अनुदेशात्मक प्रणाली|instructional system 2024

अनुदेशात्मक प्रणाली|instructional system 2024

अनुदेशन तकनीकी क्या है? इसकी मान्यताएँ, विशेषतायें एवं स्वरूप का वर्णन कीजिये।

अनुदेशन तकनीकी – बहुत समय तक शिक्षण में केवल सीखने के सिद्धान्तों व कक्षा में उसके प्रयोग पर ही बल दिया जाता रहा किन्तु इससे शिक्षा के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त हो रही थीं उनसे शिक्षा मनोविज्ञानिक संतुष्ट नहीं थे। क्योंकि यह उपलब्धियां अपनी चरम सीमा को प्राप्त नहीं कर पा रही थीं। अतः मनोवैज्ञानिकों ने सीखने के सिद्धान्त एवं उसके प्रयोग पर बल देने के साथ- साथ शिक्षण की परिस्थितियों, कार्यों की निश्चित रूपरेखा एवं शिक्षण के नवीन उपागमों की आवश्यकता को भी महसूस किया जिससे कि कक्षा शिक्षण को अधिक शक्तिशाली और प्रभावात्मक बनाया जा सके। इसी के फलस्वरूप शिक्षा तकनीकी के क्षेत्र में शिक्षण की अनुदेशन तकनीक का सूत्रपात हुआ। शैक्षिक तकनीकी का यह प्रकार शिक्षण की परिस्थितियों, कार्यों की रूपरेखा तथा शिक्षण के नवीन उपागमों की ओर संकेत करता है। साधारण शब्दों में अनुदेशन तकनीकी से अभिप्राय ऐसी तकनीकी से लिया जाता है जिसमें अध्यापक द्वारा प्रदत्त कक्षीय सूचनाओं को छात्रों तक प्रभावशाली ढंग से पहुंचाने में सहायता मिलती है और छात्रों के व्यवहार में आशानुकूल परिवर्तन लाया जा सकता है। इस प्रकार अनुदेशन तकनीक एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से उपलब्ध साधनों के द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है और छात्रों में विशेष व्यवहार परिमार्जन किया जा सकता है। इस तकनीकी के द्वारा छात्र अपनी वैयक्तिक क्षमताओं व भिन्नताओं के अनुरूप स्वयं अध्ययन के आधार पर सीखते हैं। अनुदेशन तकनीकी को विभिन्न शिक्षा विदों ने परिभाषित करने का भी प्रयास किया है। मैक म्यूरन के अनुसार “अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology) शिक्षण एवं अधिगम की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विशिष्ट उद्देश्य के मुताबिक डिज़ाइन करने, चलाने एवं मूल्यांकन करने का एक क्रमबद्ध ढंग है। यह शोध कार्य तथा मानवीय अधिगम और आदान-प्रदान पर आधारित है। इसमें शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए मानवीय तथा अमानवीय साधनों का इस्तेमाल किया जाता है।” स्पष्ट है अनुदेशन तकनीकी शिक्षा तकनीकी की वह शाखा है जो हमें शिक्षण तथा अन्य दृश्य-श्रव्य सामग्री के सही उपयोग के बारे में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक जानकारी की सूचनायें प्रदान करती हैं। अनुदेशन तकनीकी में निम्न प्रमुख धारणायें अन्तर्निहित हैं-

  1. अनुदेशन सूचना पर आधारित एक प्रक्रिया है।
  2. अनुदेशन तकनीक यह स्वीकारती है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्वों को विश्लेषित कर उन्हें स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. इस तकनीक में मानवीय विकास के लिए साइबरनेटिक (Cybernetic) सिद्धान्त. को महत्त्वपूर्ण माना गया है।
  4. इस तकनीक की धारणा है कि मानवीय व्यवहार एक संगठित प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
  5. अनुदेशन तकनीक द्वारा विश्लेषित तत्वों को तार्किक क्रम में प्रस्तुत करते हुए अधिगम की बाह्य परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है।
  6. इस तकनीक द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में अधिगमित व्यवहारों को नियन्त्रित तथा परिभाषित किया जा सकता है।

अनुदेशन तकनीकी की विशेषतायें

  1. व्यावहारिक उद्देश्यों का मूल्यांकन करके शिक्षण प्रक्रिया में वांछनीय सुधार किये जा सकते हैं।
  2. अनुदेशन तकनीकी शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को प्रेरित करती है।
  3. अनुदेशन तकनीकी शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए मानवीय तथा अमानवीय ‘साधनों का प्रयोग करती है।
  4. अनुदेशन तकनीकी का प्रमुख कार्य सूचनायें प्रदान करना है।
  5. यह तकनीकी ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।
  6. अनुदेशन तकनीक छात्रों की क्षमताओं एवं अधिगम के लिए अनुकूल कार्य करती हैं।
  7. ]छात्रों के सही उत्तरों को पुनर्बलित करके यह अधिगम की प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाती है।
  8. अनुदेशन तकनीक का आधार मनोविज्ञान और दर्शन के सिद्धान्त हैं।
  9. अनुदेशन तकनीक अनुदेशन के सिद्धान्तों का निर्माण भी करती है।
  10. अनुदेशन तकनीक के द्वारा स्वचालित साधनों के माध्यम से शिक्षक के अभाव में भी शिक्षण के कार्यों को जारी रखा जा सकता है।
  11. शिक्षक तकनीक कक्षा की परिस्थितियों में छात्रों के व्यवहार का मूल्यांकन करती है। अनुदेशन के अन्तर्गत मुख्य रूप से तीन प्रारूप प्रचलित हैं। ये हैं- 1. प्रशिक्षण मनोविज्ञान Training Psychology) 2. पृष्ठपोषण मनोविज्ञान (Cybernetic Psychology) 3. प्रणाली विश्लेषण (System Analysis) अनुदेशन के ये तीनों प्रारूप एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और एक दूसरे के पूरक का कार्य करते हैं। प्रशिक्षण मनोविज्ञान एक ओर तो अदा (Input) को प्रभावशाली बनाने के लिए कार्यविश्लेषण (Test Analysis) पर जोर देता है वहीं पृष्ठपोषण मनोविज्ञान पुनर्बलन की सहायता से सीखने की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है और प्रणाली विश्लेषण शैक्षिक प्रशासन व्यवस्था और अनुदेशन को और अधिक सुदृढ़ और प्रभावशाली बनाने का कार्य करता है।

अनुदेशात्मक प्रणाली|instructional system 2024

अनुदेशन तकनीकी के स्वरूप- अनुदेशन तकनीकी ने शिक्षा मनोविज्ञान को बहुत अधिक प्रभावित किया है और अनुदेशन तकनीक का ही परिणाम है कि शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेकों परिवर्तन आये हैं। अनुदेशन की तकनीक के विभिन्न स्वरूप आज शिक्षा मनोविज्ञान में प्रचलित हैं। शिक्षा तकनीकी के प्रमुख चार स्वरूपों का वर्णन हम यहां कर रहे हैं-

1. अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instructions)- विलियम्स का मानना है कि “अभिक्रमित अनुदेशन किसी विषयवस्तु को विभिन्न छोटे-छोटे पदों में क्रमबद्ध ढंग से नियोजित करने का एक ढंग है जो एक छात्र को आत्म अनुदेशन के माध्यम द्वारा परिचित ज्ञान की ओर से अपरिचित गहन ज्ञान और सिद्धान्त की ओर बढ़ाता है।”

2. कक्षीय अन्तःक्रिया विश्लेषण (Class Room Interactional Analysis)- कक्षीय अन्तःक्रिया विश्लेषण स्किनर के पुन पुनर्बलन अधिगम सिद्धान्त को स्वीकार करता है। बालक के कक्षीय व्यवहार और स्वतंत्र व्यवहार में स्पष्ट अन्तर देखने को मिलता है। कक्षा का वातावरण बालक के व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करता है और उस पर किस तरह नियंत्रण रखता है इन्हीं सब बातों का अध्ययन कक्षीय अन्तः क्रिया विश्लेषण के माध्यम से किया जाता है।

3. अनुदेशन तकनीकी के सिद्धान्त तथा शैक्षिक माध्यम (Principle of Instruction Technology and Educational Medium) – शिक्षा तकनीकी के इस स्वरूप में कठोर और कोमल शिक्षा तकनीकी से सम्बन्धित सारी दृश्य-श्रव्य, सामग्री का उपयोग करते हुए उसे शिक्षण अधिगम की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाता है।

4. अनुदेशन तकनीकी एवं पाठ्यक्रम सिद्धान्त (Theory of Instruction Technology and Curriculum)- अनुदेशन तकनीकी के इस स्वरूप में पाठ्यक्रम सम्बन्धी सभी सूचनाओं को बालकों तक पहुंचाया जाता है।

अनुदेशन तकनीकी की मान्यताएँ-

  1. अनुदेशन में कुछ सूचनाएं दी जानी आवश्यक हैं।
  2. किसी भी विषय-वस्तु को छोटे-छोटे तत्वो में विभाजित किया जा सकता है और उन तत्वों को स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. इन तत्वों को इस प्रकार से तार्किक क्रम (Logical Arrangement) में बाँधा जा सकता है, जिससे कि वांछित सीखने की बाह्य परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकें।
  4. मानवीय विकास के लिए पृष्ठपोषण (Cybernetic) का सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
  5. मानव का प्रत्येक व्यवहार संगठित प्रणाली के अंगों के रूप में कार्य करता है।
  6. छात्रों को उनकी आवश्यकता और गति के अनुसार पढ़ने का अधिकार है।
  7. शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षक के बिना भी सम्पादित की जा सकती है।
  8. शिक्षण की प्रक्रिया में सीखने के व्यवहारों को नियन्त्रित तथा परिमार्जित किया जा

संचार (मीडिया) क्या है? इसके विविध प्रकारों का वर्णन कीजिए।

वर्तमान युग में तकनीकी साधनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। शिक्षा में भी मीडिया का प्रयोग शिक्षा को गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाने लगा है। मीडिया शब्द का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। सभ्यता के प्रारम्भ में सम्प्रेषण के लिए मौखिक मीडिया अर्थात् बातचीत, कहानियों व उपदेश आदि का प्रयोग किया जाता था। इसके पश्चात् लिखित संदेश के रूप सम्प्रेषण मीडिया प्रयोग किया जाने लगा। बीसवीं सदी से बहुमाध्यम (Multi-media) शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। बहुमाध्यम के प्रयोग में भी कई आविष्कार सामने आ चुके हैं जैसे- रेडियो, टेलिविजन और अब इंटरनेट आदि। वर्तमान काल में इलैक्ट्रोनिक मीडिया का प्रचलन बढ़ है। हम व्यक्तिगत रूप से अधिक जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते परन्तु मीडिया हमें किसी भी जानकारी को प्राप्त कराने में सहायक है। इस प्रकार संक्षेप में कहे तो मीडिया अर्थात् जब सप्रेषण हेतु किसी माध्यम का प्रयोग करें तब वह मीडिया कहलाता है। मीडिया संपर्क का माध्यम है। समाचार पत्र, टेलिविजन के द्वारा एक समय पर अनेक लोग समाचार प्राप्त कर सकते हैं यह मीडिया के द्वारा ही सम्भव है। मीडिया शब्द के लिए जन-माध्यम (Mads Media) व बहुमाध्यम (Multi-Media) आदि शब्दो का प्रयोग किया जाता है। पहले इन शब्दों को समझना आवश्यक है-

माध्यम (Media)- माध्यम एक डोस स्वतंत्र अस्तित्व वाली वस्तु है जिसका निर्धारण सम्प्रेषण के तरीके द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह संदेश सम्प्रेषण का तरीका है। यह सूचना, संदेश या सम्प्रेषण का चैनल है।

जनमाध्यम (Mass Media)- यह माध्यम जिसका उपयोग जन-साधारण तक कोई चीज सम्प्रेषित करने के लिए किया जाता है उसे जन-माध्यम कहते हैं। रेडियो, टी०वी०, चलचित्र, अखबार आदि जन-माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। हमारे देश में इस प्रकार का माध्यम का मुख्य उद्देश्य अनौपचारिक शिक्षा हैं।

बहुमाध्यम (Multi Media)- इसमे अधिगम पुंज या अनुदेशात्मक कार्यक्रम के लिए दो से अधिक सम्प्रेषण माध्यमों का प्रयोग किया जाता है। अनुदेशात्मक कार्यक्रमों को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए बहुमाध्यम का विभिन्न परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है।

माध्यमों के प्रकार – माध्यमो को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। जिसमे से कुछ वर्गीकरण नीचे दिये गये हैं-

(अ) प्रथम वर्गीकरण के अनुसार मीडिया दो प्रकार का होता है-

1. मुद्रित माध्यम (Print Media)- जब मीडिया का प्रयोग मुद्रित सामग्री के रूप में किया जाता है तो उसे मुद्रित मीडिया कहते हैं। जैसे पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें, समाचार-पत्र आदि।

(a) समाचार-पत्र (News Paper)- समाचार-पत्र हमारे देश में एक सबसे महत्वपूर्ण संचार साधन का कार्य करते हैं। विभिन्न प्रकार के खबरें समाचार-पन्न लोगों तक पहुँचते हैं। समाचार-पत्र कई प्रकार के होते हैं जैसे दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक आदि। इसके अलावा कुछ समाचार-पत्र सप्ताह और माह में दो बार भी छपते हैं। इनका प्रयोग विद्यालयों में किया जाता है। कुछ प्रसिद्ध समाचार-पत्र दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, हिन्दुस्तान टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक ट्रब्यून आदि दैनिक समाचार पत्रों के उदाहरण हैं।

(b) शैक्षिक पत्रिकाएँ (Educational Magazines) – अधिकतर समाचार-पत्र प्रतिदिन प्रकाशित होते हैं, यद्यपि उनमें से कुछ साप्ताहिक या पाक्षिक प्रकाशित होते हैं। दूसरी तरफ पत्रिकाएँ प्राय साप्ताहिक पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक या वार्षिक प्रकाशित होते हैं। कुछ प्रसिद्ध पत्रिकाएँ हैं- इंडिया टूडे, मिरर, इल्स्ट्रेटिड वीकली, करवां स्पोर्ट्स न्यूज, वोमेन इरा, सरिता, गृहशोभा आदि।

2. अमुद्रित माध्यम (Non-Print Media)- जब सूचनाओं के लिए तकनीकी साधनो का प्रयोग किया जाता है तो उसे अमुद्रित मीडिया कहते हैं। जैसे टेलिविजन, कम्प्युटर, चल- चित्र आदि।

(a) टेलीविजन (Television)- रेडियो की भाँति टेलीविजन भी एक संचार साधन है। रेडियो से बढ़कर इसका लाभ यह है कि यह आँख व कानों को प्रभावित करता है। इसके ‘सहायक सामग्री को रानी’ कहा जाता है। इसमें चित्र तथा आवाज का समन्वय है। इसे ‘भविष्य का इलैक्ट्रोनिक श्यामपट्ट’ कहा जाता है। अभी-अभी शैक्षिक दृष्टि से उसी उपयोगिता को स्वीकार किया गया है। सारे भारत के बड़े-बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मद्रास, बम्बई, कलकत्ता में इसका उपयोग शिक्षा के लिए किया जा रहा है। टी०वी० के माध्यम से अध्यापक, बालकों में ध्यानपूर्वक देखने तथा ध्यानपूर्वक सुनने की आदतें विकसित करता है।

(b) चल-चित्र (Cinema)- विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र में प्रगति ने अध्यापक को अनेक उपयोगी वस्तुएं प्रदान की हैं। जिनका यदि कक्षा में सही उपयोग हो तो वह आश्चर्यजनक कार्य कर सकता है। फिल्म निर्माण कला उनमें से एक है। आर्थिक कठिनाइयों विद्यालयों द्वारा उनसे लाभ उठाने की मार्ग में बाधक है। विद्यालयों को इस प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कराने के लिए प्रयत्न किये जा रहे हैं।

(c) रेडियो (Radio)-यह एक सर्वमान्य हार्डवेयर सामग्री है। जनसंचार की दृष्टि यह एक अद्वितीय माध्यम है। अब यह शिक्षा का माध्यम माना गया है जो कि असंख्य सुनने में रूचि रखने वाले लोगों तक पहुँचाता है।

(ब) द्वितीय वर्गीकरण के अनुसार मीडिया चार प्रकार का माना जाता है-

(i) निजी मीडिया (Owned Media)- जब सूचना और संचार के सारे अधिकार किसी एक व्यक्ति के होते हैं तो वह निजी मीडिया कहलाता है।

(ii) सामाजिक मीडिया (Social Media)- सामाजिक मीडिया द्वारा कोई भी व्यक्ति, संस्था, समुदाय अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। सूचना स्वयं के द्वारा या अन्य व्यक्तियों के द्वारा भी दी जा सकती है। सामाजिक मीडिया में फेसबुक, ट्वीटर, वाट्स एप आदि साधन आदि आते हैं।

(iii) सहायक मीडिया (Curated Media) – सहायक मीडिया द्वारा अपनी बात लोगों तक पहुँचायी जा सकती है। इसके लिए कम्प्यूटर आदि की सहायता ली जा सकती है।

(iv) अन्य मीडिया (Other Media)- अन्य मीडिया या थर्ड पार्टी मीडिया का प्रयोग अपने उत्पादों के क्रय-विक्रय आदि की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है।

इसके अलावा कुछ अन्य प्रकार के मीडिया भी प्रचलित है। जिनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-

  1. खोजी मीडिया (Search Media)- जब सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए खोज की जाए तो उसे खोजी मीडिया कहते हैं।
  2. मंच आधारित मीडिया (Forum based Media)-नेता आदि इस प्रकार की मीडिया का प्रयोग करते हैं। जहां से वे एक ही मंच से बड़े जन समुदाय को सम्बोधित करते हैं।
  3. विज्ञापन मीडिया (Advertising Media)- इसका प्रयोग अपने उत्पादों के विज्ञापन देने के लिए किया जाता है।
  4. प्रसारण मीडिया (Broad Cast Media) – अपनी बात को लोगों तक शीघ्र पहुँचाने का यह सरल माध्यम है। प्रसारण मीडिया टी०वी० व रेडियो पर समाचार के माध्यम से सूचनाओं का प्रसारण किया जाता है।
  5. अंकदर्शी मीडिया (Digital Media)- इस प्रकार के मीडिया का प्रयोग क्रम संख्या से सम्बन्धित आंकड़ों को दिखाने के लिए मशीन को पठनीय रूप एनकोडिंग (encoding) की जाती है। अंक दर्शी मीडिया को कम्प्यूटर पर बनाया जा सकता है और देखे भी जा सकता है। डिजिटल मीडिया के उदाहरणों में इ-पुस्तक (E-Book) डाटा और डाटाबेस, mp3s वेब पत्र आदि आते हैं
  6. इलैक्ट्रानिक मीडिया (Electronic Media)- इलैक्ट्रोनिक मीडिया में जब प्रसारण, संग्रहरण मीडिया इलैक्ट्रोनिक का प्रयोग करता है तो इलैक्ट्रोनिक मीडिया कहलाता है। जैसे इन्टरनेट (Internet), सीडी-रोम (CD-Rome), डीवीडी DVD आदि।
  7. ड्राइपर मीडिया (Hyper Media)-शिक्षा, मनोरंजन और सूचना प्रबन्ध के लिए पाठ, ऑडियो (Audio), वीडियो (Video), Hyper Text, Animation व अन्य उपकरणों के संयोजन पर आधारित मीडिया होता है।
  8. छपाई मीडिया (Print Media)- समाचार पत्र, मैग्नीज आदि की छपाई और वितरण से सम्बन्धित मीडिया छपाई मीडिया कहलाता है।
  9. प्रकाशन मीडिया (Published Media)-पुस्तकों आदि की छपाई से सम्बन्धित मीडिया प्रकाशन मीडिया के अन्तर्गत आता है।
  10. रिकोर्डिंग मीडिया (Recording Media)- संगीत, वाणी आदि को रिकोर्ड करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला मीडिया रिकॉडिंग मीडिया कहलाता है।
  11. सामाजिक मीडिया (Social Media)- सामाजिक मीडिया में व्यक्ति अपने विचार, फोटो, नाते रिश्तेदारों से बातचीत आदि के लिये प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग आदि आते हैं।

Important Link

Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com

Leave a Comment