भारत में पंचवर्षीय योजना(five year plan in India)
भारत में पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत व्यावसायिक शिक्षा की प्रगति पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण – राष्ट्रीय ज्ञान आयोग व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (वी० ई० टी०) को देश की शिक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण अंग मानता है। देश की बदलती स्थिति में अगर व्यासायिक शिक्षा और प्रशिक्षण को अपनी भूमिका असरदार ढंग से निभानी है और अगर भारत को अपनी जनसंख्या में युवा आबादी के बढ़ते अनुदान का लाभ उठाना है तो व्यावसायिक शिक्षा के महत्वपूर्ण अंगों को स्पष्ट करना तत्काल बेहद जरूरी है। असल में व्यावसायिक शिक्षा को लचीला, आज की आवश्यकताओं के अनुरूप, प्रशासनिक, सबके साथ लेकर चलने वाली और रचनात्मक शिक्षा का रूप देना आवश्यक हैं। सरकार व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण को महत्वपूर्ण भूमिका को समझती है और इस सिलसिले में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। उद्योगों के समूहों, शिक्षाशास्त्रियों, समाज और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के साथ विचार-विमर्श करके राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने इन प्रयासों को मजबूत करने के साधनों पर विचार किया है और निम्नलिखित दीर्घकालिक और अल्पकालिक रणनीतियों की सिफारिश करता है-
(1) व्यावसायिक शिक्षा को पूरी तरह से मानव संसाधन विकास मंलात्रय के अन्तर्गत रखना – मानव संसाधन विकास में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण की भूमिका को देखते हुए और शिक्षा की दूसरी धाराओं के साथ उसके संबंधों के महत्व को समझते हुए सरकार उसके सभी पहलुओं को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत रखने पर विचार कर सकती है। इस समय व्यावसासिक शिक्षा और प्रशिक्षण को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ-साथ श्रम मंत्रालय के तहत भी रखा गया है जिसके कारण इसका प्रबन्ध इधर-उधर बँटा रहता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय रणनीति बनाने, सरकार को सलाह देने और टैक्नोलॉजी तथा कर्मचारियों के विकास से जुड़े क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को चलाने के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नियोजन और विकास संस्थान की स्थापना पर विचार कर सकता है।
(2) निम्नलिखित प्रयासों के माध्यम से शिक्षा की मुख्य धारा के दायरे में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का लचीलापन बढ़ाना-
(क) सामान्य शिक्षा के पहलुओं (जैसे गिनती और गणित के कौशल) को जहाँ तक हो सके बी० ई० बी० और प्रशिक्षण के दायरे के रखना चाहिये ताकि बाद में विद्यार्थी शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल को सकें।
(ख) अलग-अलग शैक्षिक रूप से पढ़े-लिखे विद्यार्थियों के लिये प्रशिक्षण संस्थानों और पॉलिटेक्निक्स में अलग-अलग पाठ्यक्रम होने चाहिये।
(ग) कुछ ट्रेड्स में भर्ती के लिये प्रवेश शर्तें उस ट्रेड की जरूरतों के अनुरूप होनी चाहिये (जैसे कुछ मामलों में कक्षा 10 तक पढ़े होने की शर्त को कक्षा 8 तक किया जा सकता है)। विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में बार-बार प्रवेश करने और उसे छोड़ने का विकल्प मिलना चाहिये।
(घ) व्यावसायिक शिक्षा धारा और स्कूली शिक्षा तथा उच्च शिक्षा के बीच सम्पर्क कायम किया जाना चाहिये।
(ड़) प्राइमरी और सेकेण्डरी स्तर पर कुछ कौशल सिखाने के पाठ्यक्रम सभी स्कूलों किये जाने चाहिये। में शुरू
(च) व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम को विभिन्न साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा योजनाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
(छ) कम समय के प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जीवन भर कौशल सुधारने की योजनाओं को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिये।
ज) विभिन्न कौशलों में पारंगत व्यक्तियों का एक कार्ड बनाने की व्यवस्था होनी चाहिये।
3. व्यावसायिक शिक्षा का प्रभाव मापना और उनकी निगरानी करना- समय-( समय पर ऑकड़ें इकट्ठे करके उनका विश्लेषण किया जाना चाहिये ताकि पता चले कि प्रशिक्षण से कितनी रोजगार प्राप्ति पर कितना प्रभाव पड़ रहा है। व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण पाने वाले लोगों को मिलने वाले विशेष अथवा और अन्य लाभों के ठोस प्रमाण, प्रशिक्षण संस्थानों में सीटों के उपयोग, प्रशिक्षण के बाद रोजगार का स्वरूप और विभिन्न योजनाओं की प्रभावशीलता आदि के बारे में निरन्तर सुधार के लिये आवश्यक है। मानव शक्ति का विस्तृत विश्लेषण यह समझने के लिये बेहद आवश्यक हैं कि किस तरह की व्यावसायिक शिक्षा की किस हद तक जरूरत है और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रमाणपत्र धारकों, कौशलों और श्रम बाजार की जरूरतों के बीच कितना बड़ा अन्तर है। प्रस्तावित राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नियोजन संस्थान इस तरह के अध्ययन करा सकता है।
4. व्यावसायिक शिक्षा के लिये संसाधनों का आवंटन बढ़ाना- प्रति व्यक्ति लागत की दृष्टि से व्यावसायिक शिक्षा सामान्य शिक्षा से महँगी पड़ती है। फिर भी सामान्य सैकेण्डरी शिक्षा की तुलना में व्यावसायिक शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च बेहद कम है। मैन्युफेक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में दक्ष जनशक्ति की माँग को देखते हुए सरकार को शिक्षा पर अपने कुल सार्वजनिक खर्च का कम से कम 10-15 प्रतिशत व्यावसायिक शिक्षा पर खर्च करना चाहिये। आधुनिक व्यावसासिक शिक्षा और प्रशिक्षण योजना के लिये धनराशि का प्रावधान बढ़ाने के लिये निम्नलिखित विकल्पों पर विचार किया जा सकता है|
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