क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम: अर्थ, विशेषताएँ व सीमाएँ|Activity-centered curriculum: meaning, characteristics and limitations

क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम: अर्थ, विशेषताएँ व सीमाएँ|Activity-centered curriculum: meaning, characteristics and limitations

क्रिया केन्द्रित पाठ्यक्रम से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताओं व सीमाओं का वर्णन कीजिए।

क्रिया केन्द्रित पाठ्यक्रम (Activity Centered Curriculum) – क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम कार्य को आधार बनाता है। इसके अन्तर्गत कक्षा कार्य के लिए विषयवस्तु का चयन शिक्षार्थियों की अभिरुचियों, आवश्यकताओं, समस्याओं तथा अनुभवों के आधार पर किया जाता है। यह पाठ्यक्रम परम्परागत विषय-आधारित पाठ्यक्रम की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप प्रकाश में आया है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसका सूत्रपात प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री पेस्टालॉजी तथा रूसो ने किया है, किन्तु इसके वास्तविक प्रणेता प्रसिद्ध अमेरिकी शिक्षाविद् जॉन डीवी थे। डीवी ने जो शिक्षा योजना अपने प्रयोगात्मक विद्यालय (Laboratory School) में कार्यान्वित की उसे विषय या अन्तर्वस्तु पर आधारित करने के स्थान पर उसमें बालकों की चार प्रमुख प्रवृत्तियों को अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान किये गये। इसमें सामाजिकता, रचनात्मकता, प्रयोगात्मकता तथा कलात्मकता को सम्मिलित किया गया।

सन् 1930 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में इस दिशा में विशेष प्रयास प्रारम्भ हुए। इस प्रयास को एच.जी. केसवेल ने नेतृत्व प्रदान किया। इसने हरबर्ट स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित पाँच जीवन क्षेत्रों (आत्म-रक्षा, जीवन-सुरक्षा, वंश-वृद्धि एवं शिशु-पालन, सामाजिक एवं राजनैतिक, अवकाश का उपयोग) से प्रेरणा लेकर नौ जीवन क्षेत्रों का चयन किया गया। इसके अंतर्गत दो उपागम अपनाये गये-

प्रथम – सामाजिक प्राणी के रूप में मानव की क्रियाओं के महत्वपूर्ण पक्षों के चयन पर आधारित उपागम, तथा

द्वितीय – वर्तमान समाज की प्रमुख तथा शीघ्र समाधान योग्य समस्याओं के चयन पर आधारित उपागम।

इस प्रकार क्रिया-प्रधान पाठ्यक्रम में बालकों के लिए ऐसे कार्यों का आयोजन किया जाता है जिनका कुछ सामाजिक मूल्य हो तथा जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक हों। इन कार्यों का चुनाव शिक्षक और छात्रों के परस्पर सहयोग से किया जाता है तथा इनमें छात्रों की रुचियों एवं आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। डीवी महोदय क्रियाशील पाठ्यक्रम के प्रमुख समर्थक हैं। उन्होंने बालकों को ऐसे कार्यों द्वारा शिक्षा देने का सुझाव दिया है जिनके सीखने पर यह भविष्य में समाजोपयोगी कार्य करने के योग्य बन सकें।

डीवी महोदय के अनुसार ज्ञान, क्रिया का परिणाम है न कि उसका मार्ग-दर्शक। उनका कहना है कि क्रिया अथवा कार्य ही ज्ञान के स्रोत हैं। क्रिया, अनुभव से पूर्व होती है। ज्ञान एवं अधिगम, अतः अनुभव, ज्ञान आदि सभी क्रिया के ही परिणाम हैं। इस प्रकार डीवी ज्ञान एवं अनुभव में कोई विशेष अन्तर नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि ज्ञान अनुभव से प्राप्त होता है तथा अनुभव क्रिया द्वारा उत्पन्न होता है। इसीलिए इस पाठ्यक्रम को अनुभव-प्रधान पाठ्यक्रम (Experience-Centre Cuirrículum) के नाम से भी जाना जाता है। नन महोदय का कथन है कि पाठ्यक्रम में समस्त मानव जाति के अनुभवों को सम्मिलित करना चाहिए। व्यक्तित्व के विकास के लिए तथा सफल जीवन के लिए वर्तमान अनुभवों के साथ-साथ पूर्व अनुभव भी बहुत अधिक उपयोगी होते हैं।

क्रिया-प्रधान पाठ्क्रम के गुण एवं विशेषता- इस पाठ्यक्रम के प्रमुख गुण एवं विशेषता का वर्णन निम्नलिखित है-

1. इस योजना के अन्तर्गत विकसित अधिगम-अनुभवों की इकाइयाँ बालकों के लिए महत्वपूर्ण एवं सार्थक होती हैं।

2. इसमें अन्तर्वस्तु का चयन वर्तमान उपयोगिता एवं महत्व को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

3. इसमें शिक्षा के अधिक व्यापक क्षेत्रों को समाहित करना सम्भव होता है, क्योंकि ४ अध्छिाप्म-अनुभवों में पर्याप्त विविधता होती है।

4. इसमें जीवन की नवीन स्थितियों में अधिगम के उपयोग की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं।

5. इस पाठ्यक्रम में अधिगम-अनुभवों की विभिन्न इकाइयों का एकीकरण सुविधाजनक ढंग से किया जा सकता है।

6. बालकों की आवश्यकताओं एवं रुचियों पर आधारित होने के कारण इस प्रकार के पाठ्यक्रम को वे पसन्द करते हैं।
7. मानव की प्रगति में क्रियाशीलता सर्वाधिक महत्व रखती है। इससे इस पाठ्यक्रम की उपयुक्तता स्वयंसिद्ध है।

क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ- बहुत अधिक लोकप्रिय होने तथा अनेक गुणों से युक्त होने पर भी इस प्रकार के पाठ्यक्रम की कुछ सीमाएँ भी हैं, जो निम्नवत् हैं-

1. इस योजना को अपनाने के लिए अनुकूल सामाजिक एवं शैक्षिक स्थितियाँ प्रायः नहीं मिल पाती हैं।

2. नवीन योजना होने के कारण नवीन पाठ्य-पुस्तकों, शिक्षण संदर्शिकाओं, सन्दर्भ पुस्तकों, नवीन सहायक-सामग्री के निर्माण, शिक्षकों के प्रशिक्षण आदि की पुनः आवश्यकता होती है।

3. इस पाठ्यक्रम के लिए छात्रों को भी तैयार करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे प्रायः परम्परागत विषय-आधारित पाठ्यक्रम से अनुकूलित रहते हैं।

4. नवीन तथा अपरिचित उपागम होने के कारण पाठ्यक्रम-नियोजन संशोधन एवं परिवर्धन के कार्य में अभिभावकों तथा अन्य नागरिकों की समुचित सहायता नहीं मिल पाती है। अतः प्रायः छात्रों को भी असुविधा होती है।

5. इस उपागम में अधिगम के कई महत्वपूर्ण पक्ष छूट जाते हैं।

एकीकृत उपागम क्या है? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

एकीकृत या समन्वित या समेकित उपागम (Integrated Approach) – निर्धारित पाठ्यक्रम के विभिन्न तत्वों का एक साथ समेकन ही एकीकृत या समेकित या समन्वित दृष्टिकोण या उपागम है।

समन्वित उपागम (Integrated Approach) – शैक्षिक जगत की एक आधुनिक घटना है। बीसवीं शताब्दी में मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक नये प्रयोग प्रतिपादित किये गये। इन्हीं प्रयोगों ने गेस्टाल्टवाद (Gestaltism) अर्थात् पूर्णाकारवाद को जन्म दिया। इस वाद के अनुसार मस्तिष्क एक इकाई है। मस्तिष्क ज्ञान को छोटे-छोटे टुकड़ों में प्राप्त नहीं करता, बल्कि उसे पूर्ण रूप में ग्रहण करता है। वही वस्तु या विचार मस्तिष्क में स्थिर होता है जो पूर्ण अर्थ देता है।

इन मनोवैज्ञानिक खोजों ने शिक्षा को प्रभावित किया तथा गेस्टाल्टवाद के अनुसार अमेरिकी विद्यालयों में एकीकृत पाठ्यचर्या का विकास हुआ। एकीकृत पाठ्यचर्या एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है जिसके अनुसार कोई विचार तथा क्रिया तभी प्रभावशाली एवं उपयोगी होती है जब उसके विभिन्न भागों या पक्षों में एकता होती है।

अतः एकीकृत पाठ्यचर्या से तात्पर्य उस पाठ्यचर्या से है जिसमें उसके विभिन्न विषय एक-दूसरे से इस प्रकार सम्बन्धित होते हैं कि उनके बीच कोई अवरोध नहीं होता, बल्कि उनमें एकता होती है। इस प्रकार पाठ्यचर्या के विभिन्न विषयों के ज्ञान को विभिन्न खण्डों में प्रस्तुत न > करके, सब विषय मिलकर ज्ञान को एक इकाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि ‘ज्ञान एक है।’ इस दृष्टि से पाठ्यचर्या के सभी विषय ज्ञान रूपी इकाई के विभिन्न अंग हैं। पठन-पाठन की सुविधा तथा कुछ अन्य व्यावहारिकताओं के कारण शिक्षा की पाठ्यचर्या को विभिन्न विषयों में विभक्त कर दिया गया है, किन्तु इस विभाजन का यह अर्थ नहीं है कि बालकों को विभिन्न विषयों का अलग-अलग ज्ञान कराया जाये।

शिक्षा का उद्देश्य बालकों को ज्ञान की एकता से परिचित कराना है। यह उद्देश्य विषयों को अलग-अलग रूप में पढ़ाने से पूर्ण नहीं हो सकता अर्थात् यह कार्य तभी सम्पन्न हो सकता है, जबकि विषयों को एक-दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाये। इसके लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न विषयों को इस प्रकार परस्पर सम्बन्धित किया जाये कि उनके बीच किसी प्रकार की दीवार न हो। यह दायित्व शिक्षक का ही है कि वह पाठ्यचर्या के सभी विषयों को सम्बन्धित करे, पाठ्यचर्या की सामग्री का जीवन से सम्बन्ध स्थापित करे तथा प्रत्येक विषय-सामग्री में भी सह- सम्बन्ध स्थापित करे। इस प्रकार जो पाठ्यचर्या उक्त सभी प्रकार के सम्बन्धों से युक्त हो, उसे ही एकीकृत पाठ्यचर्या’ की संज्ञा दी जायेगी।

हेन्डरसन (Henderson) ने एकीकृत समन्वित पाठ्यचर्या की परिभाषा इस प्रकार की है- “एकीकृत पाठ्यचर्या वह पाठ्यचर्या है जिसमें विषयों के बीच कोई अवरोध, रुकावट अथवा दीवार नहीं होती।”

हेन्डरसन के अनुसार, इस प्रकार की पाठ्यचर्या उन अनुभवों को देती है जिन्हें एकीकरण की प्रक्रिया के लिए सुविधाजनक समझा जाता है तथा जिससे बालक उस पाठ्य-वस्तु को सीखते हैं जो अनुभवों को समझने में एवं उनके पुनर्निर्माण में सहायक होती है। इस प्रकार की अनुभव- प्रधान पाठ्यचर्या विषय को अलग-अलग रखने तथा उनको शीर्षकों में बाँटने का अन्त करती है एवं ऐसे विषयों को स्थान देती है जो बालक की रुचि के केन्द्र होते हैं।

आज जब ज्ञान का निरन्तर प्रसार हो रहा है तथा त्वरित गति से ज्ञान का प्रसार हो रहा है तो कई विचारकों द्वारा कई विषयों को एक साथ मिलाकर पाठ्यचर्या तैयार कर छात्रों को देने की बात सोची गई। उदाहरणार्थ – राजस्थान में प्रयुक्त तथा एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा केन्द्रीय विद्यालयों के लिए सामाजिक अध्ययन की पाठ्यचर्या इस उपागम का उदाहरण हो सकती है जिससे अर्थशास्त्र, भूगोल, नागरिकशास्त्र, कॉमर्स तथा समाजशास्त्र विषयों को सम्मिलित करके ‘सामाजिक अध्ययन’ की पाठ्य-पुस्तक तैयार की गई है। इस उपागम को पढ़ाते समय यह अवश्य आभास होता है कि कहाँ-कहाँ किस विषय की विषयवस्तु छात्रों को पढ़ाई जा रही है। इस पाठ्चर्या द्वारा छात्रों के पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान को सम्बन्धित करने में भी आसानी होती है।

एकीकृत/समन्वित उपागम की विशेषताएँ (Characteristics of Integrated Approach) – एकीकृत या समन्वित उपागम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

  1. इस पाठ्चर्या में ज्ञान को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  2. इसके माध्यम से छात्र विभिन्न विषयों का ज्ञान एक साथ प्राप्त करते हैं।
  3. यह पाठ्यचर्या अनुभव केन्द्रित होती है।
  4. इससे बालकों को जीवनोपयोगी शिक्षा मिलती है।
  5. इसमें छात्रों की रुचियों को महत्व दिया जाता है।
  6. इस पाठ्यचर्या से शिक्षकों का उत्तरदायित्व एवं कार्य-भार बढ़ जाता है।
  7. इस पाठ्यचर्या की सफलता के लिए शिक्षक को पर्याप्त एवं व्यापक अध्ययन की आवश्यकता होती है।।
  8. एकीकृत या समन्वित उपागम में छात्रों के पूर्व-ज्ञान से नवीन ज्ञान को सम्बन्धित करने में आसानी होती है।

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