव ही नहीं, बल्कि विद्यालय एवं उसके बाहर होने वाले गठन, कार्य एवं अनुभव अपनी सम्पूर्णता में समाहित होते हैं। वे अनुभव जो अनियोजित और अनिर्दिष्ट रहे हैं और वे अनुभव भी जिन्हें समाज के वयस्क सदस्यों के उद्देश्यपूर्ण गठन की दिशा में जान-बूझकर प्रदान किया गया है। बौबिट के लिए पाठ्यक्रम एक सामाजिक इंजीनियरिंग का क्षेत्र है। उनके सांस्कृतिक अनुमान एवं सामाजिक परिभाषाओं के अनुसार उनके पाठ्यक्रम निर्माण के दो उल्लेखनीय लक्षण हैं-

1. वैज्ञानिक विशेषज्ञ अपने इस विशेष ज्ञान के आधार पर कि समाज के वयस्क सदस्यों में क्या गुण होने चाहिए एवं कौन-से अनुभव ऐसे गुण उत्पन्न करेंगे, वे पाठ्यक्रम का निर्माण करने हेतु योग्य होंगे तथा यही न्यायसंगत भी होगा।

2. पाठ्यक्रम को ऐसे कार्य अनुभवों के रूप में परिभाषित करना है जो छात्र को अपेक्षित वयस्क बनाने के लिए उसके पास होना चाहिए।

इसलिए उन्होंने पाठ्यक्रम को लोगों के चरित्र का निर्माण करने वाले कार्यों एवं अनुभवों की ठोस वास्तविकता के स्थान पर एक आदर्श के रूप में परिभाषित किया है। पाठ्यक्रम सम्बन्धित समकालीन विचार बौबिट के इन तत्त्वों को अस्वीकार करते हैं, परन्तु इस आधार को यथावत् रखते है कि अनुभवों का दौर है जो मानव व्यक्ति बनाता है। पाठ्यक्रम के माध्यम से वैयक्तिक गठन का व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर (अर्थात् सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तर पर) पर अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए, पेशेवर गठन, ऐतिहासिक अनुभव के माध्यम से शैक्षिक अनुशासन एक समूह का गठन उसके व्यक्तिगत प्रतिभागियों के गठन के साथ ही होता है।

यद्यपि औपचारिक रूप से यह बौबिट की परिभाषा में दिखाई दिया है। रचनात्मक अनुभव के रूप में पाठ्यक्रम की चर्चा को जॉन डीवी के कार्य में भी देखा जा सकता है (जो महत्त्वपूर्ण मामलों पर बौबिट से असहमत थे)। हालांकि बौबिट और डीवी की ‘पाठ्यक्रम’ के विषय में आदर्शवादी समझ शब्द के वर्तमान प्रतिबंधित उपयोगों से अलग है, पाठ्यक्रम लेखक और शोधकर्ता आमतौर पर इसे पाठ्यक्रम की एक समान तथ्यात्मक समझ के रूप में देखते हैं।

पाठ्यक्रम विकास मॉडल पर फिलिप डब्ल्यू. जैक्सन के विचार- कक्षाओं में अपनी पुस्तक में छिपा पाठ्यक्रम’ (Hidden Curriculum) की रचना की है। उन्होंने तर्क दिया कि प्राथमिक विद्यालयों में विशिष्ट कौशलों पर जोर दिया जाए, चुपचाप प्रतीक्षा करने के लिए दोनों शिक्षकों और साथियों के प्रति निष्ठा प्रदर्शित की जाए, अधिगम संयम अभ्यास के साथ प्रयास किया जाए तथा काम को पूरा करने में व्यस्तता रखते हुए सहयोग, स्पष्टता और पाबन्द किया जाए।

1. पाठ्यक्रम के अध्ययन की जाँच से यह स्पष्ट हुआ कि यह पाठ्यक्रम की एक शाखा है। ‘छिपा हुआ पाठ्यक्रम’ संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करता है।

2. भले ही क्या अध्ययन किया गया है, को साधारण दृष्टि में छिपा हुआ हो। फिलिप जैक्सन ने यह तर्क दिया है कि औपचारिक शिक्षा परोक्ष रूप से इस तरह स्वतन्त्रता और उपलब्धि, समाज में उनकी सदस्यता के लिए आवश्यक रूप में छात्रों के मूल्यों को अवगत करा देना है।

तब से पाठ्यक्रम अध्ययन के शोधकर्ताओं के मापदण्ड में रूढ़िवादी संरचना से नव मार्क्सवादी करने के लिए कला के आधार पर शोधकर्ताओं के लिए (1977, श्रम करने के लिए सीखना श्रमिक वर्ग के बच्चों को नौकरियों और काम पर समझो) छिपा हुआ पाठ्यक्रम और खुला पाठ्यक्रम सामाजिक वर्ग की स्थिति की पुनः जाँच की गयी। पाठ्यक्रम के लिए लम्बी अवधि के प्रभाव के विषय छात्र के जीवन के विषय में पूछताछ गयी।

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