योजना आधारित अधिगम |Plan based learning

योजना आधारित अधिगम |Plan based learning

योजना आधारित अधिगम |Plan based learning

योजना आधारित अधिगम- परियोजना आधारित अधिगम एक विद्यार्थी केंद्रित विधि है, जिसमें विद्यार्थी को कक्षा-कक्ष के बाहर, स्वयं के द्वारा कुछ करने के लिए, चुनौती होती है। परियोजना आधारित अधिगम एक व्यक्तिगत या समूह क्रियाकलाप है, जो कुछ समय तक चलता है, जिसका परिणाम उत्पादकता के रूप में होता है, तथा जिसमें प्रस्तुतीकरण या प्रदर्शन भी होता है। एक गणित की परियोजना में समृद्ध, क्रियाकलाप, सक्रिय सहभागिता, विद्यार्थियों को स्वतंत्रता और अन्य विषयों के साथ सहसंबंध शामिल होता है। परियोजना आधारित अधिगम में एक शिक्षक का पहला कार्य परियोजना के क्षेत्र की पहचान करना होता है। तब शिक्षक, बच्चों को उनकी रुचि के हिसाब से विभिन्न समूहों में परियोजना के क्षेत्रों को विभाजित करता है।

परियोजना आधारित अधिगम उस समस्या के बारे में पूर्ण व्यावहारिक जानकारी उपलब्ध कराता है जिस पर परियोजना आधारित है। सामान्यतया परियोजनाएं समूह में विकसित की जाती हैं, यहां पर छात्र विभिन्न कार्य सीख सकते हैं, जैसे-मिलजुल कर कार्य करना, समस्या का समाधान करना, निर्णय लेना और अन्वेषण क्रियाकलाप करना। परियोजना आधारित अधिगम में समस्या का विश्लेषण करना, समस्या को छोटे-छोटे मॉड्यूलों में बांटना, प्रत्येक मॉड्यूल का समाधान करने हेतु प्रणाली अथवा विधि का प्रयोग करना तथा तत्पश्चात् समस्या का पूर्ण समाधान करने के लिए सभी मॉड्यूलों के समाधानों को एकीकृत करना जैसे चरण शामिल हैं। समस्या का समाधान करने के लिए यह आवश्यक है कि जो लोग इस पर कार्य कर रहे हैं वे संबद्ध आंकड़े एकत्र करें और विशेष विधि द्वारा इन पर कार्रवाई करें। आंकड़ों को परियोजना की आवश्यकतानुसार एक विशेष फॉर्मेट में एकत्र किया जा सकता है। दल के सभी सदस्यों को कार्य को पूरा करने में लगाया जाए। आंकड़े एकत्र करने के पश्चात् समस्या के समाधान हेतु इन पर कार्रवाई की जाए। परिणामों की जानकारी पूर्व निर्धारित फॉर्मेंट में दी जाए।

एक परियोजना को कार्यान्वित करने के कई तरीके हैं, जैसे-मॉड्यूलर, ऊपर से नीचे उपागम और नीचे से ऊपर उपगम। परियोजना आधारित अधिगम के सबसे सामान्य प्रकारों में परियोजना का कार्यान्वयन करने के लिए मॉड्यूलर विधि सर्वाधिक सामान्य तकनीक है। परियोजना के प्रति व्यवस्थित अथवा मॉड्यूलर दृष्टिकोण से तात्पर्य है कि एक परियोजना को बहुत सारे प्रबंधनीय मॉड्यूलों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक मॉड्यूल को एक इनपुट सेट से निर्धारित कार्य करने होते हैं। इससे एक आउटपुट का सेट प्राप्त होता है, जिसे एकीकृत करने से वांछित परिणाम प्राप्त होता है।

परियोजना-आधारित अधिगम के चरण- परियोजना आधारित अधिगम के विभिन्न
चरण निम्नवत् हैं-

  1. सलाह देना और परियोजना की निगरानी करना- कई बार परियोजना के प्रतिभागी प्रक्रिया के बीच में फंस जाते हैं और आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो पाते। ऐसे मामले में या किसी भी मामले में उन्हें सलाह की आवश्यकता होती है। सलाह कई संसाधनों जैसे-पुस्तकों, वेबसाइटों और क्षेत्र के विशेषज्ञों से प्राप्त की जा सकती है। जबकि यह अनिवार्य है कि परियोजना के नेता द्वारा परियोजना की निगरानी सुनिश्चित की जाए, मार्गदर्शक अध्यापक भी परियोजना की निगरानी में सहायता करता है।
  2. परियोजना का परिणाम – व्यक्ति को समझना चाहिए कि परियोजना का परिणाम क्या हो सकता है। परिणाम एक अथवा अधिक हो सकते हैं। परियोजना के परिणाम की साथियों द्वारा समीक्षा की जा सकती है और इसे प्रयोक्ताओं अथवा विशेषज्ञों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार आशोधित किया जा सकता है।

एक परियोजना- ‘स्कूल में कैरियर काउंसिलिंग हेतु सेमिनार का आयोजन’ पर विचार करें। परियोजना को उप- कार्यों में विभाजित किया जा सकता है-

संकल्पना टिप्पणी का प्रारूप तैयार करना, जो उक्त सेमिनार के आयोजन की आवश्यकता को स्थापित करेगा।

सेमिनार के लिए हॉल की व्यवस्था करना जिसमें बैठने की उचित व्यवस्था हो तथा ऑडियो-विजुअल सुविधाएं हों।

भागीदारों की सूची बनाना और उन्हें सूचना भेजना।

अतिथियों को निमंत्रण भेजना।

सेमिनार में भाषण देने हेतु कैरियर काउंसिलरों की व्यवस्था करना।

अतिथियों के खान-पान, सत्कार इत्यादि की व्यवस्था करना।

उक्त उदाहरण परियोजना के प्रति मॉड्यूलर दृष्टिकोण की आवश्यकता को दर्शाता है। उक्त सूचीबद्ध उप-कार्यों में से प्रत्येक कार्य को अलग-अलग व्यक्ति समूहों को सौंपा जा सकता है। मॉड्यूलर विधि का लाभ यह है कि छोटे कार्य की रूपरेखा बनाना अधिक सरल है। साथ ही, कुछ मॉड्यूलर विधि का लाभ यह है कि छोटे कार्य की रूपरेखा बनाना अधिक सरल है। साथ ही, कुछ मॉडयूलों को पुनः प्रयोग किया जा सकता है यदि उन्हें किसी अन्य परियोजना हेतु पहले ही पूर्ण किया जा चुका है। उदाहरणार्थ, यदि किसी अन्य सेमिनार हेतु इनकी सूची पहले ही बनाई जा चुकी है तो वही भागीदारी की सूची पुनः प्रयुक्त की जा सकती है। यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि कुछ कार्यों को समानांतर रूप से किया जा सकता है जो परियोजना को कम समय में कार्यान्वित करने में अत्यधिक सहायक हैं।

Important Link

Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com

  1. परियोजना की पहचान करना- परियोजना का विचार वास्तविक जीवन की किसी भी स्थिति में आ सकता है। उदाहरणार्थ, आप सेमिनार आयोजित करने के लिए परियोजना तैयार करने के बारे में सोच सकते हैं। आपको परियोजना की उपयोगिता और इसके प्रभाव को समझने की आवश्यकता है। छात्रों को अंतरशाखीय परियोजनाएँ करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  2. योजना को परिभाषित करना- सामान्यतया किसी भी प्रकार की परियोजना में कई परियोजना सदस्य शामिल होते हैं। इनमें से एक परियोजना नेता की पहिचान करनी होती है। प्रत्येक परियोजना और प्रत्येक परियोजना सदस्य स्पष्ट होना चाहिए। जो छात्र परियोजना पर कार्य कर रहे हैं, उन्हें विशिष्ट क्रियाकलाप सौंपे जाने चाहिए। उन्हें इन क्रियाकलापों को करने के लिए विभिन्न उपकरणों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। बेहतर समाधान हेतु व्यक्ति को विभिन्न स्थितियों के बारे में सोचना चाहिए।

3. समय सीमा निर्धारित करना और कार्रवाई करना- प्रत्येक परियोजना समय के प्रासंगिक है। छात्र को परियोजना का पूर्ण करने के लिए समय के महत्त्व को समझना चाहिए। सभी क्रियाकलापों, जो परियोजना के अंतर्गत किए जाने हैं, के लिए कुछ समय की आवश्यकता होती है। प्रत्येक परियोजना व्यवस्थित होनी चाहिए और साथ ही यह समय-सीमा में सुनम्य होनी चाहिए।

  1. सलाह देना और परियोजना की निगरानी करना- कई बार परियोजना के प्रतिभागी प्रक्रिया के बीच में फंस जाते हैं और आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो पाते। ऐसे मामले में या किसी भी मामले में उन्हें सलाह की आवश्यकता होती है। सलाह कई संसाधनों जैसे-पुस्तकों, वेबसाइटों और क्षेत्र के विशेषज्ञों से प्राप्त की जा सकती है। जबकि यह अनिवार्य है कि परियोजना के नेता द्वारा परियोजना की निगरानी सुनिश्चित की जाए, मार्गदर्शक अध्यापक भी परियोजना की निगरानी में सहायता करता है।
  2. परियोजना का परिणाम – व्यक्ति को समझना चाहिए कि परियोजना का परिणाम क्या हो सकता है। परिणाम एक अथवा अधिक हो सकते हैं। परियोजना के परिणाम की साथियों द्वारा समीक्षा की जा सकती है और इसे प्रयोक्ताओं अथवा विशेषज्ञों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार आशोधित किया जा सकता है।

एक परियोजना- ‘स्कूल में कैरियर काउंसिलिंग हेतु सेमिनार का आयोजन’ पर विचार करें। परियोजना को उप- कार्यों में विभाजित किया जा सकता है-

संकल्पना टिप्पणी का प्रारूप तैयार करना, जो उक्त सेमिनार के आयोजन की आवश्यकता को स्थापित करेगा।

सेमिनार के लिए हॉल की व्यवस्था करना जिसमें बैठने की उचित व्यवस्था हो तथा ऑडियो-विजुअल सुविधाएं हों।

भागीदारों की सूची बनाना और उन्हें सूचना भेजना।

अतिथियों को निमंत्रण भेजना।

सेमिनार में भाषण देने हेतु कैरियर काउंसिलरों की व्यवस्था करना।

अतिथियों के खान-पान, सत्कार इत्यादि की व्यवस्था करना।

उक्त उदाहरण परियोजना के प्रति मॉड्यूलर दृष्टिकोण की आवश्यकता को दर्शाता है। उक्त सूचीबद्ध उप-कार्यों में से प्रत्येक कार्य को अलग-अलग व्यक्ति समूहों को सौंपा जा सकता है। मॉड्यूलर विधि का लाभ यह है कि छोटे कार्य की रूपरेखा बनाना अधिक सरल है। साथ ही, कुछ मॉड्यूलर विधि का लाभ यह है कि छोटे कार्य की रूपरेखा बनाना अधिक सरल है। साथ ही, कुछ मॉडयूलों को पुनः प्रयोग किया जा सकता है यदि उन्हें किसी अन्य परियोजना हेतु पहले ही पूर्ण किया जा चुका है। उदाहरणार्थ, यदि किसी अन्य सेमिनार हेतु इनकी सूची पहले ही बनाई जा चुकी है तो वही भागीदारी की सूची पुनः प्रयुक्त की जा सकती है। यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि कुछ कार्यों को समानांतर रूप से किया जा सकता है जो परियोजना को कम समय में कार्यान्वित करने में अत्यधिक सहायक हैं।

Important Link

Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com

You may also like