सूचना संचार के साधनों का वर्णन कीजिए।Describe the means of information communication.

सूचना संचार के साधनों का वर्णन कीजिए।Describe the means of information communication.

सूचना क्रान्ति प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्थ सी॰ क्लार्क की एक विज्ञान की ‘संचार उपग्रह’ की कल्पना से आरम्भ हुई। सूचना क्रान्ति का मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन दोनों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक जगत में भी सूचना क्रान्ति का बहुत महत्व है। सूचना क्रान्ति से संचार क्षेत्र में पूरे विश्व में युगांतकारी परिवर्तन हुए हैं। अब संपूर्ण विश्व एक वैश्विक गाँव के रूप में परिवर्तित हो गया है और तेजी से विश्व समुदाय की ओर बढ़ रहा है।

आधुनिक सूचना क्रांति में संचार के अनेक महत्वपूर्ण साधन विकसित हुए हैं। संचार ये साधन मुख्यतया निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

मौखिक संचार- हम जब किसी अन्य व्यक्ति से बात करते हैं तो डाटा व सूचनाओं का स्थानांतरण होता है। सूचनाओं व आँकड़ों के आदान-प्रदान को ‘मौखिक संचार’ कहा जाता है। इसके लिए कई प्रकार की संचार प्रणालियों को उपयोग में लाया जाता है। इन संचार प्रणालियों की आवश्यक जानकारी निम्नलिखित है-

टेलीफोन – टेलीफोन के द्वारा हम अपने घर या ऑफिस में होते हुए भी देश-विदेश के किसी भी कोने में रहने वाले व्यक्ति से वार्तालाप कर सकते हैं। इस प्रणाली में संचार का माध्यम, धातु का तार होता है।

इंटरकॉम-यह देखने में टेलीफोन के समान ही होता है लेकिन इसको केवल एक बिल्डिंग में उपस्थित व्यक्तियों से आपस में बातें करने में किया जाता है।
मोबाइल-फोन सुविधा-इस प्रणाली में संचार का माध्यम सैटेलाइट होती है। मोबाइल-फोन से हम कहीं भी किसी भी जगह पर बात कर सकते हैं। इस फोन को कहीं भी ले माया जा सकता है। सैटेलाइट से संचार होने के कारण इसमें कोई तार प्रयोग नहीं होता है|

सूचना संचार के साधनों का वर्णन कीजिए।Describe the means of information communication.

कम्प्यूटर के द्वारा वॉयस-चैट कंप्यूटर के द्वारा हम अपने विचारों, सूचनाओं को मौखिक रूप से भी एक दूसरे को स्थानांतरित कर सकते हैं। चैटिंग का अर्थ एक दूसरे से करना होता है।

लिखित संचार – हम जब किसी अन्य व्यक्ति से बात करने के लिए डाटा व सूचनाओं को लिखकर एक जगह से अन्य जगह पर स्थानांतरण करते हैं तो इस आदान-प्रदान को ‘लिखित संचार’ कहा जाता है। लिखित संचार से संबंधित प्रणाली निम्नलिखित हैं-

पत्र-यह बहुत पुरानी प्रणाली है। इस प्रणाली में डाटा व सूचनाओं के स्थानांतरण की गति बहुत कम व खर्चा कम आता है। लेकिन समय ज्यादा लगने के कारण आजकल इसका प्रयोग कम होने लगा है।

फैक्स-इसके द्वारा डाटा व सूचनाओं को लिखकर एक जगह से दूसरे जगह पर स्थानांतरण कराया जाता है। इस प्रणाली में टेलीफोन प्रणाली का ही प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा बहुत कम समय में डाटा को एक जगह से अन्य जगह पर ले जाते हैं।

पेजर-पेजर एक ऐसी इलैक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो सूचनाओं को केवल ग्रहण कर सकती है। यह प्रणाली बेतार संचार पर आधारित होती है।

ई-मेल-इस प्रणाली में कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता है। इसमें डाटा को लिखकर अन्य जगह पर भेजा जाता है। इस प्रणाली में डाटा व सूचनाओं का स्थानांतरण इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से करते हैं, इसीलिए इसे इलैक्ट्रॉनिक मेल कहते हैं।

अनुदेशन प्रारूप का अर्थ स्पष्ट करते हुये उसके विविध प्रकारों का वर्णन कीजिये।

अनुदेशन प्रारूप (Instructional Design) का अर्थ एवं परिभाषा – बहुत लम्बे समय तक शिक्षण में केवल सीखने के सिद्धान्तों व इन सिद्धान्तों का कक्षा में प्रयोग पर ही विशेष ध्यान दिया जाता रहा। व्यवहार में जो इसके परिणाम निकल रहे थे वह शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में संतोषजनक नहीं थे। अतः मनोवैज्ञानिकों ने सीखने के सिद्धान्त व कक्षा में उनके प्रयोग के साथ-साथ शिक्षण की उपयुक्त परिस्थितियों, कार्यों की निश्चित रूपरेखा और नवीन उपागमों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश देने के प्रयास प्रारम्भ किये जिससे कि शिक्षण को शक्तिशाली तथा प्रभावशाली बनाया जा सके। शैक्षिक तकनीकी की यही शाखा जो शिक्षण की नवीन परिस्थितियों, कार्यों तथा उपागमों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करती है और शैक्षिक तकनीकी में अनुदेशन का प्रारूप कहलाती है। अन्य शब्दों में अनुदेशन के प्रारूप से तात्पर्य आधुनिक प्रविधियों तथा कौशल का शिक्षा तथा प्रशिक्षण की आवश्यकताओं के लिए प्रयोग करना है। इसके अन्तर्गत वह सभी साधन विधियां व वातावरण आ जाते हैं जो अधिगम को सुगम एवं सरल बनाते हैं। अनुदेशन का शाब्दिक अर्थ है सूचनायें प्रदान करना और प्रारूप का शाब्दिक अर्थ वैज्ञानिक विधियों द्वारा प्रतिपादित किये गये सिद्धान्तों से है। हर विज्ञान और सामाजिक विज्ञान अपने अनुसंधानों से कुछ निष्कर्ष प्राप्त करते हैं। यही निष्कर्ष या परिणाम उस शोध अथवा अनुसंधान के प्रारूप होते हैं। ठीक इसी प्रकार शिक्षा में किये गये शोध के भी अपने प्रारूप हैं। इन्हीं शैक्षिक प्रारूपों को सम्मिलित रूप से अनुदेशन प्रारूप कहा जाता है। अनविन ने अनुदेशन प्रारूप को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, “अनुदेशन प्रारूप आधुनिक कौशल, प्रविधियों तथा युक्तियों का शिक्षा तथा प्रशिक्षण में प्रयोग है। अनुदेशन प्रारूप इन कौशलों प्रविधियों तथा युक्तियों के माध्यम से शैक्षिक वातावरण को नियंत्रित करता है तथा कक्षा में अधिगम कार्य को सुगम, सरल तथा उपयोगी बनाने में सहायता करता है।”

डेविड मैरिल (David Merrill) के अनुसार, “अनुदेशन प्रारूप एक प्रक्रिया है जो विशिष्ट वातावरण सम्बन्धी दशाओं को विशेष रूप से वर्णित करती या उत्पन्न करती है जो सीखने वालों को इस रूप में अन्तःक्रिया के लिए प्रेरित करने का कारण बनती है जिससे उनके व्यवहार में एक विशिष्ट परिवर्तन उत्पन्न होता है।”

अनुदेशन के प्रकार- आज के आधुनिक एवं जटिल समाज में शिक्षा से सम्बन्धित अनेक जटिल समस्यायें विद्यमान हैं और इन समस्याओं के निराकरण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अनुदेशन प्रारूप के अनेक प्रकारों का जन्म एवं विकास हुआ है। इनमें से अनुदेशन के तीन प्रमुख प्रकारों का उल्लेख हम यहां करेंगे। यह तीनों प्रारूप बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और एक दूसरे पर आश्रित और एक दूसरे के पूरक भी हैं। यह तीनों ही शिक्षा तकनीकी के तीनों पदों अदा (Input) प्रक्रिया (process) प्रदा (Output) से पूर्ण रूप से सम्बन्धित हैं।

1. प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप (Training Phycology Design)- प्रशिक्षण मनोविज्ञानिक प्रारूप का प्रारम्भ सैनिक आवश्यकताओं के कारण अस्तित्व में आया। सेना में बमवर्षक पायलटों के प्रशिक्षण में इस प्रारूप को इस्तेमाल किया गया। इसमें एक सीधी विश्लेषण प्रणाली को अपनाया जाता है जिससे प्रशिक्षण अंगों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। धीरे-धीरे यह विधि शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रयोग की जाने लगी और प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रचुर मात्रा में इसका इस्तेमाल प्रारम्भ हो गया। इसके द्वारा प्रशिक्षण के दौरान किये जाने वाले कार्यों का विश्लेषण करके भिन्न सार्थक उद्देश्यों को खोजा जाता है। प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप के मुख्य तीन स्तर हैं- 1. कार्य तत्वों की पहचान करना। (Identification of Task Components) 2. कार्य तत्त्वों को प्राप्त करने का प्रयास करना। (Attempt to Achieve the Task components) 3. अधिगम परिस्थिति की व्यवस्था करना। (Organization of Learning Situation)। 1960 के दशक में इस प्रारूप पर काफी शोध कार्य हुए जिसके फलस्वरूप प्रशिक्षण मनोविज्ञान पर आधारित अनेक प्रतिमानों की स्थापना विश्व भर में हुई। इनमें से कुछ प्रमुख प्रतिमान हैं- 1. जॉर्जिया शिक्षा प्रतिमान (Georgia Educational Model), 2. फ्लोरिडा मॉडल (Florida Model), 3. शैक्षणिक निर्देश (Instructional Models Guides), 4. विसकोन्सिन विश्वविद्यालय प्रतिमान (Wisconsin University Model), 5. मिशीगन स्टेट (Michigan State Model), 6. सिराव्यूज मॉडल (Syracuse Model), 7. प्रशिक्षण कालेज मॉडल (Teachers College Model), 8. रीजनल लेबोरेट्री मॉडल (Regional Laboratory Model), 9. टीचर्स फार दी रियल वर्ल्ड मॉडल (Teachers for the Real world Model),

प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप की प्रशिक्षण के क्षेत्र में बहुत उपयोगिता है। इसने प्रशिक्षण महाविद्यालयों में शिक्षण प्रशिक्षण के प्रतिमानों को विकसित कर प्रशिक्षण क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अनुदेशन विकास में यह प्रारूप बहुत सहायक सिद्ध हुआ है और अभिक्रमिक अधिगम का विकास संभव हो सका है। इससे प्रशिक्षण महाविद्यालयों में अधिगम की परिस्थिति अधिक्रम एवं विश्लेषण और उनके अनुरूप शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में बहुत सहायता मिलती है। छात्रों की वैयक्तिक भिन्नताओं को भी इस प्रारूप में ध्यान में रखा जाता है और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विकास एवं सुधार में यह बहुत ही सहायक है। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम निर्माण तथा अन्य अनुदेशन सामग्री के निर्माण में यह प्रारूप सराहनीय योगदान करता है।

2. सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप (Cybernetics Design)- अंग्रेजी का साइबरनेटिक शब्द ग्रीक भाषा के शब्द काइबरनेट से बना है जिसका अर्थ है पायलट अथवा प्रशासक। शाब्दिक अर्थों में सम्प्रेषण नियन्त्रण एक प्रकार के नियन्त्रण अथवा प्रशासन व्यवस्था का ही एक स्वरूप है। अतः कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप की प्रक्रिया छात्रों के व्यवहार को नियन्त्रित करके उनके व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन लाती है। दूसरे शब्दों में छात्रों के व्यवहार का नियन्त्रण एवं प्रशासन करते हुए उनके व्यवहार में परिवर्तन लाना ही सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप का मुख्य ध्येय है। सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप के तीन मुख्य तत्व हैं। वे हैं- 1. अदा (Input) 2. संसाधक (Processor) और 3. प्रदा (Output), अदा को ज्ञानेन्द्रियाँ (Sensory Organs) अवबोध (Understanding) ( स्मरण (Memory), और चिन्तन (Thinking), के द्वारा संपादित करके प्रदा (Output) को प्राप्त किया जाता है। सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप में दो प्रकार की व्यवस्था होती है मुक्त पाश व्यवस्था और बन्द व्यवस्था। खुली व्यवस्था में प्राप्त उपलब्धि का प्रभाव भविष्य में होने वाले कार्यों पर नहीं पड़ता। अदा तथा प्रदा दोनों ही प्रभावमुक्त अवस्था में रहती हैं किन्तु बन्द व्यवस्था में उपलब्धि सम्पूर्ण व्यवस्था का अंग बन जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप शिक्षण अधिगम को अधिक प्रभावशाली बनाने का एक माध्यम है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका विशेष महत्त्व है।

सूचना संचार के साधनों का वर्णन कीजिए।Describe the means of information communication.

जहां तक नियन्त्रण का प्रश्न है इसके द्वारा छात्रों के व्यवहार को नियन्त्रित किया जा सकता है। पृष्ठपोषण के रूप में बालक के व्यवहार को नियोजित कर शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त *किया जा सकता है। सम्प्रेषण शिक्षण को प्रभावशाली बनाता है और छात्र अनुक्रिया की पुष्टि करते हुए शिक्षण के आधार पर पुनर्बलन की दिशा में प्रगति करता है। पुरस्कार एवं दण्ड के माध्यम से बालकों के व्यवहार को नियन्त्रित करता है। मानवीय गुणों का विकास एवं वृद्धि करता है। संक्षेप में शिक्षा तकनीकी के क्षेत्र में सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं।

3. प्रणाली प्रारूप (System Design – सेना में प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णयों को तीव्र गति के साथ क्रियान्वित करने के उद्देश्य से द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रणाली प्रारूप का जन्म हुआ। लेकिन धीरे-धीरे इसकी व्यापकता इतना बढ़ती चली गयी कि आज यह सभी विज्ञानों, सामाजिक विज्ञानों, व्यवसाय तथा प्रबंध तन्त्रों में प्रयोग में लाया जा रहा है। प्रणाली शब्द का अर्थ एक निश्चित वैज्ञानिक व्यवस्था से है जिसमें किसी कार्य या उद्देश्य के सूक्ष्म घटकों में आपसी सम्बद्धता और समरूपता होती है। वैबेस्टर शब्दकोष में प्रणाली प्रारूप को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “प्रणाली प्रारूप एक निरन्तर अन्तःक्रिया या स्वतन्त्र क्रियाओं का समूह है जो एकरूपता धारण कर लेता है।”

“A System is a group of objects related to interacting so as to form a unity”- Webesters Dectionary.

प्रणाली उपागम में निम्न पद विद्यमान रहते हैं- 1. स्थायी परिस्थिति का विश्लेषण करना, 2. ऐच्छिक परिस्थितियों के लिए उद्देश्य निर्धारित करना, 3. उद्देश्यों के मूल्यांकन के लिए यन्त्र रचना का परिभाषीकरण करना, 4. द्विपक्षीय समाधानों को उत्पन्न करना, 5. मूल्य लाभ के आधार पर सर्वोत्तम समाधान प्राप्त करना, 6. व्यवस्था प्रारूप का वर्णन करना, 7. व्यवस्था के लिए यन्त्रों की रूपरेखा तैयार करना और समाधान की जानकारी प्राप्त करने के लिए कार्य करना। प्रणाली उपागम का शिक्षा एवं अनुदेशन के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रणाली उपागम अनुदेशन के परिभाषीकरण, अनुदेशन के उद्देश्यों के निर्धारण और व्यक्तिगत गुणों का ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अनुरूप शिक्षण विधियों के चुनाव में और अधिगम के अनेक विकल्पों में से किसी एक विकल्प के चुनाव करने में यह बहुत उपयोगी है। छात्रों के लिए उपयुक्त पाठ्य सामग्री एवं वातावरण का चयन भी प्रणाली उपागम द्वारा सरलता से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त शिक्षण कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने में भी प्रणाली उपागम बहुत महत्त्वपूर्ण है।

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