जनसंचार माध्यम का अर्थ स्पष्ट करते हुये उसके विविध रूपों का वर्णन कीजिए |Explaining the meaning of mass media and describing its different interpretations.

जनसंचार माध्यम का अर्थ स्पष्ट करते हुये उसके विविध रूपों का वर्णन कीजिए |Explaining the meaning of mass media and describing its different interpretations.

जनसंचार माध्यम का अर्थ- जनसंचार माध्यम में तीन शब्द निहित हैं- जन-संचार माध्यम। जन से आशय आम जनता से, संचार से आशय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति या समूह तक किसी विचार, तथ्य, भाव, क्रिया को पहुँचाने से है। इसी क्रम में माध्यम से आशय-साधन, स्रोत से लगाया जाता है। सम्मिलित रूप से जनसंचार माध्यम से आशय जन सामान्य तक किसी विचार, तथ्य, भाव, क्रिया को पहुँचाने के लिए जिन साधनों अथवा स्त्रोतों का उपयोग किया जाता है। उन्हें जनसंचार माध्यम (Mass media Communication) कहा जाता है। फोन, मोबाइल फोन, पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक प्रहसन, सिनेमा टेलीविजन, कम्प्यूटर इण्टर नेट रेडियो, टैपरिकार्डर, टेलीकानफ्रोसिंग आदि जनसंचार के माध्यम कहे जाते हैं।

जनसंचार माध्यमों के विविध रूप- आधुनिक समय में कई प्रकार के जनसंचार माध्यम का अनुप्रयोग करके लोगों में शिक्षा की अलख जगायी जा सकती है। सुविधा की दृष्टि से जनसंचार के माध्यमों का वर्गीकरण दो रूपों में किया जा सकता है।

(A) जनसंचार के मृदुल माध्यम

(i) पुस्तके

(ii) पत्र-पत्रिकाएँ

(iii) दस्तावेज

(iv) मानचित्र, नक्शे

(v) चार्ट, पोस्टर ग्राफ

(vi) कामिक्स तथा कार्टन

(vii) मॉडल या प्रतिमान

(viii) विविध प्रकार के नारे

(ix) प्रदर्शनियाँ

(x) भाषण-मालाएँ

xi) नुक्कड़ नाटक (

(xii) दीवारों पर लिखवाट

(B) जनसंचार के यांत्रिक माध्यम –

(ii) टैपरिकार्डर

(i) रेडियो

(iv) लिंग्वाफोन

(iii) ग्रामोफोन

(vi) दूरदर्शन

(v) सिनेमा या चलचित्र

(viii) इण्टरनेट

(vii) कम्प्यूटर

(x) मोबाइल फोन

(ix) टेलीकान्फ्रेसिंग

उपरोक्त वर्गीकरण में से कुछ प्रमुख जनसंचार माध्यमों का वर्णन निम्नवत किया जा रहा है।

  1. दूरदर्शन (Television)- मानव जीवन को मनोरंजक ज्ञानप्रद बनाने में दूरदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। सूचनाओं के सम्प्रेषण में दूरदर्शन से बहुत सहायता मिलती है। दूरदर्शन दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम है। जब शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण एवं अनुदेशन की प्रक्रिया में दूरदर्शन का प्रयोग किया जाता है तो उसे शैक्षिक दूरदर्शन (Education Television) के नाम से संज्ञापित किया जाता है।
  2. ग्रामोफोन (Gramophone) – शिक्षण एवं अनुदेशन में श्रव्य साधनों के अन्तर्गत ग्रामोफोन एक प्रमुख यंत्र हैं। यह हाथ में संचालित होने वाला यंत्र है। इसके माध्यम से किसी भी विचार, तथ्य एवं गीतों को सुनने में बड़ी सहायता मिलती है। इस यंत्र में रिकार्ड प्लेट होता है जिस पर ध्वनि संकेत संग्रहीत होते हैं। इसे सेट पर लगा दिया जाता है जो चाभी भरने पर घूमता रहता है। इस घूमते हुए रिकार्ड प्लेट पर एक सुई सा त्रिकोना एक यंत्र रख दिया जाता है जिसके द्वारा स्पीकर बजने लगता है। शिक्षा के क्षेत्र में व्याकरण, उच्चारण की शुद्धता, छात्रों की वांछिक अभिव्यक्ति, भाषा-शैली का विकास करने में इससे बहुत मदद मिलती है।
  3. लिंग्वाफोन (Linguaphone) – शिक्षण की भाषागत समस्याओं जैसे-शुद्ध उच्चारण, वर्तनी में सुधार, आदि के समाधान में लिंग्वाफोन का विशेष महत्व है। इसके द्वारा विभिन्न देशी एवं विदेशी भाषाओं का शुद्ध एवं सरलतापूर्वक उच्चारण करके टेप कर लिया जाता है जिसे आवश्यकतानुसार अधिगम करनेवाले लोगों को अनुश्रवण कराके सिखाया जा सकता है। इससे छात्र ध्यान को एकाग्र करके तथ्यों को सुनते हैं और सीखते हैं। इस कारण छात्रों को अपनी रुचि, गति, सामर्थ्य के अनुसार सीखने का पूरा अवसर लिंग्वाफोन द्वारा मिलता है। किन्तु लिंग्वाफोन बहुत महंगा होता है और यह एक समय में एक ही छात्र को सीखाने के काम आ सकता है। अतएव इसका प्रयोग बहुत सीमित हो जाता है।
  4. चलचित्र (Motion Film)- शिक्षा के क्षेत्र में चलचित्र से श्रवणेन्द्रियों एवं चक्षुन्द्रियों के माध्यम से भावों, विचारों के प्रभाव के आत्मसातीकरण में विशेष मदद मिलती है और ये व्यक्ति के अन्तर्निहित शक्तियों को झंकृत करके व्यापक प्रभाव डालते हैं। चलचित्र बनाते समय उद्देश्य का पूरा ध्यान रखा जाता है। जिस विचार, भाव, संदेश, घटना से व्यक्तियों को परिचय कराना होता है उसी के परिप्रेक्ष्य में चलचित्र की पूरी विषय-वस्तु केन्द्रित होती है। चलचित्रों को पर्दे पर दिखाने के लिए साउण्ड फिल्म प्रोजेक्टर की सहायता ली जाती है। शिक्षण की प्रभावकारिता बढ़ाने में चलचित्रों का विशेष योगदान होता है। चलचित्र, उद्देश्यों को दृष्टि में रखते हुए तीन प्रकार का कार्य कर सकता है।

(अ) शिक्षात्मक (ज्ञानवर्ध सम्बन्धित)

(ब) अभिप्रेरणात्मक (वैयक्तिक विचारों, मूल्यों में वृद्धि से सम्बन्धित)

(स) प्रदर्शनात्मक (ज्ञान, अनुभव एवं कौशल में वृद्धि से सम्बन्धित ।

चलचित्र के द्वारा स्थायी मूल्यों को प्रस्फुटित करने में बहुत मदद मिलती है। प्रारम्भ में बालक विभिन्न तथ्यों को जानने-समझने की इच्छा रखकर उन्हें ढूँढ़ने के लिए लालायित रहता है। ऐसी स्थिति में चलचित्रों के द्वारा पर्दे पर प्रदर्शित विविध भावपूर्ण क्रिया-कौशलों, व्यवाहरों, एवं चरित्रों की नकल करके उनके साथ अनुकूलन करता है और उनको ग्रहण कर लेता है जो स्थायी मूल्यों के रूप में आजीवन बने रहते हैं।

  1. टेपरिकार्डर (Tape recorder) – शैक्षिक प्रौद्योगिकी के हार्डवेयर या कठोर उपागमों में टेपरिकार्डर का विशेष महत्व है। बल-वृद्ध, नर-नारी सभी टेपरिकार्डर का मनोरंजन रूप से उपयोग करके आनन्दित होते हैं। टेपरिकार्डर श्रव्य उपकरण है। यह बिजली या बैट्री से चलता है। इसमें एक कैसेट लगाया जाता है। कैसेट में पारदर्शी झिल्ली पर ध्वनि तरंगे लिपिबद्ध होती है। प्रमुख शिक्षाविदो के विचारों, भाषा सम्बन्धी उच्चारण को कैसेट में लिपिबद्ध करके आवश्यकतानुसार लाभ प्राप्त किया जा सकता है। टेपरिकार्डर में दूसरों के विचारों को सुनने के साथ-साथ अपने विचार भी टेप करके सुना जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर टेप किए गये विचारों को हटाकर दूसरे विचार की टेप किये जा, सकते हैं। आजकल बाजार में अत्यन्त छोटे टेपरिकार्डर से लेकर अनेक सुविधाओं से युक्त टेपरिकार्डर उपलब्ध है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुकूल टेपरिकार्डर को खरीदकर लाभ उठा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में टेपरिकार्डर का उपयोग शिक्षण/अनुदेशन के प्रसार में किया जा सकता है। शब्दों के उच्चारण को शुद्ध बनाने में टेपरिकार्डर की मदद ली जा सकती है। भाषा शिक्षण, संगीत शिक्षण में टेपरिकार्डर विशेष उपयोगी होता है। टेपरिकार्डर का प्रयोग कर भाषण-कला में दक्षता प्राप्त की जा सकती है। कक्षा में यदि कोई छात्र किसी कारण वश उपस्थित नहीं हो पाया है तो टेपरिकार्डर की मदद से शिक्षक के विचारों को टेप करके लाभान्वित हो सकता है। छात्राध्यापक सूक्ष्म शिक्षण कार्यक्रमों में टेपरिकार्डर की मदद लेकर प्रभावोत्पादक शिक्षण कला का प्रदर्शन कर सकते हैं।
  2. रेडियो (Radio) – श्रव्य प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम शक्तिशाली एवं प्रभावशाली यान्त्रिक उपकरण रेडियो है। रेडियो एक ऐसा कठोर उपागम है जो विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में सन्देशों को विविध स्थानों पर बिना तार एवं एन्टीनी के भेजता है। इसके द्वारा विविध प्रकार के संगीत कार्यक्रम, कविता, नाटक, घटनाओं एवं खेलों का आँखों देखा हाल, समाचार आदि सुनने को मिलते हैं। रेडियो संचार व्यवस्थाएँ विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा संचालित होती। इसका आविष्कार 1860 में स्काटलैण्ड भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने किया तथा किन्तु 1895 ई० में इटली के वैज्ञानिक गुग्लील्मो मारकोनी ने इसे बेतार के तार (Wireless) के रूप में स्थापित किया। मारकोनी ने 1901 में पहली बार रेडियो तरंगों द्वारा इंग्लैण्ड के अटलांटिक सागर के आर-पार सन्देश भेजने में सफलता प्राप्त की। मारकोनी को ही रेडियों का वास्तविक जन्मदाता माना जाता है। रेडियो प्रसारण के लिए 150 हजार हटर्ज तक की रेडियो तरंगे प्रयोग में लायी जाती हैं। इन तरंगों के इस अन्तराल को तीन भागों में बाँटा गया है- मिडियम वेव, साटवेव, और अल्ट्रासार्टवेव ।

  1. दूरदर्शन (Television)- मानव जीवन को मनोरंजक ज्ञानप्रद बनाने में दूरदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। सूचनाओं के सम्प्रेषण में दूरदर्शन से बहुत सहायता मिलती है। दूरदर्शन दृश्य-श्रव्य कठोर उपागम है। जब शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण एवं अनुदेशन की प्रक्रिया में दूरदर्शन का प्रयोग किया जाता है तो उसे शैक्षिक दूरदर्शन (Education Television) के नाम से संज्ञापित किया जाता है।
  2. ग्रामोफोन (Gramophone) – शिक्षण एवं अनुदेशन में श्रव्य साधनों के अन्तर्गत ग्रामोफोन एक प्रमुख यंत्र हैं। यह हाथ में संचालित होने वाला यंत्र है। इसके माध्यम से किसी भी विचार, तथ्य एवं गीतों को सुनने में बड़ी सहायता मिलती है। इस यंत्र में रिकार्ड प्लेट होता है जिस पर ध्वनि संकेत संग्रहीत होते हैं। इसे सेट पर लगा दिया जाता है जो चाभी भरने पर घूमता रहता है। इस घूमते हुए रिकार्ड प्लेट पर एक सुई सा त्रिकोना एक यंत्र रख दिया जाता है जिसके द्वारा स्पीकर बजने लगता है। शिक्षा के क्षेत्र में व्याकरण, उच्चारण की शुद्धता, छात्रों की वांछिक अभिव्यक्ति, भाषा-शैली का विकास करने में इससे बहुत मदद मिलती है।
  3. लिंग्वाफोन (Linguaphone) – शिक्षण की भाषागत समस्याओं जैसे-शुद्ध उच्चारण, वर्तनी में सुधार, आदि के समाधान में लिंग्वाफोन का विशेष महत्व है। इसके द्वारा विभिन्न देशी एवं विदेशी भाषाओं का शुद्ध एवं सरलतापूर्वक उच्चारण करके टेप कर लिया जाता है जिसे आवश्यकतानुसार अधिगम करनेवाले लोगों को अनुश्रवण कराके सिखाया जा सकता है। इससे छात्र ध्यान को एकाग्र करके तथ्यों को सुनते हैं और सीखते हैं। इस कारण छात्रों को अपनी रुचि, गति, सामर्थ्य के अनुसार सीखने का पूरा अवसर लिंग्वाफोन द्वारा मिलता है। किन्तु लिंग्वाफोन बहुत महंगा होता है और यह एक समय में एक ही छात्र को सीखाने के काम आ सकता है। अतएव इसका प्रयोग बहुत सीमित हो जाता है।
  4. चलचित्र (Motion Film)- शिक्षा के क्षेत्र में चलचित्र से श्रवणेन्द्रियों एवं चक्षुन्द्रियों के माध्यम से भावों, विचारों के प्रभाव के आत्मसातीकरण में विशेष मदद मिलती है और ये व्यक्ति के अन्तर्निहित शक्तियों को झंकृत करके व्यापक प्रभाव डालते हैं। चलचित्र बनाते समय उद्देश्य का पूरा ध्यान रखा जाता है। जिस विचार, भाव, संदेश, घटना से व्यक्तियों को परिचय कराना होता है उसी के परिप्रेक्ष्य में चलचित्र की पूरी विषय-वस्तु केन्द्रित होती है। चलचित्रों को पर्दे पर दिखाने के लिए साउण्ड फिल्म प्रोजेक्टर की सहायता ली जाती है। शिक्षण की प्रभावकारिता बढ़ाने में चलचित्रों का विशेष योगदान होता है। चलचित्र, उद्देश्यों को दृष्टि में रखते हुए तीन प्रकार का कार्य कर सकता है।

(अ) शिक्षात्मक (ज्ञानवर्ध सम्बन्धित)

(ब) अभिप्रेरणात्मक (वैयक्तिक विचारों, मूल्यों में वृद्धि से सम्बन्धित)

(स) प्रदर्शनात्मक (ज्ञान, अनुभव एवं कौशल में वृद्धि से सम्बन्धित ।

चलचित्र के द्वारा स्थायी मूल्यों को प्रस्फुटित करने में बहुत मदद मिलती है। प्रारम्भ में बालक विभिन्न तथ्यों को जानने-समझने की इच्छा रखकर उन्हें ढूँढ़ने के लिए लालायित रहता है। ऐसी स्थिति में चलचित्रों के द्वारा पर्दे पर प्रदर्शित विविध भावपूर्ण क्रिया-कौशलों, व्यवाहरों, एवं चरित्रों की नकल करके उनके साथ अनुकूलन करता है और उनको ग्रहण कर लेता है जो स्थायी मूल्यों के रूप में आजीवन बने रहते हैं।

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