संचार के तत्व के रूप में संचार माध्यमों की विवेचना कीजिए(Discuss media as elements of communication)
संचार माध्यम (Channels of Communication)- संचार माध्यम वे सूत्र या कड़ी होते हैं जो संचारक और ग्रहणकर्ता को जोड़ते हैं। इनके द्वारा संचार सन्देश प्रसारित होता है। संचार माध्यम पत्र, पत्रिका, बुलेटिन, रेडियो, टेलीविजन, माइक्रोफोन, फिल्म, टेलीफोन इत्यादि हो सकते हैं। ये सभी प्रसार शिक्षण पद्धतियाँ हैं। वास्तव में प्रसार शिक्षण पद्धतियाँ संचार माध्यम भी होती हैं। इनका समुचित उपयोग तभी हो सकता है जब सन्देश की प्रासंगिकता एवं ग्रहणकर्ता के शैक्षिक स्तर को देखते हुए इसका सही ढंग से प्रयोग किया जाए। इनके प्रभावकारी परिणाम के लिए इनका सही चयन भी आवश्यक है। किसी सन्देश के लिए वैयक्तिक संचार उपयोगी हो सकता है, तो किसी अन्य बात को प्रसारित करने के लिए जन संचार माध्यम (Mass media communication) की आवश्यकता पड़ सकती है। विधि प्रदर्शन के लिए छोटे समूह को सम्बोधित किया जाना चाहिए, जबकि प्रचा के लिए विराट सम्पर्क स्थापित करने की आवश्यकता पड़ती है। आज संचार के अनगिनत माध्यम संचारक के लिए उपलब्ध है, जिनका चयन उसे सावधानी के साथ करना चाहिए। संचार संदेश के प्रभावकारी होने में संचार माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। संचारक यदि चाहे तो आवश्यकता, उपयोगिता एवं प्रभावकता के दृष्टिकोण से एक साथ कई माध्यमों का प्रयोग कर सकता है। संचार माध्यमों के सफल उपयोग के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान देना आवश्यक है-
(i) उपयुक्तता-किसी भी संचार-सन्देश के लिए सभी संचार माध्यम उपयुक्त नहीं होते। संचार-माध्यमों की उपयुक्तता सन्देश में निहित विषय तथा ग्रहणकर्त्ता पर निर्भर करती है। सन्देश का ध्यान देना आवश्यक है- में यदि किसी काम को करने का तरीका बताया गया है तो सन्देश के व्यावहारिक पक्ष को देखते हुए विधि प्रदर्शन, फिल्म, टेलीविजन, फोटोग्राफ, पोस्टर आदि माध्यमों का चयन किया जाना चाहिए। ऐसे सन्देश ‘करके दिखाए’ जाने चाहिए वे ग्रहणकर्ता की रुचि जगाते हैं, उन्हें आकर्षित करते हैं तथा प्रभावी होते हैं। ग्रहणकर्त्ता के शैक्षिक स्तर को देखते हुए भी संचार माध्यम की उपयुक्तता को आंका जाना चाहिए। ग्रहणकर्त्ता यदि साक्षर नही है तो छपित संचार माध्यम (Print media) उसके लिए कोई महत्व नहीं रखते। वे न तो उसके लिए उपयुक्त हैं, न ही उपयोगी। अतः संचार माध्यम की उपयुक्तता इसी में निहित है। कि वह सन्देश और ग्रहणकर्ता दोनों के लिए उपयुक्त हो।
(ii) उपलब्धता-आज संचार के अनेक माध्यमों का आविष्कार हो चुका है। इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। नये-नये माध्यम, प्रयोज्यता, व्यावहारिकता एवं उपयोगिता की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न हैं। किन्तु संचार सन्देश प्रसारित करते समय संचारक को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जिस संचार माध्यम का वह प्रयोग कर रहा है, वह लक्षित वर्ग, जन समुदाय या व्यक्ति को उपलब्ध है अथवा नहीं। रेडियो या टेलीविजन पर प्रसारित सन्देश केवल उन्हीं लोगों तक पहुँच पाता है जिनके पास यह संचार साधन उपलब्ध होते हैं। जिन गाँवों में बिजली उपलब्ध नहीं हो वहाँ टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रम ग्रहणकर्त्ता तक नहीं पहुँचाये जा सकते।
(iii) सस्तापन-संचार माध्यम का सस्ता होना उसकी लोकप्रियता, उपलब्धता तथा व्यावहारिकता को बढ़ाता है। संचार माध्यम का चयन करते समय संचारक को इस बिन्दु पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। सस्ती पुस्तकें, पत्रिकाएं इत्यादि लोगों को पहुंच के भीतर होती हैं और लोग इन्हें खरीद लेते हैं। इसके विपरीत अत्यन्त उपयोगी पठन सामग्री यदि महंगी हो तो उसे लोग खरीद नहीं पाते और यह एक असफल संचार-प्रक्रिया बन जाती है तथा उसका उपयोग एक बड़ा वर्ग कर नहीं पाता।
(iv) उपयुक्त चयन-संचारक को संचार माध्यमों का चयन करते समय उन्हीं संचार माध्यमों को प्राथमिकता देनी चाहिए जिनका उसे भरपूर ज्ञान हो तथा जिनका व्यवहार या प्रयोग वह अधिकारपूर्वक कर सकता हो। जो संचारक लेखन कला में निपुण नहीं होते वे पत्र-पत्रिकाओं द्वारा अपने सन्देश प्रसारित नहीं कर पाते। इसी प्रकार जो संचारक वाक्पटु नहीं होते वे भाषण देने
या सामूहिक चर्चा करने में असफल रहते हैं। संचारक को अपनी सीमाओं के अन्दर रहते हुए ही उपयुक्त संचार माध्यम का चयन करना चाहिए। माइक्रोफोन, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, प्रोजेक्टर या वीडियो कैसेट रिकार्डर का प्रयोग तभी करना चाहिए जब संचारक स्वयं इनकी कार्य-प्रणाली से परिचित हो और इनका व्यवहार करना जानता हो।
(v) एक से अधिक माध्यमों का उपयोग- सन्देश को अधिक प्रभावी बनाने के लिए एक साथ, एक से अधिक संचार माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे-ब्लैक-बोर्ड, फलालेन बोर्ड, पोस्टर, फोटोग्राफ तथा विधि प्रदर्शन या फिल्म का एक साथ प्रयोग कर संचारक अपनी बात को अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर सकता है। मेले या प्रदर्शनी में भी पोस्टर, फोटोग्राफ, विधि-प्रदर्शन, लीफलेट, पैम्फलेट, माइक्रोफोन फिल्म आदि का सम्मिलित प्रयोग होता है। संचार माध्यमों का सम्मिलित प्रयोग करते समय परस्पर व्यापन से बचना चाहिए। ऐसा न हो कि वे एक- दूसरे पर हावी हो जायें और ग्रहणकर्त्ता के लिए विषय को बोझिल बना दें।