पाठ्यक्रम परिवर्तन|course change
पाठ्यक्रम परिवर्तन का अर्थ, परिभाषा एवं पाठ्यक्रम परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
पाठ्यक्रम परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of curriculum change)- पाठ्यक्रम परिवर्तन के अर्थ को समझने के लिए ‘पाठ्यक्रम सुधार’ (Curriculum improvement) तथा पाठ्यक्रम परिवर्तन क्ले अन्तर को जानना आवश्यक है। पाठ्यक्रम सुधार या संशोधन पाठ्यक्रम के विखरे हुए पक्षों में किसी प्रकार के परिवर्तन से सम्बन्धित होता है जिससे इसके संप्रत्यात्मक प्रारूप (Conceptual design) या संगठन में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं होता है जबकि ‘पाठ्यक्रम परिवर्तन’ इससे सम्बन्धित संस्थाओं में परिवर्तन का द्योतक होता है। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी लक्ष्य, उद्देश्य, अन्तर्वस्तु, प्रक्रियाएँ, संसाधन तथा सभी प्रकार के सीखने के अनुभवों के मूल्यांकन के साधन सम्मिलित होते हैं जो कक्षा-कक्ष अनुदेशन तथा तत्सम्बन्धित अन्य क्रिया-कलापों के माध्यम से विद्यालय एवं समुदाय के अन्दर एवं बाहर ‘विद्यार्थियों के लिए आयोजित किये जाते हैं। पाठ्यक्रम के इस संप्रत्यय को आधार मानते हुए सेलर एवं एलेक्जेन्डर ने ‘पाठ्यक्रम परिवर्तन’ को इस प्रकार परिभाषित किया है-
‘विद्यालय पाठ्यक्रम में होने वाले परिवर्तनों में समुदाय, छात्र जनसंख्या क्षेत्र, व्यावसायिक स्टाफ तथा समाज में हुए परिवर्तन परिलक्षित होने चाहिए तथा इन सभी परिवर्तनों के द्वारा पाठ्यक्रम परिवर्तन प्रेरित होना चाहिए।’
‘Changes in the community, its pupil population, the professional staff and society should be reflected in or prompted by related changes in school curriculum.’ -Saylor & Alexander
हिल्डा टाबा के शब्दों में, ‘पाठ्यक्रम परिवर्तन का अर्थ एक प्रकार से एक संस्था को परिवर्तित करना है।’
‘To change a curriculum means, in a way, to change an institution.’ –Hilda Taba किसी संस्था को परिवर्तित करना एक कठिन एवं बेकार का कार्य भी सिद्ध हो सकता है तथा इसका परिणाम अदा (नियोजन) एवं प्रदा (उपलब्धि या उत्पादन) के सम्बन्धों में उलट-फेर भी हो सकत्ता है। अतः इसके परिवर्तन में बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है।
किसी विद्यालय व्यवस्था में पाठ्यक्रम के द्वारा व्यापक परिवर्तन लाने हेतु प्रारूप के विकास में अग्रांकित बातों का ज्ञान आवश्यक होता है-
1. परिवर्तन को प्रभावित करने वाली तात्कालिक शक्तियाँ,
2. परिवर्तन के आयाम,
3. परिवर्तन की दिशा,
4. परिवर्तन की प्रक्रिया में सहभागी व्यक्ति।
स्थानीय आवश्यकताओं, आकांक्षाओं एवं सीमाओं के प्रति उपर्युक्त सभी पक्षों की सार्थकता पाठ्यक्रम परिवर्तन हेतु इनके विश्लेषण, मूल्यांकन एवं न्यायसंगत समावेश पर बल प्रदान करती है।
पाठ्यक्रम परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक (Current Forces Affecting Curriculum Change)- फ्रेडरिक शॉ (Fredrick Shaw) ने पाठ्यक्रम में अचानक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी पाँच प्रमुख कारकों की पहचान की है-
(1) सामाजिक, आर्थिक एवं जनत्तंख्यात्मक शक्तियाँ (Social, Economic and Demographic Forces)- सामाजिक, आर्थिक एवं जनसंख्यात्मक शक्तियाँ करोड़ों ग्रामीण परिवारों, अल्पसंख्यक जातियों तथा सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े हुए लोगों के जीवन को अनेक प्रकार से अस्त-व्यस्त करती रही हैं। शहरी वातावरण से उनके टकराव (जिसके लिए वे शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक आदि दृष्टियों से बहुत पीछे होते हैं) विद्यालय पाठ्यक्रम में सभी समूहों एवं वर्गों की शिक्षा हेतु नये तत्त्वों एवं विधियों के समावेश की आवश्यकता को जन्म देते हैं।
मिश्रित संस्कृतियों एवं उप-संस्कृतियों के उदय तथा उनकी सत्ता में भागीदारी की अपेक्षाओं के परिणामस्वरूप अनेक गम्भीर सामाजिक, शैक्षिक संघर्ष उत्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों की आवश्यकताओं, अपेक्षाओं एवं मूल्यों और विश्वासों के कारण भी शिक्षा के नीति-निर्धारकों को उन्हें पाठ्यक्रम में समाविष्ट करना आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक, आर्थिक एवं जनसंख्यात्मक शक्तियाँ पाठ्यक्रम परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होती हैं।
(2) तकनीकी प्रगति (Technological Advances)- तकनीकी विकास के फलस्वरूप अनेक कार्यों के सम्पादन हेतु मनुष्य का स्थान मशीनों ने ले लिया है जिससे एक तरफ तो तकनीकी एवं व्यावसायिक विशेषज्ञता के प्रशिक्षण की आवश्यकता बढ़ती जा रही है तथा दूसरी ओर अर्धकुशल एवं अर्धशिक्षित व्यक्तियों में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है इसके कारण आर्थिक विसंगति उत्पन्न हो रही है तथा युवाओं के मूल्यों, विश्वासों एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन होता जा रहा है। परिणामस्वरूप युवाओं में अपराध प्रवृत्ति, मादक द्रव्यों का सेवन, हिंसात्मक प्रवृत्ति, अनुशासनहीनता आदि में वृद्धि होती जा रही है। यद्यपि इन सबके लिए केवल विद्यालय ही उत्तरदायी नहीं है किन्तु फिर भी विद्यालयों में इसके लिए पाठ्यक्रम परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। अतः क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर इन समस्याओं के निराकरण हेतु पाठ्यक्रमों में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
तकनीकी प्रगति का एक दूसरा पक्ष भी है। इसने शैक्षिक संचार माध्यमों, शैक्षिक सामग्री एवं उपकरणों, शिक्षण विधियों आदि में मूलभूत परिवर्तन की सम्भावनाओं को जन्म दिया है। यद्यपि शैक्षिक नवाचारों का प्रयोग आर्थिक सीमाओं, परम्पराओं, विशिष्ट सेवारत प्रशिक्षण आदि के कारण प्रभावित होता है, किन्तु इसके लिए क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर एक लम्बी एवं व्यापक योजना बनाई जा सकती है। अतः तकनीकी प्रगति पाठ्यक्रम परिवर्तन का एक प्रमुख कारक है।
(3) राजनैतिक शक्तियाँ (Political Forces)- किसी भी देश की राजनैतिक व्यवस्था का वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। शिक्षा के लिए धन की व्यवस्था प्रायः वहाँ की सरकारों द्वारा ही किया जाता है, ता है, अतः शिक्षा राज्य के नियन्त्रण में ही रहती है। हम पूर्व में एकतन्त्रात्मक, लोकतन्त्रात्मक तथा हस्तक्षेप रहित शासन व्यवस्था में शिक्षण के स्वरूप का अध्ययन कर चुके हैं। वर्तमान समय में अधिकांश देशों में प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था है। ‘अवसरों की समानता’ प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का एक प्रमुख सिद्धान्त है। अतः ‘सभी के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता’ वर्तमान समय में एक प्रमुख प्रश्न है। शिक्षा से वंचित वर्गों एवं क्षेत्रों के जन-प्रतिनिधियों द्वारा ‘सभी के लिए शिक्षा’ हेतु निरन्तर दबाव डाला जा रहा है। इसके लिए पाठ्यक्रम में परिवर्तन एक आवश्यकता हो जाती है। इस प्रकार राजनैतिक शक्तियाँ पाठ्यक्रम परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(4) ज्ञान में तीव्र वृद्धि (Rapid Increase in the Fund of Knowledge)- मानव ज्ञान में अप्रत्याशित गति से निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। विज्ञान एवं गणित में तो यह वृद्धि सर्वाधिक गति से हो रही है। सामाजिक विषयों में प्रतिवर्ष नवीन अन्तर्वस्तु का समावेश होता जा रहा है। मानवीय ज्ञान-कोष में वृद्धि एवं उसकी बढ़ती हुई आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप अनेक नये विषयों का आविर्भाव भी होता जा रहा है। मनोविज्ञान के विकास ने सीखने के अनेक नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इस प्रकार पाठ्यक्रम आयोजकों के समक्ष यह एक चुनौतीपूर्ण समस्या है कि बालक के सर्वांगीण विकास के लिए ‘क्या पढ़ाया जाये’ तथा ‘कैसे पढ़ाया जाये?’ अर्थात् अन्तर्वस्तु एवं प्रक्रिया दोनों का उपयुक्त चयन आवश्यक है। कुछ विद्वान अन्तर्वस्तु की अपेक्षा प्रक्रिया को अधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। पारकर एवं रुबिन (Parker and Rubin) प्रक्रिया को अन्तर्वस्तु का जीवन द्रव्य (Lifeblood) मानते हुए कहते हैं कि, ‘प्रक्रिया उच्चतम स्तर की अन्तर्वस्तु है तथा पाठ्यक्रम परिवर्तन के लिए सर्वोत्तम आधार है।’
Process is in fact the highest form of content and most appropriate base for curriculum change.’ Parker and Rubin
इसके ठीक विपरीत फेनिक्स (Phenix) का कहना है कि ‘पाठ्यक्रम में पूर्णरूपेण विभिन्न अनुशासनों के सम्बन्धित ज्ञान अन्तर्निहित होना चाहिए, क्योंकि विभिन्न अनुशासन ज्ञान को शिक्षण योग्य रूप में प्रकट करते हैं। इस विचारधारा के मानने वालों के मतानुसार बुद्धि या ज्ञान का महत्त्व अन्य पक्षों, जैसे- व्यवसाय, धर्म, राजनीति, समाज आदि से अधिक होता है।
इस प्रकार पाठ्यक्रम आयोजकों को समुदाय के लक्ष्यों, छात्रों की विशेषताओं तथा व्यावसायिक स्टाफ की क्षमताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम परिवर्तन हेतु कोई बीच का मार्ग चुनना पड़ता है जिससे ज्ञान कोष का अधिकतम समावेश भी किया जा सके तथा उस ज्ञान को छात्रों तक सुविधाजनक ढंग से सम्प्रेषित भी किया जा सकता
(5) शैक्षिक शोध (Educational Researches) – शैक्षिक शोधों के निष्कर्षों के आधार पर नवीन पाठ्यक्रम सिद्धान्तों का प्रतिपादन भी पाठ्यक्रम परिवर्तन का एक कारक होता है। यद्यपि शोधों पर आधारित पाठ्यक्रम सिद्धान्तों ने पाठ्यक्रम परिवर्तन को बहुत थोड़ा ही प्रभावित किया है किन्तु अन्य परिवर्तनकारी शक्तियों के साथ इनकी भूमिका भी निर्णायक होती है। शोधों के द्वारा ही पाठ्यक्रम परिवर्तन की सार्थकता का समुचित विश्लेषण एवं मूल्यांकन भी किया जाता है।
इसके अतिरिक्त कुछ लोग ‘उत्तरदायित्व’ (Accountability) को भी पाठ्यक्रम परिवर्तन की एक शक्ति के रूप में मानते हैं। उत्तरदायित्व से त्तात्र्ण्य कार्यक्रमों के नियोजन, आर्थिक व्यवस्था, क्रियान्यवन एवं संसाधनों के उपयोग के मूल्यांकन के प्रति जिम्मेदारी से है।
Important Link
- पाठ्यक्रम का सामाजिक आधार: Impact of Modern Societal Issues
- मनोवैज्ञानिक आधार का योगदान और पाठ्यक्रम में भूमिका|Contribution of psychological basis and role in curriculum
- पाठ्यचर्या नियोजन का आधार |basis of curriculum planning
राष्ट्रीय एकता में कौन सी बाधाएं है(What are the obstacles to national unity) - पाठ्यचर्या प्रारुप के प्रमुख घटकों या चरणों का उल्लेख कीजिए।|Mention the major components or stages of curriculum design.
- अधिगमकर्ता के अनुभवों के चयन का निर्धारण किस प्रकार होता है? विवेचना कीजिए।How is a learner’s choice of experiences determined? To discuss.
- विकास की रणनीतियाँ, प्रक्रिया के चरण|Development strategies, stages of the process
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