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राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका(Role of education in national unity)

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राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका(Role of education in national unity)

राष्ट्रीय एकता से आशय-जब किसी भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत किसी राष्ट्र के समस्त व्यक्ति अपने सामाजिक दृष्टिकोणों, भावनाओं तथा कर्म की दृष्टि से एकबद्ध हो जाते हैं इस प्रकार की एकबद्धता को राष्ट्रीय एकता कहा जाता है। राष्ट्रीय एकता के आधार पर नागरिकों में अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम उत्पन्न हो जाता है वे मिल जुल कर एक दूसरे की प्रगति में अपनी रुचि प्रदर्शित करने लगते हैं। परस्पर विभिन्नतायें होते हुए भी एक दूसरे का सम्मान करते हैं तथा अपने राष्ट्र की संस्कृति के प्रति स्वयं को गौरवान्वित अनुभूत करते हुए, राष्ट्र के उत्थान में अपना सक्रिय सहयोग देते हैं।

राष्ट्रीय एकता का अर्थ- पाश्चात्य जगत् में Nation-State का विकास पूँजीवाद के साथ-साथ हुआ। पूँजीवाद में अर्थशास्त्र तथा राजसत्ता दोनों का केन्द्रीयकरण साथ-साथ चलता है। ऐसी स्थिति में एक ओर शासक जातियाँ शोषितों के दमन तथा उत्पीड़न से अपने को लाभान्वित करती हैं तो दूसरी ओर शासित जातियाँ अपने को राजनीतिक दमन तथा आर्थिक शोषण से बचाने के लिये अपनी सांस्कृतिक पहचान को एकता का आधार बनाती है जिससे साम्राज्यों के विरुद्ध ‘Nation-States’ के संघर्ष का जन्म होता है। स्पष्ट है कि पाश्चात्य अर्थ में जिसे राष्ट्र, राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद कहा जाता है वह विभिन्न जातियों के साम्राज्यवाद या पूँजीवादी सम्बन्धों का एक परिणाम या फल है।

राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक स्थिति तथा एकीकरण की भावना है जो समस्त संकीर्ण तथा अलगाववादी प्रवृत्तियों से ऊपर रहती है। यह देशभक्ति तथा प्रगति के लिये कार्य करती है। वस्तुतः राष्ट्रीय एकता सभी नागरिकों के हृदयों में एकीकरण, सुदृढ़ता, देशप्रेम तथा देशभक्ति भावना का विकास है। यह सामंजस्य एवं एकता, भ्रातृत्व एवं सामूहिकता की भावना है। साथ ही यह समझदारी, सहिष्णुता तथा सहयोगी जीवन व्यतीत करने का एक दृष्टिकोण है। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता भ्रातृत्व, सामूहिकता तथा राष्ट्रीयता (Nationhood) की गहन भावना है जो लोगों को अपने विचार तथा कर्यों में वैयक्तिक, भाषायी या धार्मिक भेदभावों को समाप्त करने के लिये बाध्य करती है।

राष्ट्रीय एकता के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये हम तीन परिभाषाएँ दे रहे है; यथा-

राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों के दिलो में एकता, संगठन एवं सन्निकटता की भावना, सामान्य नागरिकता की भावना और राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना का विकास किया जाता है।

डॉ घुरिये के अनुसार, “राष्ट्रीय एकीकरण को मनौवैज्ञानिक और शैक्षिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि जिसमें एकता, दृढ़ता और सम्बद्धता की भावना का विकास सम्मिलित है।”

डॉ० वेदी के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता का अर्थ है कि देश के विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषा विषयक विभिन्नताओं को वांछनीय सीमा के अन्दर रखना और उनमें भारत की एकता का समावेश करना।”

राष्ट्रीय एकीकरण और शिक्षा

शिक्षा में राष्ट्रीयता का सन्दर्भ प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस सन्दर्भ की व्याख्या भी अनेक प्रकार से की गई है परन्तु राष्ट्रीय संकट के समय राष्ट्रीय रक्षा सम्बन्धी नगरों का बाहुल्य हो जाता है और देश के शिक्षा शास्त्री फिर एक बार राष्ट्रीयता की शिक्षा पर बल देने लगते हैं।
ब्रूवेकर ने राष्ट्रीयता की व्याख्या करते हुए कहा है, “राष्ट्रीयता एक शब्द है जो कि पुनर्जागरण के समय विशेषकर फ्रांस की क्रान्ति से अस्तित्व में आया है। यह सामान्यतः देशभक्ति से अधिक है। इसके साथ जहाँ तक स्थान का प्रश्न है, राष्ट्रीयता, प्रजाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति एवं प्रथाओं से भी सम्बन्धित है।

जब हम यह देखते हैं कि राष्ट्रीयता मानव जीवन से किसी न किसी रूप में बंधी है, ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रीयता की शिक्षा देना राष्ट्र के निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।

सामाजिक विषमता – आज जिधर देखो दो वर्ग बन गये हैं। जाति के नाम पर ऊँच-नीच, अर्थ के नाम पर ऊँच-नीच, व्यवसाय के नाम पर ऊँच-नीच जिधर देखो उधर दो वर्ग हैं। विपत्ति आने पर हम सब एक हो जाते हैं और स्वार्थ सिद्ध होने के बाद फिर अलग-अलग हो जाते हैं।

संकीर्ण राजनैतिक दृष्टिकोण – हमारा देश अनेक प्रान्तों में बँटा है। पहले कहा जाता था भारत अखंड है। ये राज्य उसके अंग हैं। आज क्षेत्रवाद ने भारतीय एकता पर कुठाराघात किया है। पंजाब में खालिस्तान की मांग अनुचित होते हुए भी क्षेत्रवाद की दृष्टि से उचित है

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