पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के दृष्टिकोण|Approaches to curriculum evaluation

पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के दृष्टिकोण|Approaches to curriculum evaluation

पाठ्यक्रम मूल्यांकन की अवधारणा, आवश्यकता व महत्व की विवेचना कीजिए।

पाठ्यक्रम मूल्यांकन की अवधारणा- मूल्यांकन शिक्षण अधिगम व्यवस्था का HS अन्तिम सोपान है। पाठ्यक्रम मूल्यांकन का वास्तविक अर्थ मूल्य का अंकन करना है। पाठ्यचर्या के मूल्यांकन में भी पाठ्यचर्या की वांछनीयता का वास्तविक रूप से अंकन करना है। इस दृष्टि से मूल्यांकन एक ऐसा कार्य या प्रक्रिया है जिससे मापन से प्राप्त परिणामों की वांछनीयता का निर्णय लिया जाता है। एच.एच. रेमर्स तथा एन.एल. गेज ने मूल्यांकन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि- “मूल्यांकन में व्यक्ति अथवा समाज अथवा दोनों की दृष्टि में क्या अच्छा है अथवा क्या वांछनीय है का विचार या लक्ष्य निहित रहता है।”

एन.एम. डोडेकर के शब्दों में- “मूल्यांकन को छात्रों के द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की सीमा ज्ञात करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

N.C.E.R.T. ने मूल्यांकन के प्रत्यय को स्पष्ट करते हुए इसे एक ऐसी सतत् व व्यवस्थित प्रक्रिया बताया है जो देखती है कि-

  1. निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है?
  2. कक्षा में दिये गये अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं?
  3. शिक्षा के उद्देश्य कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रहे हैं?

अतः मूल्यांकन का यह नवीन प्रत्यय इस मूलभूत मान्यता पर आधारित है कि शिक्षण संस्थाओं में सीखने के दौरान छात्रों के जिन व्यवहारगत परिवर्तनों को लाने की हम अपेक्षा करते हैं वे शिक्षा अधिगम प्रक्रिया द्वारा किस सीमा तक प्राप्त हो पा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि मूल्यांकन प्रक्रिया में शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की वांछनीयता को देखा जाता है।

पाठ्यचर्या के मूल्यांकन की आवश्यकता सर्वप्रथम तो इसके विषय क्षेत्र से उत्पन्न होती है। यदि किसी अन्तर्वस्तु क्षेत्र में समय-समय पर विकास कार्य होते हैं और प्रचलित परिवर्तनों को समाविष्ट नहीं किया जाता है तो विद्यार्थी यथार्थ को नहीं जान सकेंगे। अतः हाल की घटनाओं के समावेश तथा पाठ्यचर्या की संरचना में उन्हें उपयुक्त स्थान देने के लिए पाठ्यचर्या का विधिवत् विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह वैज्ञानिक विश्लेषण ही पाठ्यचर्या का मूल्यांकन होगा यदि इसे युक्तिसंगत रूप से किया जाए।

पाठ्यचर्या की रूपरेखा में संकल्पना और प्रक्रियाओं की दृष्टि से भी कुछ निष्क्रिय सामग्री हो सकती है जो अधिकाल में अप्रचलित हो जाती है और क्षेत्र में प्रयोग में नहीं आती है। अतः पाठ्यचर्या से ऐसी संकल्पनाओं व प्रक्रियाओं को हटाने के लिए इसका सामाजिक आधार पर विश्लेषण किया जाता है। इसे पाठ्यचर्या वस्तुपरक मूल्यांकन भी कहते हैं।

एक पाठ्यचर्या की कुशलता को उन्नत करने के लिए लिए शैक्षिक पद्धति में निर्गत और आगत का विश्लेषण करना होगा और विश्लेषण द्वारा व्यक्त किए गए आवश्यक संशोधन करने होंगे। ‘इस प्रकार का प्रयास भी पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के अन्तर्गत आता है।

पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के दृष्टिकोण|Approaches to curriculum evaluation

इसी प्रकार अभीष्ट पाठ्यचर्या और क्रियात्मक पाठ्यचर्या में भी अन्तर हो सकते हैं। अभीष्ट पाठ्यचर्या, पाठ्यचर्या प्रलेख में निर्धारणों का उल्लेख है जिनमें पाठ्यचर्या की क्रियात्मक तथा मूल्यांकन पद्धतियाँ शामिल हैं। क्रियात्मक पाठ्यचर्या में कक्षा के वास्तविक प्रक्रम का संकेत है जिनके माध्यम से अभीष्ट पाठ्यचर्या का कार्य सम्पादित किया जाता है। अतः क्या अभीष्ट (desirable) है और क्या कार्यान्वित किया जाता है (actually i4mplemented) इसमें अन्तर हो सकता है। इस अन्तर को कम करने और स्वीकृति के उचित स्तर तक लाने के लिए पाठ्यचर्या का मूल्यांकन पुनः सहायक होगा। ये कुछ उदाहरण पाठ्यचर्या के विकास के दौरान पुनरीक्षण प्रबन्ध तथा पाठ्यचर्या कार्यान्वयन के एक अभिन्न अंग के रूप में पाठ्यचर्या के मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन का महत्व (Advantages/Importance of Curriculum Evaluation)

1. नयी पाठ्यचर्या का विकास (Development of New Curriculum)- यदि हम माध्यमिक स्तर पर एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए एक नई पाठ्यचर्या का विकास करना चाहते हैं तो एक भिन्न प्रणाली द्वारा वर्तमान पाठ्यचर्या का मूल्यांकन आज की वर्तमान उभरती आवश्यकता के अनुरूप होगा।

2. कार्यान्वयन के अन्तर्गत पाठ्यचर्या की समीक्षा (Review of Curriculum while Implementation) – पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन के दौरान इसके आयोजकों व विषय विशेषज्ञों से तुरन्त प्रतिपुष्टि माँगी जाती है। अतः इस प्रतिपुष्टि की आवश्यकता हेतु भी उन्हें पाठ्यचर्या का मूल्यांकन करना पड़ता है ताकि सभी सम्बद्ध उद्देश्यों की प्रभावी प्राप्ति के लिए यदि आवश्यक हो तो उनमें संशोधन किए जा सकें।

3. निष्क्रिय सामग्री को हटाना और विद्यमान पाठ्यचर्या को अद्यतन करना (Removing Passive Content and Updating Existing Curriculum) – एक बार पाठ्यचर्या के निर्माण व विकास के बाद जब उसे क्रियान्वित किया जाता है तो विभिन्न लोगों से इसकी प्रतिपुष्टि ली जाती है तत्पश्चात् यह भी आवश्यक हो जाता है कि पाठ्यचर्या से अव्यवहृत व असार्थक विचारों और प्रक्रियाओं को हटाया जाए और पाठ्यचर्या में प्रचलित समसामयिक परिवर्धन शामिल किए जाएँ।

4. पाठ्यचर्या मूल्यांकन द्वारा छात्रों के अपेक्षित व व्यवहारगत परिवर्तनों में बदलाव को जानना (Knowing the Change between Expected and Desirable Behavioral Outcomes by Curriculum Valuation) – पाठ्यचर्या के मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों से अपेक्षित तथा उनमें हो चुके व्यवहारगत परिवर्तनों की तुलना हो जाती है। इसके अभाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि उद्देश्यों की पूर्ति हुई है अथवा नहीं तथा यदि हुई भी है तो किस अंश अथवा सीमा तक। इससे यह भी पता चलता है कि ज्ञान, अवबोध, कौशल, मूल्य, अभिवृत्ति आदि सम्बन्धी उद्देश्य कहाँ तक पूर्ण हो सके हैं।

5. भावी उपयोगी निर्देशन हेतु (For Future useful Guidance) – पाठ्यचर्या की प्रक्रिया सतत् चलती रहती है। वृत्त वस्तु पर अंकित बिन्दुओं के समान उसके क्रमिक सोपान एक-दूसरे के बाद आते चले जाते हैं। इस दृष्टि से मूल्यांकन भावी कार्य के लिए उपयोगी निर्देश देता है। मूल्यांकन के आधार पर ही निर्णय लिया जा सकता है कि जो कुछ प्राप्त हो चुका है उसे कैसे आगे बढ़ाया जाये तथा जिसकी प्राप्ति नहीं हो सकी है उसके लिए किस प्रकार के परिवर्तन किए जाएँ।

6. पाठ्यचर्या की प्रभावशीलता मालूम करना (To Know the Effectiveness of Curriculum) – किसी भी पाठ्यचर्या की प्रभावशीलता का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने के लिए उसके शीघ्र तथा दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के सन्दर्भ में, पाठ्यचर्या के मूल्यांकन का प्रयोग आवश्यक होगा। यह मूल्यांकन प्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के मूल्यांकन से भिन्न है।
उपर्युक्त बिन्दुओं के विवेचन से स्पष्ट है कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन, अध्यापकों और निर्णयकर्ताओं की पाठ्यचर्या तथा इसके विकास और कार्यान्वयन पर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने में सहायता कर सकता है। निःसन्देह यह किसी पाठ्यचर्या मूल्यांकन कार्य का मुख्य उद्देश्य है।

ससत् एवं व्यापक मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

सतत् मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Continuous Evaluation) – सतत् मूल्यांकन का अर्थ आंकलन या परीक्षण से है, जिससे शिक्षार्थी के अध्ययन एवं उपलब्धियों का प्रतिमाह आंकलन किया जाता है। सतत् मूल्यांकन प्रक्रिया में सामान्यतः सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को दस इकाइयों में विभक्त कर दिया जाता है तथा उसका व्यवस्थित लेखा जोखा रखा जाता है। प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक कक्षाओं में सतत् प्रक्रिया हर जगह प्रचलित नहीं है किन्तु यह उस रूप में प्रचलित नहीं है जिस प्रकार कि सतत् मूल्यांकन के मौलिक स्वरूप में होनी चाहिए। इससे केवल ज्ञानार्जन के शैक्षिक कौशल का मूल्यांकन ही किया जाता है। शैक्षिकेत्तर उपलब्धियों का कोई मूल्यांकन नहीं किया जाता है। इसे निरन्तर मूल्यांकन योजना भी कहते हैं।

ससत् एवं व्यापक मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

व्यापक मूल्यांकन से आशय (Meaning of Comprehensive Evaluation)- दक्षता आधारित मूल्यांकन प्रत्येक दिन कक्षा में शिक्षण के अन्तर्गत छात्रों में दक्षता सिखाने के बाद उसका मूल्यांकन किया जाता है किन्तु छात्रों की दक्षता के अतिरिक्त उसमें संज्ञानात्मक पक्ष, भावात्मक पक्ष तथा क्रियात्मक पक्ष भी सम्मिलित होते हैं, जिनका मूल्यांकन दक्षताधारित विधि से सम्भव नहीं होता। इसलिए छात्रों के विकास हेतु व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। व्यापक मूल्यांकन की दृष्टि से विद्यार्थी के निम्नलिखित पक्षों पर ध्यान दिया जाता है-

  1. वैयक्तिक एवं सामाजिक सद्गुण- इसके अन्तर्गत समयबद्धता, नियमबद्धता, नैतिकता, उत्तरदायित्व की भावना, स्वच्छता एवं सहयोग, सत्यनिष्ठता, नियमितता एवं समाजसेवा आदि गुण सम्मिलित हैं।
  2. पाठ्यक्रम सम्बन्धी क्रियाएँ- इसके अन्तर्गत वाद-विवाद, खेलकूद, भाषण, नाटक, तैरना, स्काउटिंग तथा कार्यानुभव आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिनका मूल्यांकन अति आवश्यक होता है।
  3. स्वास्थ्य विवरण- इसके अन्तर्गत लम्बाई, भार, स्वास्थ्य तथा शारीरिक विकास आदि सम्मिलित हैं।
  4. छात्र की अभिरुचियाँ- इसके अन्तर्गत साहित्य, संगीत कला तथा प्रकृति दर्शन सम्मिलित हैं।
  5. अभिवृत्तियाँ – इसके अन्तर्गत समाजवाद, राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता आती सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषतायें (Characteristics of Continuous and Comprehensive)-

1. ससत् और व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थियों के सभी पक्षों को जानने के लिए स्कूल आधारित मूल्यांकन है।

2. सतत् और व्यापक मूल्यांकन का सतत् पक्ष मूल्यांकन की निरन्तरता और ‘आवर्तिता’ (Periodicity) पर ध्यान देता है।

3. ‘सतत्’ का अर्थ है विद्यार्थियों का शिक्षा के प्रारम्भ में मूल्यांकन (Placement evaluation) और शिक्षण प्रक्रिया की अवधि में मूल्यांकन (संरचनात्मक मूल्यांकन) करना तथा अनौपचारिक रूप में बहुविधि तकनीकियों का मूल्यांकन के लिये प्रयोग करना।

4. आवर्तिता के प्रत्यय को ऋणात्मक अर्थों में नहीं लेना चाहिए अर्थात् अधिक-से-अधिक परीक्षण देना। यह किसी भी प्रकार से विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिए भार नहीं होना चाहिए। 5. सतत् और व्यापक मूल्यांकन का ‘व्यापक’ घटक बच्चे के व्यक्तित्व के चतुर्मुखी विकास के आंकलन का ध्यान रखता है। इसमें और विद्यार्थियों के विकास के शैक्षिक और सह- शैक्षिक पक्षों का आंकलन सम्मिलित होता है।

6. शैक्षिक क्षेत्र में आंकलन अनौपचारिक और औपचारिक दोनों प्रकार से मूल्यांकन की बहुविध तकनीक का प्रयोग कर निरन्तर और आवर्तिता (Periodically) रूप में किया जाता है। नैदानिक मूल्यांकन यूनिट के अन्त में किया जाता है। खराब निष्पादन का कारण कुछ यूनिटों में नैदानिक परीक्षणों के प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जाता है।

7. सह-पाठ्यचारी क्षेत्र में आंकलन निश्चित कसौटियों के आधार पर बहुविध तकनीकियों के प्रयोग द्वारा किया जाता है, जबकि सामाजिक और व्यक्तिगत विशेषताओं का आंकलन व्यवहारपरक सूचकांकों के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इन्हीं के द्वारा विभिन्न रुचियों, मूल्यों और मनोवृत्तियों आदि का भी आंकलन किया जाता है।

8. सतत् और व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थियों के स्कूल आधारित मूल्यांकन पद्धति को इंगित करता है जिसमें विद्यार्थियों के समस्त पक्ष सम्मिलित होते हैं।

9. सतत् और व्यापक मूल्यांकन निरन्तर और आवधिक (Periodic) मूल्यांकन का ध्यान रखता है।

10. निरन्तर का अर्थ है अध्यापन से पूर्व आंकलन और अध्यापन की अवधि में मूल्यांकन (संरचनात्मक मूल्यांकन), मूल्यांकन की बहुविधि तकनीक का प्रयोग अनौपचारिक रूप से करना।

11. ‘आवधिक’ का अर्थ निष्पादन का आंकलन यूनिट के अन्त में निरन्तर करना (योगात्मक मूल्यांकन) जिसमें निकष सन्दर्भित परीक्षणों का प्रयोग होता है और मूल्यांकन की बहुविध तकनीक का प्रयोग होता है।

12. सतत् और व्यापक मूल्यांकन का व्यापक भाग बालक के व्यक्तित्व के चतुर्मुखी विकास का ध्यान रखता है। इसमें शैक्षिक और सहपाठ्यचारी पक्षों का विकास सम्मिलित होता है।

13. शैक्षिक पक्ष में पाठ्य क्षेत्र या विषय विशेष के क्षेत्र सम्मिलित होते हैं, जबकि सहपाठ्यचारी पक्ष में सह-पाठ्य और व्यक्तिगत सामाजिक विशेषताएँ, रुचियाँ, मनोवृत्तियाँ और मूल्य (Values) सम्मिलित होते हैं।

14. शैक्षिक क्षेत्र का आंकलन औपचारिक या अनौपचारिक होता है तथा इसमें बहुत-सी मूल्यांकन तकनीक का प्रयोग निरन्तर या समय-समय पर होता है। निदानात्मक मूल्यांकन यूनिट के अन्त में होता है। कुछ यूनिट में खराब निष्पादन निदान परीक्षणों द्वारा ज्ञात किया जाता है।

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में अध्यापकों की क्या भूमिका है? इसक सन्दर्भ में व्यापक भ्रांतियों का वर्णन कीजिए।

ससत् और व्यापक मूल्यांकन में अध्यापकों की भूमिका (Role of Teacher in Continuous and Comprehensive Evaluation) – विद्यार्थियों के सीखने की अवधि में मूल्यांकन प्रक्रिया में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह आशा की जाती है और वांछित भी है कि अध्यापक आकलन की विधियों और प्रक्रियाओं के सम्बन्ध में सर्वोत्तम समझ का प्रयोग करे। इस दृष्टिकोण से निम्नांकित जानने की आशा की जाती है-

1. आकलन प्रक्रिया में अधिगम प्रक्रिया का आकलन शामिल होता है। यह आकलन अध्यापन अधिगम प्रक्रिया को सुधारने में सहायक होता है।

2. बार-बार (Frequently) परीक्षण और परीक्षाएं (examinations) लेना आवश्यक होता है।

3. प्रत्ययात्मक समझ के आकलन के लिए विविध उपकरण और तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। बिना परम्परागत कागज-पेन्सिल परीक्षण पर सदैव निर्भर रहने के। यह उपकरण (मौखिक प्रोजेक्ट्स, समूह क्रियाएँ, प्रस्तुतीकरण, परिचर्या आदि) हर विद्यार्थी को अपनी समझ (Understanding), विभिन्न योग्यताएँ, अधिगम शैली और कौशल या दक्षता दशनि का मौका प्रदान करते हैं।

4. कक्षा का मित्रवत् वातावरण आकलन के भय को कम कर देता है। इसकी अपेक्षा अध्यापक को अपने हर छात्र को स्वयं का आकलन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। समूह क्रियाएँ और साथी का आकलन मैत्रीपूर्ण वातावरण उत्पन्न करता है।

5. विद्यार्थियों को प्रश्नों का उत्तर देने को वैकल्पिक अपरम्परागत विधियों को देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

6. गलत उत्तरों का प्रयोग बच्चे की समझ के स्तर का विश्लेषण करने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जो क्रमशः सही प्रत्यय के निर्माण में सहायक हो सकता है।

7. केवल अन्तिम परिणम से बालक की क्षमता का निर्णय करना एक अच्छा विचार नहीं है वरन् निर्णय प्रक्रिया-उन्मख होना चाहिए

8. आकलन कसौटी का अधिगमकर्ता और अभिभावकों से साझा करना, उन्हें यह समझने में सहायक होता है कि उनसे क्या आशा की जाती है। इस प्रकार उपागम विद्यार्थियों को अपने आवंटित कार्य कर सुधार को प्रतिविम्बित करने का अवसर प्रदान करता है।

9. विद्यार्थियों और अभिभावकों को अभिप्रेरित करने और उनको उसमें अन्तर्भाविता (Involvement) के लिए आकलन परिणाम उपयुक्त विधि से बताया जाए।

10. परम्परागत विद्यार्थियों को दिये जाने वाले नाम जैसे ‘Slow Learner’, ‘Poor performer’ या ‘Intelligent child’ की उपेक्षा की जानी चाहिए और लिंग, जाति, धर्म तथा आयु सम्बन्धी अभिनति (Biased) नहीं होनी चाहिए। इसके बजाय सकारात्मक और सुधारात्मक टिप्पणी जो सरल भाषा में की गई हो वह विद्यार्थियों के निष्पादन में सहायक हो सकती है।

11. ऐसे कार्यों का निर्माण करना जो बजाय गणनात्मक निपुणता या गणितीय तथ्य का आकलन करने की अपेक्षा प्रत्ययों के निर्माण की सुविधा प्रदान करे।

12. एक विशेष कक्षा के अध्यापन में सभी अध्यापकों के मध्य समन्वय उनमें निरन्तर मीटिंग से उत्तम हो सकता है, क्योंकि इसके द्वारा विभिन्न प्रोजेक्ट्स गृह कार्य जो विद्यार्थियों को दिये जाते हैं ताकि वे अति भार न हो जाएँ।

अतः मस्तिष्क में अधिगम के उद्देश्य को रखते हुए अध्यापक आकलन को सतत्, अन्तःक्रियात्मक, बच्चे के मित्रवत् और अधिगम की प्रक्रिया का भाग बना सकते हैं।

ससत् और व्यापक मूल्यांकन के सम्बन्ध में भ्रान्तियाँ (Misconceptions about Comprehensive and Continuous Evaluation) – सतत् और व्यापक मूल्यांकन के सम्बन्ध में कुछ भ्रान्तिायाँ हैं जिन्हें निम्नांकित पंक्तियों में सूचीबद्ध किया जा सकता है-

  1. सतत् और व्यापक मूल्यांकन अंकों को ग्रेड्स में परिवर्तित करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। वास्तव में CCE बच्चे के सर्वमुखी विकास के सम्बन्ध में है और यह अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और रहना अधिगम को हतोत्साहित करता है।
  2. जिन विद्यार्थियों का सतत् आकलन होता है वे अनुभव करते हैं कि उन पर निरन्तर नजर रखी जा रही है और इस अवधि में उनसे जो भी त्रुटियाँ होती हैं वे उनके विपरीत जाती हैं। इससे उनमें तनाव उत्पन्न होता है। इसके विपरीत सतत् और व्यापक मूल्यांकन में यह आशा की जाती है कि किसी भी समय विद्यार्थी यह अनुभव न करें कि वह निगरानी में हैं। विशेष रूप से क्षे त्रुटि के प्रति जाने जो उन्होंने की है और उन्हें बताया जाता है कि यह अधिगम के लिए पहला कदम है।
  3. अध्यापक यह अनुभव करते हैं कि उन्हें बच्चों के अधिगम का आकलन करने के लिए रोज कुछ गृह कार्य देना होता है ताकि इससे अध्यापक और विद्यार्थियों दोनों पर तनाव और भार बढ़ता है। कार्य की उपयुक्त रूप से योजना और समन्वय हो इसलिए अध्यापकों द्वारा सतत्

Important Link

Disclaimer: chronobazaar.com is created only for the purpose of education and knowledge. For any queries, disclaimer is requested to kindly contact us. We assure you we will do our best. We do not support piracy. If in any way it violates the law or there is any problem, please mail us on chronobazaar2.0@gmail.com

Leave a Comment