साइबर अपराध – एक गंभीर समस्या|Cyber crime – a serious problem
इंटरनेट ने समूचे विश्व की सीमाओं को लांघकर ज्ञान, सूचना और संपर्क की क्रांति को सभी व्यक्तियों तक उपलब्ध कराया है।
ज्ञान और अभिव्यक्ति के विस्तारित फलक पर सुवधिाओं की गति म उल्लेखनीय त्वरितता आयी है, लेकिन विकृत मानसिकताओं के चलते इस व्यवस्था के दुरूपयोग के मामले ज्यादा ही सामने आ रहे हैं। प्रायः अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सभी सम्मलेनों में साइबर क्राइम चर्चा का गंभीर विषय बन युका है।
वस्तुतः इंटरनेट ने एक ओर जहां हमारी जिन्दगी को रोमांचक और आसान बना दिया है, वहीं तमाम ऐसे खतरे भी पैदा कर दिए है, जो घटित होते हैं तो जिन्दगी को पटरी से उतरते भी देर नहीं लगती। यह सच है कि आज हम इंटरनेट के कारण एक-दूसरे के इतने करीब आ गए हैं कि हमें किसी भी जानकारी को हासिल करने में एक मिनट भी नहीं लगता।
इंटरनेट ने आज की आपाधापी में समय की, सबसे बड़ी बचत की है, वहीं किसी काम को करने में संसाधनों पर जो पूंजी खर्च होती थी, वह आधे से भी कम हो गई है। मैनपॉवर का पहले से कहीं ज्यादा बेहतर इस्तेमाल हो रहा है। इंटरनेट ने हमारी जिन्दगी को अनुशासन, सलीका और सुनिश्चितता दी है। विश्व में डेढ़ अरब से ज्यादा लोग इंटरनेट सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं।
इंटरनेट पर अपराध का एक समृद्ध संसार विकसित हो रहा है। इस आपराधिक संसार के मुख्य अवयव हैं- ट्रोलिंग, सूचना की चोरी, यौन अपराध, पोर्नोग्राफी, वायरस अटैक, आदि। साइबर अपराधों का दो तरह वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i) एक लक्ष्य के रूप में कंप्यूटर (अन्य कंप्यूटरों पर आक्रमण करने के लिए एक कंप्यूटर का उपयोग) जैसे कि हैकिंग, वायरस वर्क्स आक्रमण, DOS आक्रमण, इत्यादि।
(ii) एक शस्त्र के र रूप में कंप्यूटर (वास्तविक विश्व अपराध करने के लिये एक कंप्यूटर का उपयोग) जैसे कि साइबर आतंकवाद बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन/आईपीआर वायोलेशन्स, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, ईएफटी धोखाधड़ी, अश्लीलता, इत्यादि।
आज ऑनलाइन फ्रॉड और धोखाधड़ी के मामले तो दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं। इंटरनेट ने तमाम ऐस खतरों को भी जन्म दिया है, जिनसे बचने के लिए आज तमाम सुरक्षा कवच और कानूनों की जरूरत महसूस की जा रही है। इंटरनेट के खतरों से अमेरिका जैसा विकसित देश भी अछूता नहीं है और भारत जैसा विकासशील देश भी इन खतरों से जूझ रहा है।
विश्व के प्रायः सभी देशों में इस तरह के अपराधों की गिरफ्त बढ़ी है। भारत में तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही भयावह एवं विकारल है। पुलिस की जानकारी साइबर अपराधों को लेकर शून्य है। पिछले दिनों देश में कई बड़े साइबर अपराध हुए, करोड़ों रूपयों का वारा-न्यारा साइबर अपराधियों ने साइबर अपराध करके चुटकी बजाते कर दिया। न जाने कितने एटीएम साइबर अपराधियों की करतूतों से खाली हो गए। लेकिन साइबर अपराध जगत में यह सब कुछ मामूली अपराधों के दायरे में आता है।
आज साइबर अपराधों का जो वैश्विक परिदृश्य सामने है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इंटरनेट का दुरूपयोग भी इंटरनेट के जानकार, कला मानने लगे हैं। सुरक्षा सिस्टम को भेदने वाले हैकर्स होना भी सम्मानजनक बात हो गई है। किस्म-किस्म के वायरसों के जरिए साइबर सुरक्षा कवच को नुकसान पहुंचाना साइबर अपराध जगत में इन दिनों धड़ल्ले से हो रहा है। आज किसी का चेहरा और किसी का धड़ जोड़कर मोर्किंग के जरिए पोर्नोग्राफी, पेडोफाइल (बाल यौन शोषण) से लेकर लिंग निर्धारण के अपराध भी साइबर जगत के लोकप्रिय अपराध बन चुके हैं। इंटरनेट के जरिए आतंकवाद को प्रोत्साहित करने की घटनाएं रोज देखने को मिल रही हैं। अब आतंकवादी बम के साथ-साथ ‘माउस’ से भी धमाका करने लगे हैं। साइबर गतिविधियों के द्वारा धार्मिक-राजनीतिक उन्माद पैदा करना साइबर आतंकवाद के अंतर्गत आता है। यह किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा को सामप्त कर सकता है।
वैसे इस समस्या पर अंकुश लगा पाना किसी एक देश के वश की बात नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है और इसका समाधान भी वैश्विक स्तर पर ही तलाशा जा सकता है। भारत में साइबर अपराधों को लेकर सजगता के संदर्भ में वर्ष 2000 में आईटी रेग्यूलेशन एक्ट, 2000, नाम से एक विशेष कानून बनाया गया परंतु यह कानून न तो प्रभावी है और न ही सख्त साइबर अपराधों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए इसमें अपेक्षित व्यावहारिकता और सख्ती ही है। देश में ऑनलाइन सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ ही साइबर विशेष थानों की संख्या नितांत रूप से अपर्याप्त है।
यूरोप और अमेरिका साइबर अपराधियों से विश्व में सबसे ज्यादा परेशान हैं। साइबर अपराधों के कारण अमेरिका और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है। साइबर चौकसी बरतने के लिए भी भारी-भरकम खर्च उठाना पड़ता है।
इंटरनेट पर उपलब्ध पोर्न साइटें सांस्कृतिक व वैचारिक प्रदूषण को हद दर्जे तक बढ़ा रही हैं। अपराधियों का नया शिक्षित वर्ग तैयार हो रहा है, जो इसे अपराध के बजाय मानसिक कलाबाजी के संदर्भ में देखता है।
साइबर अपराधों से जुड़ा सबसे जटिल पक्ष यह। है कि इन्हें विश्व के किसी भी कोने में बैठकर अंजाम दिया जा सकता है। साइबर अपराध के समय इंटरनेट को सिग्नल्स किस सर्वर से मिले, इसे जानना आसान नहीं है। और फिर यह तो और भी मुश्किल है कि कोई देश किसी दूसरे देश के सर्वर से संचालित हो रही वेबसाइट को ब्लॉग कर दे। हर देश का आईटी एक्ट अलग होता है। किसी आपत्तिजनक या संदेहास्पद वेबसाइट को ब्लॉक करने से उस देश की सरकार ही मना कर सकती है।
विदेशों में सरकारें किसी वेबसाइट को ब्लॉक करने के बजाये उसे सुधारने में विश्वास करती हैं जबकि भारत में वेबसाइट को ही बंद करने की मांग शुरू हो जाती है। भारतीय आईटी एक्ट में यह प्रावधान है कि किसी वेबसाइट को तब तक बंद नहीं किया जा सकता, जब तक की उस पर डाली जा रही सामग्री या सूचनाएं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा न हों। किसी वेबसाइट को बंद कर देने से समस्या का समाधान नहीं हो जाता। वेबसाइट बहुत बार समस्या का प्रचार करती है, खुद समस्या नहीं होती। इसलिए समस्याओं का निदान कई बार सामाजिक परिवर्तन से जड़ा होता है। लेकिन मामला अगर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है तो विधि मंत्रालय भी मानता है कि कोई भी वेबसाइट हो, उसे ब्लॉक कर देना ही उचित है।
मई, 2017 में विश्व के अधिकांश देशों में रैनसमवेयर हमले के कारण करोड़ों की संख्या में कम्प्यूटर प्रभावित हुए। वानाक्रिप्ट या वानाक्राई नाम के रैनसमवेयर के प्रभाव से उपयोगकर्ता किस फाइल को या पूरे कम्प्यूटर को ही प्रयोग नहीं कर पाता। इन्हें पुनः सक्रिय करने हेतु साइबर अपराधियों मोटी रकम की मांग की जाती है।
साइबर अपराधियों के चंगुल में आने से बचने के लिए इंटरनेट पर सावधानी ही सबसे बड़ी सरक्षा है। अनजाने ई-मेल के साथ आए अटैचमेंट के रूप में सबसे ज्यादा वायरस आने का खतरा रहता है। संदिग्ध मेल के अटैचमेंट्स को बिना जांचे-परखे डाउनलोड न करें। इंटरनेट पर किसी से भी अपना पूरा नाम, सही पता, फोन नंबर और बैंक खाते से संबंधित सूचनाएं शेयर न करें।
यदि कोई साइट किसी उपभोक्ता से रजिस्ट्रेशन के बहाने कोई सूचना या ई-मेल का पासवर्ड मांगती है, तो वह उसे कदापि न दें। उपभोक्ताओं के ई-मेल डाटा विज्ञापनदाता कंपनियों को बेचने का धंधा बहुत तेजी से चल रहा है। ऑनलाइन शॉपिंग करें लेकिन सावधान रहें। साइबर कैफे में काम के बाद, अपनी इंटरनेट फाइलें वहां से जरूर हटा दें। इंटरनेट पर दोस्ती जरूर करें लेकिन किसी लुभावने प्रस्ताव की तरफ आकर्षित न हों।
देश में साइबर अपराधों से प्रभावी तौर पर निपटने के लिए योजनाएं तैयार की गई हैं। इनके माध्यम से बाल अध्लीलता और ऑनलाइन ट्रॉलिंग उत्पीड़न जैसे अपराधों पर प्रमुखता से कार्य किया जा रहा है। इसके अलावा साइबर अपराध की इलेक्ट्रानिक जांच में सहयोग और समन्वय तथा आपराधिक जांच में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सहयोग प्रदान किया जा रहा है।
इसी क्रम में भारत सरकार द्वारा विभिन्न के साथ साइबर अपराध से मुकाबले के लिए समझौते भी किये जा रहे हैं। इन समझौतों के तहत स्पष्ट अतंःप्रचालनीय, सुरक्षित और विश्वसनीय साइबर स्पेस माहौल के लिए बचनबद्धता व्यक्त की गयी है।
इंटरनेट के तमाम सुविधाओं की मोहक सौगात के रूप में प्रतिस्थापित होने के क्रम में जरूरी हो गया है कि हम इसकी खामियों को खत्म कर इसे निरापद बनाएं। आज शिष्ट वातावरण के वृजन और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर वैश्विक स्तर पर मंथन की तीव्र आवश्यकता है।
हमें आशा करनी चाहिए कि आगामी वर्षों में विशेषज्ञ इंटरनेट से जुड़े सार्थक सुरक्षा कवच को विकसित करने में सफल हो जाएंगे। तब तक सक्रियता और सजगता से इसके लाभों का उपयोग किया जाना चाहिए।
Important Link
- पाठ्यक्रम का सामाजिक आधार: Impact of Modern Societal Issues
- मनोवैज्ञानिक आधार का योगदान और पाठ्यक्रम में भूमिका|Contribution of psychological basis and role in curriculum
- पाठ्यचर्या नियोजन का आधार |basis of curriculum planning
राष्ट्रीय एकता में कौन सी बाधाएं है(What are the obstacles to national unity) - पाठ्यचर्या प्रारुप के प्रमुख घटकों या चरणों का उल्लेख कीजिए।|Mention the major components or stages of curriculum design.
- अधिगमकर्ता के अनुभवों के चयन का निर्धारण किस प्रकार होता है? विवेचना कीजिए।How is a learner’s choice of experiences determined? To discuss.
- विकास की रणनीतियाँ, प्रक्रिया के चरण|Development strategies, stages of the process
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