भारत में भ्रष्टाचार का गहराई से विश्लेषण: कारण, प्रभाव और समाधान के व्यावहारिक उपाय
भ्रष्टाचार दो शब्दों भ्रष्ट और आचार के मेल से बना है। ‘भ्रष्ट’ शब्द के कई अर्थ होते हैं- ‘मार्ग से विचलित’ ‘ध्वस्त’ एवं ‘बुरे आचरण वाला’ तथा ‘आचरण’ का अर्थ है-‘चरित्र’, ‘व्यवहार’ या ‘चा-चलन’। इस प्रकार भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ-अनुचित व्यवहार एवं चाल-चलन। विस्तृत अर्थों में इसका तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वर्थपूर्ण ढंग से करता है।
इसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिए निर्धारित कर्तव्य की जान-बूझकर अवहेलना करता है। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके अपना उल्लू सीधा करना आदि भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो भारत ही नहीं दुनियाभर में व्याप्त हैं। कवि ‘जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपनी कविता ‘मेघगीत’ के माध्यम से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार का इन शब्दों में वर्णन किया है
“ताड़ खड़बड़ाते हैं केवल चील गिद्ध ही गाते हैं
ऊप-ऊपर पी जाते हैं,
जो पीने वाले हैं कहते हैं ऐसे जीते हैं, जो जीने वाले हैं।”
भारतीय नीतिशास्त्रियों ने ‘आचारः परमोधर्मः’ अर्थात् सदाचार ही सबसे बड़ा धर्म है, की बात कही है। इसके बावजूद यहाँ के ऐतिहासिक ग्रन्थों में भ्रष्टाचार के कई प्रमाण देखने को मिल जाते हैं। ‘चाणक्य’ ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र’ में विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख किया है।
हर्षवर्द्धन काल एवं राजपूत काल में सामवन्ती प्रथा ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। सल्तनत काल में फिरोज तुगलक के शासन में सेना भ्रष्टाचार एवं रिश्वखोरी के प्रमाण मिलते हैं, पर भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी के मामले मुगलकाल में दिखे और ब्रिटिशकाल के दौरान इसने भारत में अपनी जड़े पूरी तरह जमा लीं। पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने कहा था- “भ्रष्टाचार को पकड़ना बहुत कठिन काम है, लेकिन मैं बलपूर्वक कहता हूँ कि यदि हम इस समस्या से गम्भीरता और दृढ़ संकल्प के साथ नहीं निपटेंगे, तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल हो जाएँगे।
विभिन्न राष्ट्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का आकलन करने के लिए वर्ष 1993 में जर्मनी में स्वतन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इण्टरनेशनल की स्थापना की गई। इस गैर-सरकारी संस्था के द्वारा ‘करप्शन इण्डेक्स’ (CPI) के आधार पर वर्ष 1995 से भ्रष्टाचार के मामले में विश्व क विभिन्न देशों की सूची जारी की जा रही है। सीपीआई द्वारा 0 से 10 के पैमाने पर भ्रष्टाचार का – आकलन किया जाता है। इसके अनुसार, जिस देश के सीपीआई का मान जितना अधिक होता है, वह देश उतना ही कम भ्रष्ट माना जाता है. और जिस देश का सीपीआई का मान जितना कम होता है, उस देश में भ्रष्टाचार उतना ही अधिक हो ता है। उदाहरणार्थ वर्ष 2010 में 178 देशों की इस सूची में डेनमार्क सीपीआई के कुल 10 में से 9.3 अंकों के साथ सबसे कम भ्रष्ट’ राष्ट्र के रूप में सबसे ऊपर तथा सोमालिया 1.1 अंक के साथ सर्वाधिक भ्रष्ट राष्ट्र के रूप में सबसे नीचे था।
तब भारत का 3.3 अंक मिले थे। इस संस्था के द्वारा भ्रष्टाचार मापने का एक अन्य तरीका भी है, जिसमें 0 से 100 तक के पैमाने पर भ्रष्टाचार का आकलन किया जाता है। इस विधि में 0 से 100 को स वर्गों में बाँटा गया है, जिसमें 0 से 9 तक की सीमा में आने वाले देश विधिक भ्रष्ट, जबकि 90 से 100 तक की सीमा में आने वाले देश र्सावधिक स्वच्छ माने जाते हैं। इस संस्था द्वारा पहली बार वर्ष 2007 में भारत को शामिल किया गया। उस वर्ष 180 देशों की सूची में 0 से 10 वाले पैमाने पर 3.5 अंक प्राप्त कर भारत 72वें स्थान पर था, किन्तु बर्ष 2010 में 178 देशों की सूची में भारत का स्थान देश में भ्रष्टाचार बढ़ जाने से जीचे खिसककर 87वें स्थान पर आ गया।
वर्ष 2012 तथा 2013 में भारत इस सूची में और नीचे खिसककर 94वें स्थान पर स्थिर रहा। वर्ष 2013 में इस सूची में डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड 91.91 अंकों के साथ 177 देशों में सबसे स्वच्छ छवि वाले देशों के रूप में प्रथम स्थान पर रहे, जबकि अफगानिस्तान, उत्तरी कोरिया और सोमालिया 8-8 अंकों के साथ सबसे भ्रष्ट देशों के रूप में एक साथ 175वें स्थान पर रहे। वर्तमान में वर्ष 2016 की रैंकिंग के अनुसार भारत की रैंक 79 है।
कवि ‘रघुवीर सहाय’ ने देश के भ्रष्ट नेताओं पर व्यंग्य करते हुए लिखा है
“निर्धन जनता का शोषण है
कहकर आप का अन्तिम क्षण है
कहकर आप हँसे
सब के सब हैं भ्रष्टाचारी
कहकर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कहकर आप हँसे।”
आज हमारे देश में धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेल-कूद इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पाँव फैला दिए हैं। सामान्य तौर पर देखा जाए, तो के निम्नलिखित कारण हैं में भ्रष्टाचार भारत में
धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है।
नौकरी-पेशा वाला व्यक्ति अपने सेवा काल में इतना धन अर्जित कर लेना चाहता है, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद का उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके।
व्यापारी वर्ग सोचता है कि जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए, इसलिए जैसे भी हों तरीके से अधिक-से-अधिक धन कमा लिया जाए।
उचित-अनुचित औद्योगीकरण ने अनेक विलासिता की वस्तुओं का निर्माण किया है। इनको सीमित आय में प्राप्त करना। सबके लिए सम्भव नहीं होता। इनकी प्राप्ति के लिए भी अधिकतर भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होते हैं।
कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण भी कनिष्ठ अधिकारी या तो भलाई के लिए इसका विरोध नहीं करते या न चाहते हुए भी अनुचित कार्यों में लिप्त होने को विवश हो जाते हैं।
इन सबके अतिरिक्त गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, महँगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्प-वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सजा में देरी, अशिक्षा, अत्याधिक प्रतिसपर्द्धा, महत्वकांक्षा इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने एक बार कहा था- “उन मन्त्रियों से सावधान रहना चाहिए, जो बिना पैसों के कुछ नहीं कर सकते और उनसे भी, जो पैसे लेकर कुछ भी करने की इच्छा रखते है।”
भ्रष्टाचार की वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एंव चारित्रिक पत्तन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। आज भ्रष्टाचार के फलस्वरूप अधिकारी एवं व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्याधिक मात्रा में इकठ्ठा हो गया है। इस काले धन के कारण अनैतिक व्यवहार, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, तस्करी एवं अन्य अपराधों में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार एवं स्थानीय हितों को महत्व दिया जा रहा है। सम्पूर्ण समाज भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। सरकारी विभाग भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं।
कर्मचारीगण मौका पाते ही अनुचित लाभ से नहीं चूकते। राजनीतिक स्थिरता एवं एकता खतरे में है। नियमहीनता एवं कानूनो की अवहेलना में वृद्धि हो रही है। भ्रष्टाचार के कारण आज देश की सुरक्षा के खतरे में पड़ने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अता जरूरी है कि इस पर जल्द-से-जल्द लगाम लगाई जाए। इसके लिए हमें बेस माथरसन की कही गई. इस पंक्ति से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है- “भ्रष्टाचार के अपराध का सह-अपराधी अक्सर हमारी खुद की… उदासीनता होती है।”
भ्रष्टाचारीयों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है तथा समय-समय पर भ्रष्टाचार कि निवारण के लिए समितियाँ भी गठित हुई हैं और इस समस्या के निवारण के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून भी पारित किया जा चुका है, फिर भी अब तक इस पर नियन्त्रण स्थापित नहीं किया जा सकता है। इस समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित बातों का पालन किया जाना आवश्यक है
सबसे पहले इसके कारणों, जैसे-गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर किया जाना चाहिए।
सूचना के अधिकार का प्रयोग कर विभिन्न योजनाओं पर जनता की निगरानी भ्रष्टाचार का मिटाने में कारगर साबित होगी। इसके कई उदाहरण हाल ही में मिल चुके हैं।
भ्रष्ट अधिकारियों का सजा दिलवाने के लिए दण्ड प्रक्रिया एवं दण्ड संहिता में संशोधन कर कानून को और कठोर बनाए जाने की आवश्यकता है।
भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाए जाने की जरूरत है। इसके लिए सामाजिक आर्थिक, कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय अपनाएं जाने चाहिए।
जीवन-मूल्यें की पहचान कराकर लोगों को नैतिक गुणों, चरित्र एवं व्यावहारिक आदर्शों की शिक्षा के द्वारा भी भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए, ताकि दागदार एवं भ्रष्ट लोगों को उच्च पदों पर आसीन होने से रोका जा सके।
भ्रष्टाचार देश के लिए कलंक है और इसको मिटाए बिना देश की वास्तविक प्रगति सम्भव नहीं है।
देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा किए गए प्रयासों का काफी अच्छा परिणाम सामने आया है। उन्होंने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलाकर भारतीय युवाओं में देश की छवि को स्वस्थ बनाने का नया जोश भर दिया है। ‘लोकपाल विधेयक’ उन्हीं के प्रयासों का प्रतिफल है। यदि देश का युवा वर्ग अपना कर्तव्य समझकर भ्रष्टाचार का विरोध करने लगे, तो यह वह दिन दूर नहीं, जब भारत से भ्रष्टाचार रूपी दानव का अन्त हो जाएगा। इसके लिए बड़ों के द्वारा युवा वर्ग का सही मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने कहा है-
“यदि किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुन्दर मन वाले लोगों का देश बनाना है। तो मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य-माता, पिता और गुरू यह कार्य कर संकते हैं।
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