सामाजिक समरसता पर एक टिप्पणी लिखियेWrite a note on social harmony

सामाजिक समरसता पर एक टिप्पणी लिखिये(Write a note on social harmony)

सामाजिक समरसता से मजबूत राष्ट्र का निर्माण – सामाजिक एकता का अर्थ है जाति, धर्म, वर्ण से ऊपर उठकर एक साथ रहना। सामाजिक एकता विपरीत परिस्थिति में भी एक दूसरे को मदद करने के लिए प्रेरित करता है। एकजुट रहना, मजबूत रिश्ते और मजबूत समाज के निर्माण में एकता विशेष महत्व रखता है। विभिन्नता से परिपूर्ण देश के लिए सामाजिक एकता महत्वपूर्ण अंग है। सामाजिक एकता और समरसता प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज में जागृत हो सके तो एक दूसरे को सहायता एवं समर्थन के लिए आगे आ सकते हैं।
भारत एक विभिन्न संस्कृति, परंपरा और धर्म आधारित देश है। हमारे देश में अनेक भाषा, धर्म, जाति एवं संस्कृति को मानने वाले वाले लोग एक ही समाज के अंदर रहते हैं जोकि हमारे आने वाली पीढ़ी के समाज को भी सामाजिक एकता और समरसता के बारे में शिक्षा देने का अवसर देता है। राष्ट्रीय एकता किसी भी देश व जाति के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके द्वारा व्यक्ति देश प्रेमी बनकर देश की सेवा के लिए हर समय प्रेरित हो सकता है। भारत एक विशाल देश है जहां अनेक जाति एवं धर्म के लोग निवास करते हैं। प्रत्येक धर्म का नियम अलग-अलग है जोकि हम भारतीयों के बीच भेदभाव पैदा कर सकता है। ये भेदभाव किसी भी देश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके द्वारा सामाजिक अधोपतन हो सकता है तथा विभिन्न प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सामाजिक एकता एवं समरसता का तात्पर्य यह है कि जाति-जाति, धर्म धर्म के अंदर होने वाले भेदभाव को दूर कर एक स्वच्छ समाज का गठन करना है तथा व्यक्ति के हृदय में प्रेम भाव उत्पन्न कर सभी को एकजुट कर रखना। यदि देश के लोगों के अंदर एकता होगी तभी आने वाली समस्याओं को सभी मिलजुलकर समाधान कर सकते हैं। जहां इस प्रकार की व्यवस्था है वह जाति एवं देश की उन्नति सुनिश्चित है। समाजशास्त्र इसी प्रकार का एक विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करे तथा समाज के अंतर्गत समाजिक व्यवस्था, सामाजिक संबंध तथा खानपान, आचार विचार, रहन सहन आदि का अध्ययन को समझा जाता है।

आज भी अनेक जाति एवं समाज हैं जिन्हें हम जनजाति या वनवासी की संज्ञा देते हैं। जो लोग आज भी आधुनिकता से काफी दूर हैं। हमारा यह कर्तव्य है कि उन सभी को आधुनिक समाज की मुख्य धारा में शामिल कर सकें तो निश्चित रूप से वे समृद्ध व लाभान्वित हो सकते हैं। इसके साथ-साथ देश भी शक्तिशाली बन सकता है। सर्वोपरि हमें यह सोचना है कि इसकी सृष्टि सृजनकर्ता परमेश्वर ने ही किया है। इसका अर्थ है कि हम सभी भाई-भाई हैं और सभी के पास ईश्वरीय सत्ता विद्यमान है। यह प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव करना चाहिए। हमारे देश में सामाजिक एकता और समरसता की स्थापना के लिए प्राचीन काल से विभिन्न संस्कृति, परंपरा प्रचलित होती आयी है जैसे धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, तप आदि का आयोजन करना। हमारे धर्म ग्रंथ के माध्यम से भी सामाजिक समरसता का प्रचार होता है। इसके माध्यम से सभी समाज, सभी संस्कृति को एक सूत्र में बांध कर रखने का प्रयत्न किया गया है जोकि समरसता का परिचायक है। रामायण में श्रीराम का निषादराज गोह के साथ मित्रता एक सुंदर उदाहरण है।

रामायण में वर्णित पक्षीराज जटायु का अंतिम संस्कार करना, वानरराज सुग्रीव के साथ मित्रता स्थापित कर अपने काल में इस मित्रता को बचाये रखना सामाजिक समरसता का उदाहरण है। सामाजिक एकता और समरता इस प्रकार का एक विषय है जिसका उपयुक्त समीक्षा पूर्वक ठीक तरह से लागू करना आज के समाज एवं राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है। जैसे कि किसी व्यक्ति के किसी अंग में घाव हुआ हो तो उसे काट कर नहीं फेंकते है बल्कि उसका उपचार किया जाता है एवं उसे ठीक किया जाता है। ठीक उसी तरह समाज का कोई वर्ग दुर्बल या उपेक्षित हो तो उसका उपयुक्त देखभाल कर राष्ट्र के मुख्य स्रोत में शामिल करना चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में भारतीय समाज में जाति प्रथा तथा धर्म आधारित भेदभाव विद्यमान है। इसके द्वारा समाज का बड़ा वर्ग राष्ट्र निर्माण में सहभागी नहीं हो पा रहा है। उसी प्रकार समाज को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि कोण से विकसित कर मुख्य धारा में शामिल करने के साथ साथ राष्ट्र के विकास में सहभागी के रूप में स्थापित करना अनिवार्य है, यही आज के शिक्षित समाज का ध्येय होना चाहिए।

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