शिक्षण में वाद-विवाद कौशल | Debate skills in teaching
शिक्षण में वाद-विवाद कौशल | Debate skills in teaching
इस कौशल को वाद-विवाद कौशल अथवा छात्र-क्रियाशीलता में वृद्धि (Increasing pupil participation) कहते हैं।
शिक्षण करते समय यदि छात्र भली प्रकार शिक्षण क्रियायों में भाग लें, प्रश्नों का उत्तर देना, प्रश्न पूछना, अपनी बात कहना अथवा नई विचारधारा का प्रतिपादन करना आदि पाठ्यवस्तु को भली प्रकार समझने में सहायता मिलती है। पाठ को प्रभावशाली बनाने में छात्रों का भाग लेना अधिक आवश्यक होता है। शिक्षक छात्रों की संभागिता में वृद्धि इस कौशल के प्रयोग से करता है। इस प्रकार क्रियाओं से वाद-विवाद का वातावरण उत्पन्न होता है। अतः इसे वाद-विवाद कौशल भी कहते हैं। एक कुशल शिक्षक ही इस कौशल का प्रयोग करने में सफल होता है-
कक्षा-शिक्षण में इस कौशल से अनेक लाभ होते हैं-
1. छात्रों का ध्यान अधिक केन्द्रित होता है और पाठ्यवस्तु पर चिन्तन का उन्हें अवसर मिलता है।
- छात्रों को सामूहिक रूप में जो मान्यता मिलती है, उससे उनकी सहज प्रवृत्ति की संतुष्टि होती है।
- छात्रों को पाठ्यवस्तु के समझने में सहायता मिलती है।
- शिक्षक को अपने अध्यापन का सही मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है और उसे विकास करने का अवसर मिलता है।
छात्र संभागिता विस्तार कौशल में अध्यापक निम्न घटकों पर ध्यान देता है और अभ्यास इनका परिर्माजन करता है। इस कौशल में काम आने वाले अन्य कौशल हैं-
(1 ) विन्यास प्रेरणा कौशल (Set Induction Skill)
(2) प्रश्न पूछना कौशल (Questioning-Fluency Probing Skill etc.)
(3) उद्दीपन परिवर्तन कौशल (Stimulus Variation Skill)
(4) मौन एवं अशाब्दिक संकेत (Silence and Non-Verbal Cues)
(5) पुनर्बलन कौशल (Reinforcement Skill)
इन सभी कौशलों के उपयोग से छात्र क्रियाशिलता को यथेष्ट प्रोत्साहन मिलता है, फिर भी विशिष्ट रूप से इस कौशल का अभ्यास करने से उपरोक्त कौशल में भी लाभ होता है और क्रियाशीलता विस्तार में उपरोक्त कौशल भी लाभदायक होते हैं। छात्र क्रियाशीलता कौशल के विभिन्न घटक इस प्रकार हैं-
वातावरण निर्माण – अध्यापक छात्र सम्भागिता के लिये कक्षा को तैयार करता है ताकि छात्र लगन से पाठ के विकास में भाग ले। इसके लिये आवश्यक है कि पाठ्यवस्तु छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप हो और रूचिपूर्ण हो, इसमें वाद-विवाद और विचार वैभिन्न का अवसर उपलब्ध हो, छात्रों के ज्ञान अथवा जीवन के लिये उपयोगी हो। इन गुणों के बिना छात्र अधिक रूचि का प्रदर्शन नहीं करते जिससे पाठ में छात्र संभागिता का विस्तार कठिन हो जाता है। यह आवश्यक नहीं कि वातावरण निर्माण प्रारम्भ में ही हो। यह पाठ के मध्य में, बहस के साथ, रूचिपूर्ण प्रसंग आने पर भी निर्मित होता है। अध्यापक का अनुभव इसमें सहायक होता है।
प्रश्न पूछना – प्रश्न कक्षा में उद्दीपन (Stimulus) होता है। इसका उत्तर देने के लिये छात्रों को प्रयत्नशील होना पड़ता है। प्रश्न पूछने हेतु अध्यापक का शाब्दिक व्यवहार (Verbal behavior) का सहारा भी ले सकता है। छात्र का उत्तर सही हो तो अध्यापक को ऐसा व्यवहार करना चाहिये जिससे छात्र की उत्तर देने की प्रवृत्ति का पुनर्बलन (Reinforcement) हो। सही उत्तर न आने पर मौन एवं अशाब्दिक संकेत (Silence and Non-Verbal cues) के सहारे अथवा प्रोत्साहन एवं अनुबोधन (Prompt- Ing) करके सही उत्तर प्राप्त करना होगा। प्रश्न पूछने की कला अध्यापक के इस कौशल में विशेष रूप में सहायक होती है।
विभिन्न प्रकार के प्रश्न- साधारण खोजपूर्ण अनुबोधक, पुनर्निदेशित, उच्च स्तरीय एवं विभिसारी-इस प्रक्रिया में उपयोग में लाये जाते हैं और छात्र की प्रतिक्रिया का भी यथेष्ट उपयोग किया जाता है।
छात्र संभागिता प्रोत्साहन- छात्रों से प्रश्न पूछना या उन्हें कुछ कहने के आदेश देना तो एक बात है और पाठ के सुचारू विकास में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना दूसरी बात है। इस हेतु अध्यापक शाब्दिक एवं अशाब्दिक दोनों प्रकार के व्यवहारों का उपयोग करता है। कई बार दोनों एक साथ भी प्रयोग किये जाते हैं। छात्रों के उत्तर के सही होने पर अध्यापक का ‘ठीक’ ‘अच्छा’ या ‘शाबाश’ कहना शाब्दिक प्रोत्साहन है और सिर हिलाना, मुस्कुराना या संकेत द्वारा प्रसन्नता व्यक्त करना अशाब्दिक व्यवहार है।
छात्र प्रतिक्रिया एवं दक्षता- अध्यापक छात्रों के दिये उत्तर एवं उनके द्वारा व्यक्त विचारों को ठीक ढंग से स्वीकार या अस्वीकार करता है और उन्हें अपनी बात या क्रिया प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित करता है। इस क्रिया से छात्र पाठ-विकास में उत्तरोत्तर सहयोग देते हैं और पाठ को प्रभावशाली बनाने में योगदान प्रदान करते हैं।
विराम – छात्रों को समझने व सोचने का अवसर देने के लिए अध्यापक बीच-बीच में विराम (Pausing) देता है। छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिये भी विराम दिया जाता है।
विराम का उपयुक्त और ठीक उपयोग सम्भागिता विस्तार में सहायक होता है और गलत छात्र सम्भागिता विस्तार कौशल के पर्यवेक्षण के लिये निम्न बिन्दुओं एवं तत्वों की आवृत्ति उपयोग बाधाजनक सिद्ध होता है-
अंकन पर उनका मूल्यांकन करना होगा-
तत्व-1 (अ) मौखिक प्रश्न (शाब्दिक) पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित मौखिक रूप से पूछेगये प्रश्न।
तत्व-1 (ब) अशाब्दिक व्यवहार-पूछे गये प्रश्न को अन्य छात्र या छात्रों को निर्देशित करना।
तत्व-2 (अ) अशाब्दिक प्रोत्साहन-अध्यापक ‘शाबाश’ ठीक है आदि कहकर छात्रों को प्रोत्साहित करता है। प्रश्न को दोहराना, सरल करके पूछना, अनुबोधन आदि भी इसी में आते हैं।
तत्व-2 (ब) अशाब्दिक प्रोत्साहन अध्यापक के वे सारे व्यवहार जिनमें भाषा का प्रयोग नहीं होता तथा संकेत या सिर हिलाना, थपथपाना आदि इसी श्रेणी में आते हैं।
तत्व-3 विराम-अध्यापक जानकर विराम देता है ताकि छात्रों को सोचने का समय मिल जाए या वे उत्तर देने की तैयारी कर सकें। प्रोत्साहन हेतु भी अध्यापक मौन रहता है। यह विराम प्रोत्साहन हेतु होता है।
तत्व-4 अध्यापक के शाब्दिक प्रश्न अथवा प्रोत्साहन के अतिरिक्त उसका शाब्दिक व्यवहार जिससे अध्यापक छात्र-संभागिता को प्रोत्साहित करे।
तत्व-5 छात्र के उत्तर एवं उनकी दीक्षा जिससे वह अपनी बात कहने को प्रेरित हो।
तत्व-6 शिक्षक के शाब्दिक तथा अशाब्दिक व्यवहार जो छात्रों को भाग लेने से रोकते हैं।
Important Link
- राष्ट्रीय एकता में कौन सी बाधाएं है(What are the obstacles to national unity)
- आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अध्यापक के उपयोगिता | The ideal of teacher in modern philosopher in Hindi
- प्राविधिक शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं(Various problems of technical education and vocational education)
- भारत में पंचवर्षीय योजना | five year plan in India
- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका(Role of education in national unity)
Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com