लघु कथा, कहानी एवं उपन्यास|Short story, story and novel

लघु कथा, कहानी एवं उपन्यास|Short story, story and novel

लघु कथा, कहानी एवं उपन्यास|Short story, story and novel

अर्थ- लघु कथा लेखन (Laghu Katha Lekhan) को हिंदी और अन्य भाषाओं में “लघु कथा लेखन” या “छोटी कहानी लेखन” के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटी सी कहानी होती है जो एक सीमित वक्तांतर में विकसित होती है। इसमें एक प्रमुख कथाधारा होती है जिसे संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है। यह कथा कुछ प्रमुख विचारों, भावनाओं और संघर्षों के साथ एक अच्छी दिलचस्पी पैदा करती है।

लघुकथा लेखन का मुख्य उद्देश्य छोटे से वक्तांतर में एक संवेदनशील, सुंदर और संगठित कहानी को प्रस्तुत करना होता है। इसमें पात्रों की विशेषताएं, दिलचस्पी पैदा करने वाली परिस्थितियाँ और कहानी के नायक-नायिकाओं के सामंजस्यपूर्ण संघर्षों का वर्णन होता है।

लघुकथा लेखन का महत्वपूर्ण पहलु यह है कि इसमें छोटे समय में पूरी कहानी को खत्म किया जाता है, जिससे उपायुक्त समय य के अंतर्गत भी पाठक को आनंद मिलता है। यह छोटे बच्चों से लेकर वयस्कों तक किसी भी उम्र के पाठकों को मनोरंजन करने का एक अच्छा माध्यम है।

लघुकथा लेखन का अभ्यास विभिन्न विधाओं में कक्षा या संस्थानों में किया जाता है और इससे छात्रों के रचनात्मक कौशल विकसित होते हैं और उन्हें बेहतर विचार-संवाद करने की क्षमता प्राप्त होती है।

लघु कथा की परिभाषा – लघु कथा, जिसे छोटी कथा या संक्षेप कथा भी कहते हैं, एक संगठित कहानी है जो एक सीमित वक्तांतर में विकसित होती है। इसमें एक प्रमुख कथा धारा होती है जिसे संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार की कथाएँ साधारणतया एकल इवेंट या प्रसंग पर आधारित होती हैं और उनमें एक मुख्य कथानक या सन्देश होता है।

लघु कथा, कहानी एवं उपन्यास|Short story, story and novel

लघु कथाएँ अपने संक्षेप में रहने के कारण सुगम और सरल भाषा में लिखी जाती है। इनमें वाक्य, पैराग्राफ और संवादों का का उपयोग होता है, जो कथा को अधिक सुरुचिपूर्वक बनाता है। लघु कथा अक्सर एक अच्छे प्लॉठ और अच्छे पात्रों के साथ संवेदनशीलता को सम्मिलित करती है।

लघु कथा की प्रमुख विशेषताएँ

कथानक- जहाँ कहानी के कथानक में घटनाओं का विस्तार होता है वहीं लघु कथा
के कथानक में घटनाओं के विस्तार का अभाव होता है। कहानी में जहाँ संघर्ष की तीव्रता होती है वहीं लघु कथा में संघर्ष की तीव्रता नहीं होती है।

पात्र-योजना – कहानी की तुलना में लघु कथा में पात्रों की संख्या एक-दो तक ही सीमित होती है। लघु कथा में मानव के अलावा पशु-पक्षी भी हो सकते हैं।

कल्पना की उड़ान – लघु कथा में यथार्थ के साथ-साथ काल्पनिक अभिव्यक्ति भी हो सकती है। अर्थात लघु कथा में राजा, रानी, पशु-पक्षी आदि काल्पनिक पात्र भी हो सकते हैं और काल्पनिक घटनाएँ भी।

शैलीं- लघु कथा में लेखक अपनी बात संकेतों के माध्यम से व्यक्त करता है। अतः ‘संकेतात्मकता’ लघु कथा की शैली का विशिष्ट गुण है। लघु कथा लेखक में किसी बात को संक्षेप रूप में कहने की योग्यता होनी चाहिए। शैली की दृष्टि से लघु कथा किसी गद्य-गीत- जैसी सुगठित होती है।

उपदेशात्मकता – लघु कथा में कोई-न-कोई उपदेश अवश्य होता है। अतः उपदेशात्मकता भी उसका प्रमुख गुण है।

संक्षिप्तता – लघु कथा का सारा कलेवर उसकी लघुता में निहित होता है। अतः कहानी की तरह उसमें विस्तार की गुंजाइश नहीं होती।

उद्देश्य – लघु कथा में उसका कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य निहित रहता है। ‘लघु कथा’ को पढ़ने के बाद यह उद्देश्य पाठक के समक्ष बिजली की कौंध की तरह अभिव्यक्त हो जाता है। इसमें जो उपदेश दिया जाता है वह भी एक तरह का उद्देश्य हो सकता है। विद्यार्थियों को लघु कथा-लेखन में दक्ष बनाने के लिए अध्यापकों द्वारा निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जा सकती है-

प्रस्थान बिन्दु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(क) प्रस्थान बिंदु – एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाता और उन्हें बेचकर गुजारा करता था। एक दिन वह नदी के किनारे के पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में गिर पड़ी, लकड़हारा सोचने लगा कि अब मैं अपना जीवन-निर्वाह कैसे करूँगा? सोचते-सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गए, वह कुछ देर तक रोता रहा। इतने में नदी से जल-देवता प्रकट हुए। उन्होंने लकड़हारे से पूछा- “तुम रो क्यों रहे हो?” लकड़हारे ने देवता को सारी बात बताई

लघु कथा – एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाता और उन्हें बेचकर गुजारा करता था। एक दिन वह नदी के किनारे के पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में गिर पड़ी, लकड़हारा सोचने लगा कि अब मैं अपना जीवन-निर्वाह कैसे करूंगा? सोचते-सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गए, वह कुछ देर तक रोता रहा। इतने में नदी से जल-देवता प्रकट हुए। उन्होंने लकड़हारे से पूछा- “तुम रो क्यों रहे हो?” लकड़हारे ने देवता को सारी बात बताई। जल-देवता ने कहा, “तुम रोओ मत। मैं अभी जाकर तुम्हारी कुल्हाड़ी लेकर आता हूँ।” जल- देवता नदी के अंदर गए और सोने की एक कुल्हाड़ी लेकर बाहर आए। उन्होंने इसे, लकड़हारे को देते हुए कहा, “यह लो, तुम्हारी कुल्हाड़ी।” लकड़हारा एक ईमानदार व्यक्ति था। उसने कहा कि यह उसकी कुल्हाड़ी नहीं है। तब जल-देवता फिर नदी में गये और एक चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर आए। लकड़हारे ने इस कुल्हाड़ी को भी लेने से मना कर दिया। तीसरी बार जल-देवता लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आए। कुल्हाड़ी को देखते ही लकड़हारा खुश हो गया। उसने कहा, “यही मेरी कुल्हाड़ी है।” लकड़हारे की ईमानदारी देखकर जल-देवता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे तीनों कुल्हाड़ियाँ दे दीं।

शीर्षक – ईमानदार लकड़हारा

शिक्षा- पंचतंत्र की यह प्रेरक लघु कथा हमें शिक्षा देती है कि मनुष्य को कभी भी ईमानदारी का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए, ईमानदारी का फल सदा मीठा होता है।

प्रस्थान बिन्दु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(ख) प्रस्थान-बिंदु – एक बार दो मित्र व्यापार करने के लिए घर से चले। दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि किसी भी मुसीबत के समय वे एक-दूसरे की सहायता करेंगे। चलते-चलते वे दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहुँचे।

जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक भालू आता हुआ दिखाई दिया। भालू को देखकर दोनों मित्र बहुत भयभीत हो गए। भालू को पास आता देखकर एक मित्र तो जल्दी से पेड़ पर चढ़कर पत्तों में छिपकर बैठ गया, दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना ……..।

लघु कथा- एक बार दो मित्र व्यापार करने के लिए घर से चले। दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि किसी भी मुसीबत के समय वे एक-दूसरे की सहायता करेंगे। चलते-चलते वे दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहुँचे।

जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में. से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक भालू आता हुआ दिखाई दिया। भालू को देखकर दोनों मित्र बहुत भयभीत हो गए। भालू को पास आता देखकर एक मित्र तो जल्दी से पेड़ पर चढ़कर पत्तों में छिपकर बैठ गया, दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना नहीं आता था। वह घबरा गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने कहीं सुना था कि भालू मरे हुए आदमी को नहीं खाता, वह झट से अपनी साँस रोककर जमीन पर लेट गया। भालू ने पास आकर उसे सूँघा और मरा हुआ समझकर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद पहला दोस्त पेड़ से नीचे उतरा, उसने दूसरे मित्र से कहा- “उठो दोस्त, भालू चला गया, यह तो बताओ कि उसने तुम्हारे कान में क्या कहा था?” भूमि पर लेटने वाले मित्र ने कहा कि भालू केवल यही कह रहा था कि स्वार्थी मित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

शीर्षक – दोस्त की पहचान

शिक्षा- असली दोस्त की पहचान मुसीबत के समय ही होती है। मित्र वही है जो विपत्ति के समय काम आए। स्वार्थी मित्र से हमेशा दूर रहो।

(ग) प्रस्थान-बिंदु – एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन दोपहर को वह एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। अचानक एक चूहा उसके ऊपर आकर कूदने लगा। इससे शेर की नींद टूट गई। अपने ऊपर चूहे को देखकर वह बहुत क्रोधित हुआ और गरजकर बोला- “तेरी यह हिम्मत ! मैं अभी तुझे जान से मार दूंगा।”

बेचारा चूहा भय से काँपने लगा। उसने शेर से विनती की …….।

लघु कथा- एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन दोपहर को वह एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। अचानक एक चूहा उसके ऊपर आकर कूदने लगा। इससे शेर की नींद टूट गई। अपने ऊपर चूहे को देखकर वह बहुत क्रोधित हुआ और गरजकर बोला- “तेरी यह हिम्मत ! मैं अभी तुझे जान से मार दूंगा।

बेचारा चूहा भय से काँपने लगा। उसने शेर से विनती की- “महाराज, मुझे मत मारिए। मुझे छोड़ दीजिए। वैसे तो मैं बहुत छोटा और दुर्बल हूँ, मगर मैं वादा करता हूँ कि आपका एहसान जीवन भर न भूलूँगा। कभी मौका मिला तो आपकी मदद अवश्य करूँगा।” उसकी बात पर शेर हँसते हुए बोला- “तुम जैसा बहुत ही कमजोर और छोटा जीव, मेरी क्या मदद करेगा? चलो तुम्न कह रहे हो तो मैं तुम्हें माफ करता हूँ।” यह कहकर शेर ने चूहे को छोड़ दिया। एक दिन की बात है, किसी शिकारी ने जंगल में जाल बिछा रखा था। शेर शिकार की तलाश में जंगल में भटक रहा था कि शिकारी के जाल में फँस गया। घबराकर वह दहाड़ने लगा। मगर जाल बहुत मजबूत था। बेचारे शेर की एक न चली। जाल तोड़कर बाहर निकलना उसके लिए संभव नहीं था। चूहे ने दूर से शेर की दहाड़ सुनी तो वह भागकर शेर के पास पहुँचा और उसने देखते-ही-देखते उस जाल को कुतर दिया। जाल के कटते ही शेर उससे आजाद हो गया। जाल से बाहर आकर शेर ने चूहे का आभार व्यक्त किया और उसे धन्यवाद दिया। फिर वे दोनों शिकारी के आने से पहले वहाँ से चले गए।

शीर्षक – शेर और चूहा

शिक्षा- कभी किसी भी जीव को छोटा और कमजोर नहीं समझना चाहिए। हर-प्राणी की कोई-न-कोई उपयोगिता होती है।

संकेत बिंदु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

क) संकेत-बिंदु- 

नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ पर एक बंदर नदी में रहने वाले मगरमच्छ से उसकी मित्रता होना

* मगरमच्छ को खाने के लिए जामुन देते रहना

* एक दिन मगरमच्छ द्वारा कुछ जामुन अपनी पत्नी को खिलाना

* पत्नी का सोचना कि स्वादिष्ट जामुन खाने वाले बंदर का कलेजा मीठा होना

* अपने पति से बंदर का दिल लाने की ज़िद करना

* मगरमच्छ द्वारा बंदर को भोजन पर निमंत्रित करना

* अपनी पीठ पर बंदर को बैठाकर ले चलना

* नदी के बीचोंबीच पहुँचकर भेद खोलना

* बंदर द्वारा धैर्य न खोना

* पेड़ की खोखल में दिल को सँभालकर रखने की कहानी बताना

* दिल लाने हेतु वापस चलने के लिए कहना

* मगरमच्छ द्वारा बंदर को वापस लाना

* बंदर का उछलकर पेड़ पर वापस पहुँचना

* मगरमच्छ से दोस्ती समाप्त करना।

लघु कथा- एक नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ पर एक बंदर रहता था। उसकी मित्रता उसी नदी में रहने वाले मगरमच्छ से हो गई थी। बंदर रोज पेड़ से तोड़कर मीठे-मीठे जामुन खाता था और मगरमच्छ को भी खाने के लिए देते रहता था। एक दिन उस मगरमच्छ ने कुछ जामुन लेकर अपनी पत्नी को भी खिलाए। स्वादिष्ट जामुन खाने के बाद उसकी पत्नी ने सोचा- ‘जब जामुन इतने स्वादिष्ट हैं तो इन जामुनों के खाने वाले बंदर का दिल कितना मीठा होगा।’ उसके दिल में बंदर का कलेजा खाने की इच्छा पैदा हुई और अपने पति से उस बंदर का दिल लाने की ज़िद की। मगरमच्छ ने उसे बहुत समझाया पर वह न मानी। पत्नी के हाथों मजबूर हुए मगरमच्छ ने बंदर से जाकर कहा कि उसकी भाभी उससे मिलना चाहती है। उसने उसको भोजन पर बुलाया है। बंदर ने कहा कि वह पानी में कैसे जा सकता है तो मगरमच्छ ने कहा कि वह उसे अपनी पीठ पर बैठाकर ले चलेगा। अपने मित्र की बात का भरोसा कर, बंदर पेड़ से नदी में कूदा और उसकी पीठ पर सवार हो गया। जब वे नदी के बीचोंबीच पहुँचे तब मगरमच्छ ने भेद खोलते हुए कहा कि उसकी पत्नी उसका दिल खाना चाहती है इसलिए वह उसको अपने साथ ले जा रहा है। मगरमच्छ की बात सुनकर बंदर को बहुत धक्का लगा, लेकिन उसने अपना धैर्य नहीं खोया और बोला- “ओह, तुमने यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई थी क्योंकि, मैंने तो अपना दिल जामुन के पेड़ की खोखल में सँभालकर रखा हुआ है। पहले ही बता देते तो मैं अपनी भाभी के लिए वहीं निकालकर दिल दे देता। अब जल्दी से मुझे वापस नदी के किनारे ले चलो ताकि मैं अपना दिल् लाकर अपनी भाभी को उपहार में देकर; उसे खुश कर सकूँ।” मूर्ख मगरमच्छ बंदर को जैसे ही नदी किनारे लेकर आया, बंदर ने जल्दी से जामुन के पेड़ पर छलांग लगाई और क्रोध में भरकर भोला- “अरे मूर्ख, दिल के बिना भी क्या कोई जिंदा रह सकता है? तूने. मित्रता में धोखा किया है। जा आज से तेरी-मेरी दोस्ती समाप्त।”

प्रस्थान बिन्दु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

शीर्षक- बंदर और मगरमच्छ

शिक्षा – मुसीबत के क्षणों में कभी भी धैर्य नहीं खोना चाहिए तथा मित्रता का सदैव सम्मान करना चाहिए।

शीर्षक के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(क) शीर्षक – अभ्यास की शक्ति-

लघु कथा – प्राचीन भारत में एक बालक था। वह पढ़ाई-लिखाई में बहुत कमजोर था। जब वह पाँच वर्ष का था, तभी वह गुरुकुल शिक्षा के लिए आ गया। दस वर्ष बीत जाने के बाद भी वह आगे नहीं बढ़ पाया। सभी साथी उसका मज़ाक उड़ाते हुए उसे वरदराज, (बैलों का राजा) कहा करते थे। एक दिन गुरु जी ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “बेटा वरदराज” तुम किसी और काम में ज्यादा सक्षम हो सकते हो, इसलिए अपना समय नष्ट मत करो और घर जाओ। कुछ और काम करो।” गुरु जी की बात से वरदराज को बहुत ही दुख पहुँचा। उसने विद्या विहीन होने से जीवन को खत्म करना बेहतर समझा। यह गुरुकुल से चला गया और आत्महत्या करने का उपाय सोचने लगा। रास्ते में उसे एक कुआँ दिखाई दिया। वहाँ महिलाएँ रस्सी से पानी निकाल रही थीं। वह वहीं बैठ गया। तब उसने देखा कि रस्सी के आने- जाने के कारण पत्थर पर निशान पड़ गए हैं। वरदराज ने सोचा कि जब इतना कठोर पत्थर, कोमल रस्सी के बार-बार रगड़ने से घिस सकता है, तो परिश्रम करने से मुझे विद्या क्यों नहीं प्राप्त हो सकती ?

उसने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और गुरुदेव के पास लौट आया। उसने गुरुदेव से कुछ दिन और रखकर शिक्षा देने की प्रार्थना की। सरल हृदय से गुरूदेव राजी हो गए। अब वरदराज ने मन लगाकर अध्ययन करना आरंभ किया। उसमें ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा इतनी हो गई थी कि उसे न अपने खाने-पीने का ध्यान रहता और न ही समय का।

यही वरदराज आगे चलकर संस्कृत के महान विद्वान बनें। लोगों को संस्कृत आसानी से समझ में आए इस बात को ध्यान में रखकर उन्होंने ‘लघु सिद्धांत कौमुदी’ की रचना की, जो संस्कृत का महान ग्रंथ है। यह ग्रंथ पाणिनी के व्याकरण का संक्षिप्त सार है। वरदराज की कहानी से निम्नलिखित लोकोक्ति प्रचलित हो गई जो कहानी की शिक्षा को चरितार्थ करती है-

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।

रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान ॥

शिक्षा – अभ्यास सफलता का मूलमंत्र है।

(ख) शीर्षक- जैसे को तैसा-

लघु कथा- एक गाँव में जीर्णधन नामक गरीब लड़का रहता था। धन कमाने की दृष्टि से उसने परदेश जाने का विचार किया। उसके पास कोई धन-दौलत तो थी नहीं, केवल
एक बहुत भारी लेहे की तराजू थी। उस तराजू को गाँव के महाजन के पास धरोहर के रूप में, रखकर वह परदेश चला गया। परदेश से आने के बाद उसने महाजन से अपनी धरोहर वापस माँगी। महाजन ने कहा, “उस तराजू को तो चूहे खा गए।”

लड़का समझ या कि महाजन उसकी तराजू देना नहीं चाहता, लेकिन वह कुछ कर भी तो नहीं सकता था। उसने महाजन से कहा, “कोई बात नहीं इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। सब चूहों का दोष है।” यह कहकर वह बिना कुछ कहे अपने घर चला गया। अगले दिन वह महाजन के पास जाकर बोला, “सेठ जी! मैं नदी पर स्नान करने के लिए जा रहा हूँ। आप अपने पुत्र को मेरे साथ भेजना चाहें तो भेज सकते हैं। वह भी नदी में स्नान कर लेगा।” महाजन लड़के की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने अपने पुत्र को उसके साथ स्नान के लिए भेज दिया। जीर्णधन ने महाजन के पुत्र को वहाँ से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में छुपा दिया और फिर महाजन के पास पहुँचा। महाजन ने पूछा- “मेरा बेटा भी तो तुम्हारे साथ स्नान के लिए गया था, वह कहाँ है?”

जीर्णधन ने कहा, “उसे तो चील उठा ले गई।”

महाजन – “यह कैसे हो सकता है? कभी चील भी इतने बड़े बच्चे को उठाकर ले जा सकती है?”

जीर्णधन – “यदि चूहे लोहे की तराजू को खा सकते हैं तो चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।” महाजन को अपनी भूल का अहसास हो चुका था, उसने जीर्णधन से माफी माँगते हुए तराजू वापस कर दी। तराजू मिल जाने पर उसने महाजन के बेटे को भी गुफा से लाकर लौटा दिया।

शिक्षा- जो जैसा करता है उसके साथ वैसा ही करना चाहिए।

शिक्षा के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(क) शिक्षा- केवल बुद्धिमान को सीख दो, मूढ़ को नहीं

लघु कथा- एक जंगल के एक घने वृक्ष पर गौरैया का एक जोड़ा रहता था। उन्होंने अपना घोंसला उस वृक्ष की घनी डाली पर बना रखा था। वे दोनों अपने घोंसले में बड़े सुख से रहते थे।

सर्दियों का मौसम शुरू हो गया था। एक दिन सुबह ठंडी हवा चल रही थी और साथ में बूँदा-बाँदी भी शुरू हो गई थी। उस समय एक बंदर ठिठुरता हुआ उस वृक्ष की शाखा पर आ बैठा। ठंड की वजह से उसका सारा शरीर काँप रहा था और उसके दाँत कटकटा रहे थे। उसे देखकर गौरैया ने कहा, “अरे! तुम कौन हो? देखने में तो तुम्हारा चेहरा आदमियों जैसा लगता है। तुम्हारे तो हाथ-पैर भी हैं। फिर भी तुम यहाँ बैठे हो, अपना घर बनाकर क्यों नहीं रहते?” यह सुनकर बंदर गुस्से में बोला, “तू चूप रह और अपना काम कर। मेरा उपहास क्यों कर रही है?”

गौरैया ने कहा, “अगर तुमने भी अपना घर बनाया होता तो आज़ इस तरह मारे-मारे नं फिर रहे होते। देखो, तुम्हारा पूरा शरीर गीला हो चुका है और सारा बदन भी ठंड से काँप रहा है।” इस तरह से गौरैया बंदर को ताने देते हुए कुछ-न-कुछ कहती रही।

गौरैया की बातों से बंदर बुरी तरह झल्ला गया। क्रोध में आकर बोला, “तू कौन होती है मुझे उपदेश और सीख देने वाली। तू अपने जिस घर को लेकर इतरा रही है मैं उसे ही नष्ट कर देता हूँ।” यह कहकर बंदर ने बेचारी गौरैया के घोंसले को तोड़-फोड़ दिया।

इसीलिए कहा गया है कि बुद्धिमान् को दी गई शिक्षा ही फलदायक होती है, मूर्ख को दी हुई शिक्षा का परिणाम कई बार विपरीत भी हो सकता है।

शीर्षक – गौरैया और बंदर

(ख) शिक्षा- बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ।

लघु कथा – देववर्मा नामक एक ब्राह्मण था। उसके घर जिस दिन पुत्र का जन्म हुआ, उसी दिन उसके घर में रहने वाली नकुली ने भी एक नेवले को जन्म दिया। देववर्मा की पत्नी बहुत दयालु स्वभाव की स्त्री थी। उसने उस नवजात नेवले को भी अपने पुत्र के समान ही पाल-पोसकर बड़ा किया।

वह नेवला सदा उसके पुत्र के साथ खेलता था। दोनों में बड़ा प्रेम था। देववर्मा की पत्नी भी दोनों के प्रेम को देखकर प्रसन्न रहती थी। किंतु, कभी-कभी उसके मन में यह शंका भी – उठती रहती थी कि कभी ये नेवला उसके पुत्र को काट न खाए क्योंकि नेवला एक पशु हो तो था।

एक दिन देववर्मा की पत्नी अपने पुत्र को सुलाकर पास के तालाब से पानी भरने गईं। जाते समय उसने अपने पति से कहा कि वह बच्चे का ध्यान रखे। कहीं ऐसा न हो कि नेवला उसे काट खाए। पत्नी के जाने के बाद देववर्मा थोड़ी देर तक तो बच्चे के पास बैठा रहा, पर थोड़ी देर बाद भिक्षा के लिए बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद वहाँ एक काला नाग कहीं से आ गया। नेवले ने उसे देख लिया। उसे लगा कि कहीं यह नाग उसके मित्र को न डस ले, इसलिए वह उस नाग पर टूट पड़ा और स्वयं बहुत क्षत-विक्षत होते हुए भी उसने नाग के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। नाग को मारने के बाद वह उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर देववर्मा की पत्नी गई थी। उसने सोचा कि वह उसकी इस बहादुरी की प्रशंसा करेगी, किंतु हुआ उसके विपरीत।

नेवले के मुँह पर लगे खून को देखकर देववर्मा की पत्नी को लगा कि इस नेवले ने उसके पुत्र को मार दिया है। यह विचार आते ही वह क्रोध से भर गई और अपने सिर पर रखे घड़े को नेवले पर फेंक दिया। छोटा-सा नेवला जल से भरे घड़े की चोट से वहीं मर गया। ब्राह्मण-पत्नी जब घर पहुँची तो उसने देखा कि उसका पुत्र बड़े आराम से सो रहा है और उससे कुछ दूरी पर एक काले नाग का शरीर टुकड़े-टुकड़े हुआ पड़ा है। तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। जिस नेवले ने नाग से उसके पुत्र की जान बचाई थी, उसने उसी बेचारे की जान ले ली। जब उसका पति घर वापस आया तो उसने उसको रोते-रोते सारी घटना बताई। नेवले की मृत्यु से उसका मन बहुत आहत था। देववर्मा ने उससे यही कहा कि बिना विचारे जो काम किया जाता है उसका ऐसा ही परिणाम होता है। अतः हर काम सोच-समझकर ही करना चाहिए।

प्रस्थान बिन्दु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

शीर्षक – ब्राह्मणी और नेवला

शीर्षक और शिक्षा के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(क) शीर्षक – बगुला भगत और केकड़ा

शिक्षा-बिना सोचे-समझे किसी पर आँख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। लघु कथा- एक जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था। इसमें नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियाँ, कछुऐ और केकड़े आदि रहते थे। वहीं एक बगुला भी रहता था, जिसे परिश्रम करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। हमेशा यही उपाय सोचता रहता था कि कैसे बिना हाथ- पैर हिलाए रोज भोजन मिल जाया करे। एक दिन उसे एक उपाय सूझ ही गया। वह तालाब के किनारे खड़े होकर नकली आँसू बहाने लगा। एक केकड़े ने उसे आँसू बहाते देखा तो कारण पूछा। बगुला बोला, “बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप-कर्म और नहीं करना चाहता। मेरी आत्मा जाग उठी है। केकड़ा बोला, “मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो जिंदा कैसे रहोगे?” बगुले ने लंबी साँस ली और बोला, “वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे पता चला है कि शीघ्र ही यहाँ बारह वर्ष का लंबा सूखा पड़ेगा और उसमें कोई नहीं बचेगा। यह बात मुझे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है। महात्माओं की भविष्यवाणी कभी गलत ‘नहीं होती।” केकड़े ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने अहिंसा का मार्ग अपना लिया है और सूखा पड़ने वाला है। यह सुनते ही उस तालाब के सारे जीव दौड़े-दौड़े बगुले के पास आए और बोले- “भगत मामा, अब तुम्हीं हमें बचाव का कोई रास्ता बताओ।” बगुला बोला, “यहाँ से थोड़ी दूर पर एक जलाशय है, जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता है। वह कभी नहीं सूखता। यदि तुम सब लोग वहाँ चले जाओ तो बचाव हो सकता है।” “पर हम लोग वहाँ जाएँगे कैसे?” सभी जीवों ने पूछा। तब बगुला बोला, “तुम लोग चिंता मत करो। मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहाँ तक ले जाऊँगा क्योंकि मैं तो अपना शेष जीवन दूसरों की सेवा में बिताना चाहता हूँ।” सभी जीव खुश हो गए और बगुला भगत की जय-जयकार करने लगे। अब बगुला रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे मारकर खा जाता। धीरे-धीरे चट्टान के पास मरे हुए जीवों की ह‌ड्डियों का ढेर बढ़ने लगा और बगुले की सेहत बनने लगी। वह खा-खाकर खूब मोटा हो गया। बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा- “मामा, तुमने इतने सारे जानवर उस तालाब तक पहुँचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।”

बगुले – “बेटा, आज तेरी ही बारी है, आ जा मेरी पीठ पर बैठ जा।”

केकड़ा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुँचा तो ऊपर से हड्डियों का ढेर देखकर केकड़े का माथा ठनका। उसे सारी बात समझते देर न लगी। वह सिहर उठा परंतु हिम्मत नहीं हारी और तुरंत अपने नुकीले पंजों से दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण न निकल गए। फिर केकड़ा बगुले का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बताई कि कैसे दुष्ट बगुला उन्हें धोखा देता रहा था।

इस तरह इस लघु कथा से यही शिक्षा मिलती है कि बिना सोचे-समझे किसी पर आँखें बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए।

(ख) शीर्षक – मूर्ख बातूनी कछुआ

शिक्षा- जो अपनी वाचालता पर नियंत्रण नहीं रख पाता है, उसका परिणाम बुरा होता है।

लघु कथा – किसी तालाब में कुंबुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। उसी तालाब के किनारे संकट और विकट नामक दो हंस भी रहते थे। इन दोनों से कछुए की गहरी दोस्ती थी। कछुआ बहुत बातूनी था। उसे बातें करने में बहुत मजा आता था। वह हर रोज़ पानी से निकलकर तालाब के किनारे आ जाता था और दोनों हंसों के साथ बातें करता था। एक वर्ष उस प्रदेश में सूखा पड़ा। जरा भी बारिश नहीं हुई, जिसके कारण धीरे-धीरे वह तालाब भी सूखने लगा। हंसों को अपनी चिंता न थी। वे तो उड़कर कहीं और भी जा सकते थे, पर वे अपने दोस्त कछुए को लेकर चिंतित थे। जब उन्होंने अपनी चिंता के बारे में कछुए को बताया तो वह बोला, “भाई, चिंता करने से क्या होगा। तुम लोग उड़कर किसी ऐसे तालाब की खोज करो जो पानी से लबालब भरा हो।” कछुए की बात सुनकर संकट नामक हंस ने कहा, “तालाब मिल भी गया तो तुम वहाँ कैसे जाओगे?” कछुआ बोला, “तुम लोग मुझे किसी लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर ले चलना।” कछुए की बात दोनों को भी उचित लगी।

हंसों ने वहाँ से थोड़ी दूर पर तालाब की खोज कर ली। उन्होंने कछुए से कहा, “उड़ान के दौरान तुम्हें अपना मुँह बंद रखना होगा।” कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुँह नहीं खोलेगा।

कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दाँतों से कसकर पकड़ लिया और फिर दोनों हंस उसे लेकर उड़ चले। रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में उड़ा जा रहा है तो वे आश्चर्य से चिल्लाने लगे। लोगों को चिल्लाते हुए देखकर कछुए से रहा नहीं गया। वह अपना वादा भूल गया। उसने कुछ कहने के लिए जैसे ही अपना मुँह खोला कि आकाश से सीधा जमीन पर आकर गिरा और चोट अधिक लगने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। लघु कथा इस शिक्षा को चरितार्थ करती है कि व्यक्ति को अपनी वाचालता पर नियंत्रण रखना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता तो उसका बुरा होता हैं।

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