समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा: कारण, प्रभाव और समाधान
जून माह के प्रारम्भ में न्याय के आकांक्षी समाज को तब एक राहत की खबर मिली जब एक वर्ष पूर्व जम्मू कश्मीर के कतुआ जिले में रहने वाली आठ वर्ष की मासूम के साथ दरिंदगी करने वालो को न्यायालय ने सजा सुनाई। दर्द, हताशा, निराशा, आक्रोश के एक वर्ष के लंबे इंतजार के बाद अपराधियों को मिली इस सजा से अभी न्याय का आकांक्षी समाज इससे पहले खुशी की एक मुस्कान ओढ़ पाता कि अलीगढ़ में 2 वर्ष की मासूम बच्ची के साथ हुए हैवानियत की घटना सामने आ गई। अलीगढ़ कांड की लपटें अभी शांत भी नहीं हुई थी कि कानपुर में एक मौलाना सामने आ गया और अभी पिछले दिनों महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के बीड में गन्ने के खेतों में महिला श्रमिकों को काम पर रखने से पूर्व उनके गर्भाशयों को निकलवाने की गन्ना खेत मालिकों की अमानवीय शर्त, जिसे न जाने कितनी मजबूर मजदूर औरतें मानने को विवश हो गई। महिलाओं/ बच्चियों का अपहरण, उनके साथ अनैतिक कार्य करना, उन्हें जबरन देह व्यापार के धंधे में संलिप्त करना, मारना-पीटना, जला देना, तेजाब फेंक देना, ऑनर किलिंग या खुदकुशी करने को मजबूर ‘कर देना जैसी घटनाएं आज भारतीय समाज में महिलाओं के साथ घटित होने वाली आम घटनाएं बन चुकी हैं, जो बताता है कि हमारा भारतीय समाज कितना अमानवीय और असंवेदनशील हो चुका है।
स्त्री एवं पुरूष इस समाज के दो अभिन्न अंग हैं। किसी एक के बिना इस समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से हमारा ये भारतीय समाज एक पुरूषवादी समाज है, जहां पुरूषों ने अपने स्त्री से श्रेष्ठ होने के पद का प्रयोग अन्यायपूर्ण रूप से स्त्री अपनी दासी या उपभोग की वस्तु बनाने के लिए किया है, जिसके कारण पुरूषवादी समाज शब्द से पूर्व दुर्भाग्यपूर्ण शब्द जोड़ना प्रासंगिक हो जाता है।
महिलाओं के प्रति हिंसा का प्रारंभ उनके गर्भ में अस्तित्व के आते ही प्रारंभ हो जाता है। ‘लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम, 1994’ के प्रभावी क्रियान्वयन ने यद्यपि अब जन्म से पूर्व कन्या भ्रूण साथ होने वाले इस विभेद को काफी हद तक रोका है, लेकिन अल्ट्रासाउण्ड किए जाने वाले संस्थानों में लटकता ‘लिंग की जांच कराना कानून अपराध है’ का बोर्ड बताता है कि हमारे. समाज में आज भी कन्या भ्रूण के हत्यारे मौजूद हैं।
महिलाओं के जीवन में उनके प्रति होने वाली हिंसा की शुरूआत उनके अपने जनक परिवार से होती है। जहां उन्हें जीवन भर ‘पराया धन’ कहकर उस परिवार से अलग माना जाता है और कई बार अपने ही सहोदर भाई की तुलना में कमतर आंका जाता है। एक महिला में उसके लिंग के प्रति हीन भावना का प्रत्यारोपण उनके अपने परिवार से किया जाता है। बाल्यकाल से मानसिक हिंसा की शिकार हुई ये बच्चियां प्रायः अपने साथ होने वाले अन्याय का प्रतिरोध नहीं ‘कर पाती या इस अन्याय पूर्ण वातावरण से आजादी के रास्ते खोजने के प्रयास में अराजक तत्वों का आसान निशाना बन जाती हैं, जो बड़ी आसानी से बच्चियों, किशोरियों की इस मनोदशा का लाभ उठाकर उनका यौन शोषण करते हैं अथवा बहला-फुसलाकर अपहरण कर या भगाकर उनहें जबरन अनैतिक देह व्यापार के क्षेत्र में ढकेल देते हैं।
कम उम्र में विवाह, या विवाह के नाम पर लड़कियों को उनके पसंद का जीवनसाथी न चुनने का अवसर देना, कॅरियर के बेहतर विकल्प चुनने से रोकना, या विवाह के नाम पर उन्हें एक ‘शो-पीस’ बनाकर परोसना, विवाह के पश्चात् वही तेरा घर है, कहकर ससुराल पक्ष के समस्त अन्याय को उसे सहने को मजबूर करना, उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन बना देना या घर के सभी सदस्यों के इशारे पर नाचने वाली गुड़िया के रूप में परिणति कर देने जैसी मानसिक यातनाओं को आम भारतीय महिला के साथ होने वाली मानसिक हिंसा के रूप में स्वीकार्य भी नहीं कर पाता।
अनेक तरह की सामाजिक, मानसिक सीमाओं से घिरी एक भारतीय महिला का अखिर इन शोषणों एवं अन्याय से मुक्ति का विकल्प क्या है? निःसंदेह एक लोकतांत्रिक, कल्याणकारी राज्य होने के नाते, अपने समाज की आधे की भागीदारी, दबित भारतीय नारी को इन शोषणों से उन्मुक्ति का दायित्व भारतीय सरकार का है। यही कारण रहा कि स्वतंत्रता पश्चात् भारत सरकार ने संविधान निर्माण के दौरान महिलाओं को पुरूषों के समान समस्त अधिकार और अवसर प्रदान किए तथा महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों को परिभाषित करते हुए उनके खिलाफ कई प्रकार के दंड का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में प्रदान किया गया।
वास्तव में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं या अन्यायों का महत्वपूर्ण कारण उनका निर्बल होना रहा है। शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, आदि दृष्टिकोण से महिलाएं स्वयं को अशक्त पाती थीं और यही अशक्तता उनके समाज में दोयम स्थान और हिंसा का महत्वपूर्ण कारण है। यही कारण रहा कि नारी के हितों के संरक्षण और उसके साथ होने वाले अन्यायों से उसे बचाने के लिए पांचवींय योजना से महिलाओं को सशक्त करने का अभियान ठोस स्तर पर प्रारंभ हुआ।
महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़नों में एक बड़ा भाग दहेज उत्पीड़न मामलों का रहा, जिसे देखते हुए वर्ष 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया, जिसे समय के साथ अधिक शक्तिशाली विभिन्न संशोधनों के द्वारा बनाया गया। दहेज के साथ घरों में होने वाली कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक शोषण से उनके बचाव के लिए वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा बिल लाया गया, जो भारतीय महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने वाला एक सशक्त कानून है। वर्ष 1992 में अस्तित्व में आया राष्ट्रीय महिला आयोग, महिलाओं के साथ होने वाले विभिन्न शोषणों के विरूद्ध एक प्रखर एवं सशक्त आवाज साबित हुआ, जो स्वतः संज्ञान लेकर भी पीड़ित महिला के न्याय के लिए खड़ा होता दिखा।
दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सरकार ने महिलाओं के साथ हाने वाली इस प्रकार की जघन्य घटनाओं के रोकथाम के लिए इन अपराधों से जुड़े प्रावधानों एवं दंडात्मक कार्यवाही को पहले की तुलना में काफी कठोर बना दिया। तो तेजाब पीड़ित और सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी अग्रवाल के प्रयास से बलात्कार, तेजाब पीड़िताओं के लिए सरकार से 5 से 10 लाख रूपये सहायता राशि का प्रावधान इस प्रकार कि हिंसा को झेल चुकी महिलाओं के जीवन को स्वावलंबी और सम्मानजनक बनाने में काफी मददगार हो सकता है।
निःसंदेह महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण प्रयास किए जा चुकें हैं और किए जाने शेष भी हैं। महिलाओं के साथ होने वाली हिंसात्मक गतिविधियों का प्राथमिक उपचार महिला कां स्वयं सशक्त और सक्षम होना है, जिससे वह अपने साथ होने वाले सभी तरह के शोषणों से स्वयं की रक्षा कर सके, इकसे लिए उसे आत्मनिर्भर और सशक्त बनना है। बालिका शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए उनका कौशल विकास करना भी महत्वपूर्ण है, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनने में सहायक होगा। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि महिला कौशल विकास या उद्यमिता विकास का लाभ महिला तक पहुंच सके, इसके देख- रेख की विशेष जिम्मेदारी भी सरकार को निभानी चाहिए।
समाज में महिलाओं की जैसे-जैसे भागीदारिता बढेगी, पुरूषवादी मानसिकता का सर्वश्रेष्ठता का अहंकार टूटेगा जो एक घर में महिला के साथ होने वाली मानसिक प्रताणना को समाप्त करने की दिशा में प्रभावी होगा। एक आत्मनिर्भर महिला अपने जीवन साथी का खुद चुनाव करेगी, तो समाज से दहेज रूपी दैत्य का प्रभाव भी धीरे-धीरे खत्म होगा। इसके लिए विभिन्न सरकारी, गैर- सरकारी संस्थाओं में महिला कर्मचारियों की भर्ती को बल देना चाहिए। राष्ट्र के नीति, निर्माण में महिलाओं की भागीदारिता बढ़ाकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने और उनके हितों के लिए नीति निर्माण करने में भी मदद मिलेगी। इसलिए महिला आरक्षण के बिल को संसद से पास कराने का प्रयास तेज होना चाहिए।
त्वरित न्यायाव्यवस्था का विस्तार और महिलाओं से जुड़े अपराधों की जांच और कार्यवाही के लिए महिला अधिकारी की संख्या भी बढ़नी चाहिए, जो पीड़िता के साथ संवेदनशील होने के साथ-साथ अपराधियों की कलुषित भावना पर आघात करेगी।
SHe-BoxApp, पैनिक बटन जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं के द्वारा प्रभावी त्वरित कार्यवाही तंत्र विकसित करके महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।
शराब बंदी, ट्रिपल तलाक, हलाला निषेध, मी टू, माई च्वाइस जैसे अभियान महिलाओं के अपने हितों के लिए जागरूक हो रही महिलाओं की छवि प्रस्तुत करते हैं, जो निश्चित रूप से एक सबल महिला समाज निर्माण की दिशा में बढ़ा एक प्रगतिशील प्रयास है। यहां अंत में एक बेहद महत्वपूर्ण तथ्य यह कि हमें एक सशक्त विकासशील समाज के लिए न सिर्फ सबल महिला की आवश्यकता है? अपितु सबलता, सक्षमता के साथ-साथ उसके जिम्मेदार, परिपक्व नागरिक के रूप में अपेक्षाएं भी हैं। अतः महिलाओं के हितों के रक्षण के लिए मिले उसे विभिन्न प्रावधानों के अवसरों का उपयोग जिम्मेदारीपूर्ण तरीके से करना अनिवार्य है। जिस समाज में विकास का सभी को अवसर और सम्मान का सभी को अधिकार प्राप्त होता है। सही आर्थों में वही समाज विकास कर पाता है और प्रगतिशील बन पाता है।
Important Link
- तीन तलाक – महिलाओं के आत्मसम्मान की दिशा में ऐतिहासिक निर्णय|Triple Talaq – Historic decision towards women’s self-respect in Hindi
- भारत के लिए सौर ऊर्जा की उपादेयता|Usefulness of solar energy for India
- साइबर अपराध – एक गंभीर समस्या|Cyber crime – a serious problem
- PM Modi Praises The Sabarmati Report on Godhra Incident
- भारतीय चंद्र मिशन – चंद्रयान 2|Indian Lunar Mission – Chandrayaan 2
- कौशल विकास योजना – चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development Scheme – Challenges and Format
- स्वच्छ भारत अभियान|Swachh Bharat Abhiyan
Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com
Leave a Reply