प्राथमिक व महिला शिक्षा समानता |Primary and women’s education equality

प्राथमिक व महिला शिक्षा समानता (Primary and women’s education equality)

(1) प्राथमिक स्तर पर शीघ्रातिशीघ्र सभी राजकीय, स्थानीय निकायों की पाठशालाओं में और सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा-शुल्क को पूरी तरह से समाप्त कर दिया । इस कार्य को जितना शीघ्र हो सके, कर लेना चाहिए।

(2) प्राथमिक स्तर पर पाठ्य-पुस्तकें और लेखन सामग्री मुफ्त दी जाये। जो छात्र-छात्राएँ पाठशाला में प्रवेश प्राप्त करें, उनका स्वागत, विशेष समारोह किया जाये। इस अवसर पर उन्हें अपनी कक्षा की पुस्तकें भेंट की जायें।

(3) जब पाठशाला में वार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित हो तो अगले वर्ष काम में आने वाली पुस्तकें बालकों को भेंट की जायें।

(4) इस बात का प्रयास किया जाये कि छात्र शिक्षा प्राप्ति से पूर्व विद्यालय न छोड़े। इस दृष्टि से परिवार के सदस्यों को मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान किया जाये।

(5) समाज के लोगों को प्राथमिक विद्यालयों की ओर प्रोत्साहन देने के लिए पढ़ाई में अच्छे और जरूरतमन्द छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जायें।

(6) जिन विद्यार्थियों के माता-पिता निर्धन हैं और बालक को इसलिए शाला से हटाना चाहते हैं कि वह उनके व्यवसाय में हाथ बंटाये, उसके लिए कई काम किये जा सकते हैं-

(i) पाठशाला में उत्पादक (Productive) कार्य की व्यवस्था यथा-फल, सब्जियाँ उगाना। छात्र पढ़ाई करने के साथ कुछ-न-कुछ अर्जित भी करते जायें।

(ii) माता-पिता कोई धन्धा शुरू कर सकें, इसके लिए उन्हें ऋण दिलवाना।

(7) जिन बालकों के घर दूर हों और वे विद्यालय में पैदल आने में समर्थ न हों, उनके लिए-

(i) परिवहन की व्यवस्था की जाए।

(ii) उन्हें बाईसिकलें दिलवायी जायें।

(iii) बस या रेल से आने वाले छात्रों को किराये की व्यवस्था की जाये।

महिलाओं की शिक्षा और शिक्षा अवसरों की समानता (Women’s education and equality of educational opportunities)

इस बात से सभी परिचित हैं कि पुरुषो की तुलना में महिलाओं का शिक्षा प्रतिशत बहुत कम है। शिक्षा अवसरों की समानता की दृष्टि से यह आवश्यक है कि शिक्षा की ओर मनोयोगपूर्ण ध्यान दिया जाए। यदि महिलाएँ शिक्षित होंगी, तो उसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ेगा। इस सम्बन्ध में सुझाव दिये जा सकते हैं-

(1) महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष योजनाएँ बनायी जायें और उन योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए।

(2) सभी क्षेत्रों में और सभी स्तरों पर कन्याओं की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाए।

(3) देश के भावी विकास की दृष्टि से महिलाओं की शिक्षा को शिक्षा के सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप में स्वीकार किया जाए।

(4) महिला शिक्षा के सामने आने वाली समस्याओं का जल्दी-से-जल्दी समाधान करना चांहिए।

(5) पुरुषों और महिलाओं की शिक्षा में वर्तमान काल में जो अन्तर पाया जाता है, उसे का साहसपूर्ण प्रयत्न करना चाहिए।

(6) राज्य-स्तर पर और केन्द्रीय स्तर पर ऐसा तंत्र विकसित किया जाए-

(i) जो कन्याओं और महिलाओं की शिक्षा पर नजर रखे।

(ii) जो महिला शिक्षा के कार्यक्रमों को आयोजित करे।

(iii) जो राजकीय और अराजकीय व्यक्तियों को एक साथ लाकर महिला शिक्षा सम्बन्धी नीतियों को क्रियान्वित करने का प्रयास करे।

(7) महिलाओं का कार्यक्षेत्र अब घर की चहरादीवारी तक सीमित नहीं रहा। वह देश के सामाजिक, आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। इस बात को सामने रखते हुए महिलाओं के प्रशिक्षण और रोजगार की समस्याओं पर और अधिक ध्यान दिया जाए।

जैसे-जैसे महिलाओं के लिए विवाह की आयु में वृद्धि होती जायेगी, वैसे-वैसे परिवार नियोजन के कार्यक्रम मे तेजी आयेगी, महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों की आवश्यकता होगी। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति से महिलाओं की समानता हेतु शिक्षा में निम्न बातें की गयी हैं-

(i) शिक्षा का उपयोग, महिलाओं की स्थिति में मूलभूत परिवर्तन लाने के लिए किया जायेगा। पहले से चली आ रही विकृतियों और विषमताओं को समाप्त करने के लिए शिक्षा-व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा।

(ii) स्त्रियों में साक्षरता-प्रसार को तथा बाधाओं का निराकरण करने के लिए सबसे अधिक प्राथमिकता दी जायेगी, क्योंकि इसके अन्याय से ही कन्याएँ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाती हैं। साक्षरता के प्रसार के लिए विशेष व्यवस्था की जायेगी, समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किये जायेंगे और कार्यान्वित करने की भरसक चेष्टा की जायेगी।

(iii) विभिन्न स्तरों पर औद्योगिकी और व्यावसायिक शिक्षा में स्त्रियों की भागीदारी पर विशेष बल दिया जायेगा। इस दृष्टि से किशोरों और किशोरियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा

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