अहिंसा परमो धर्म |Non Violence is the ultimate religion:
कहने के लिए तो संसार में बहुत सारे धर्म हैं; जैसे-हिन्दू, इस्लाम, सिख, ईसाई आदि, लेकिन इन सभी धर्मों से ऊपर एक धर्म और है, जिसका अनुकरण पूरी मानव जाति के लिए अपेक्षित है। यह श्रेष्ठ धर्म है-अहिंसा। कहा भी गया है
अहिंसा का अर्थ है- हिंसा न करना। कोई भी ऐसो कर्म या कार्य, जिससे किसी भी जीव को शारीरिक आघात या कष्ट पहुँचता है, हिंसां की श्रेणी में आता है। देखा जाए तो हिंसा का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना मानव सभ्यता का। आरम्भ में जब आदिमानव था, तो उसके सामने अपना अस्तित्व बनाए रखने का प्रश्न था। उस समय अहिंसा जैसे महान् विचार का उद्भव सम्भव ही नहीं था। धीरे-धीरे मानव ने सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए, लेकिन हिंसा जैसी पाशविक प्रवृत्ति उसके साथ-साथ चलती रही।
मनुष्य ने नगर बसाए, साम्राज्य स्थापित किए। इस क्रम में, हिंसा बलवती होती गई। प्रारम्भ में मनुष्य का उद्देश्य केवल अपना बचाव करना था, परन्तु अब उसका उद्देश्य अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करना था। कभी साम्राज्य विस्तार के लिए, तो कभी शक्ति प्रदर्शन के लिए, कभी दूसरे को नीचा दिखाने के लिए, तो कभी जबरन अधिकार करने के लिए युद्ध होते रहे और हिंसा बढ़ती गई। इतिहास साक्षी है कि भारतवर्ष सहित पूरा विश्व हिंसा के दंश से पीड़ित रहा है।
हिंसा करना, परस्पर लड़ना, मरना-मारना आदि पशुता के चिह्न हैं। यह मानव जैसे सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी को शोभा नहीं देता। अब तक के कालक्रम से भी सिद्ध हो चुका है कि हिंसा से किसी का कोई भला नहीं होता। यदि हम अपने वैदिक इतिहास को देखें, तो उस समय महाभारत जैसा भयंकर महायुद्ध हुआ था। उस युद्ध में भयंकर रक्तपात हुआ था। उस युद्ध में हुई भीषण हिंसा का परिणाम यह हुआ था कि भारतवर्ष को एक बार फिर से एक नई शुरूआत करनी पड़ी।
कहा जाता है कि उस युद्ध के बाद देश में क्षत्रियों का अकाल पड़ गया था। लाखों स्त्रियाँ विधवा हो गई थीं। बूढ़े एवं बच्चे असहाय हो गए थे। यह प्रथम बार था जब हमें हिंसा के परिणामों को बहुत करीब से देखना पड़ा था, इसके बावजूद बाद के समय में युद्ध होते रहे और हिंसा जारी रही। यहाँ के राजा आपस में लड़ते रहे। इसके कारण देश को जन-धन की हानि तो उठानी ही पड़ी, साथ ही गुलामी का अभिशाप भी सहना पड़ा, क्योंकि लगातार चलते गृहयुद्धों ने हमारी एकता को नष्ट कर दिया था।
भारत के अतिरिक्त शेष विश्व को भी हिंसा से कुछ कम हानि नहीं हुई है। प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा अपने-अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए हुए इन युद्धों से सम्पूर्ण विश्व को जितना नुकसान हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ। इन युद्धों में न केवल इंसानों को, बल्कि पशु-पक्षियों को भी भारी क्षति उठानी पड़ी थी। युद्ध के कई मोर्चों पर सैनिकों के साथ-साथ हाथी, घोड़े, कुत्ते, कबूतर, भालू, गधे, खच्चर आदि भी तैनात किए गए थे।
एक आकलन के अनुसार, अकेले प्रथम विश्वयुद्ध में ही लगभग एक करोड़ इंसान मारे गये, तो 80 लाख घोड़ों ने भी अपनी जान गंवाई। द्वितीय विश्वयुद्ध में तो इससे भी भयंकर तबाही हुई। जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुआ परमाणु बम हमला भला कौन भुला सकता हैं? जापान कई दशक बाद भी इसके दुष्प्रभावों को झेल रहा है। इन दोनों विश्वयुद्धों में हुई हिंसा और उसके परिणामों को देखकर ही आज यह कहा जाता है कि यदि तृतीय विश्वयुद्ध हुआ, तो पृथ्वी पर कोई जीवित नहीं बचेगा। अतः यह कहा जा सकता है कि हिंसा अपने आप में कभी कोई हितकर प्रवृत्ति है ही नहीं।
हिंसा विनाश का ही दूसरा नाम है, जबकि अहिंसा ठीक इसके विपरीत है। अहिंसा ही एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य विकास, उन्नति और शान्ति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। यद्यपि अहिंसा का मार्ग हिंसा की तुलना में बहुत कठिन है, क्योंकि अहिंसा का अनुसरण करने के लिए त्याग, सहनशीलता, सच्चाई, बलिदान और मानवतावादी सिद्धान्तों को अपनाना आवश्यक है। अहिंसा को कायरता समझना पूर्णतः अनुचित है। अहिंसा के मार्ग पर वही चल सकता है, जिसकी आत्मा बलवान हो। आधुनिक विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी ने भी कहा है- “अहिंसा शक्तिशाली का हथियार है।”
अहिंसा का मार्ग कठिन अवश्य है, परन्तु इस पर चलना असम्भव कदापि नहीं है। महान् सम्म्राट अशोक, महात्मा बुद्ध और महात्मा गाँधी का जीवन-वृत्तान्त इसका साक्षी है। भगवान बुद्ध का सबसे बड़ा सिद्धान्त अहिंसा ही था। अपने उपदेशों में उन्होंने मन, वचन और कर्म से किसी भी प्राणी को कष्ट न देने को ही अहिंसा के रूप में प्रतिपादित किया है। इसी अहिंसा के बल पर उन्होंने सुलगती मानवता को शान्ति प्रदान की।
सम्राट अशोक ने भी कलिंग युद्ध में हिंसा से हुई क्षति का प्रत्यक्ष अनुभव करके अहिंसा को अपनाना ही श्रेष्ठ समझा। उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर हिंसा को त्याग दिया और अपनी प्रजा को सुखी रखने के लिए सब कुछ किया, जो वह कर सकते थे। उन्होंने अहिंसा और शान्ति के सन्देश को न केवल भारत में अपितु भारत से बाहर भी प्रसारित किया। यही वजह है कि आज भी उन्हें संसार ‘अशोक महान्’ कहकर सम्बोधित करता है। आधुनिक युग में अहिंसा की इस ज्ञानरूपी ज्योति को पुनः प्रज्वलित किया मोहनदास करमचन्द गाँधी ने।
महात्मा गाँधी ने भी भगवान बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए अहिंसा को ही अपने जीवन का मूल-मन्त्र बनाया। उनकी अगुवाई में जिस तरह भारत की जनता ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर शक्तिशाली अंग्रेजी सरकार से टक्कर ली और अन्त में स्वतन्त्रता प्राप्त की, उससे विश्व ने जाना कि वास्तव में अहिंसा की शक्ति हिंसा से कहीं अधिक है। महात्मा गाँधी का कहना था- “प्रेम और अहिंसा द्वारा विश्व के कठोर-से-कठोर हृदय को भी कोमल बनाया जा सकता है। आँख के बदले मे आँख पूरे विश्व को अन्धा बना देगी।” आज पूरा विश्व एकमत से यह बात स्वीकार करता है कि अहिंसा के इस पुजारी द्वारा दी गई सीख पर चलकर ही संसार में शान्ति स्थापित की जा सकती है।
आज के युग में अहिंसा का महत्त्व पहले से भी अधिक है, क्योंकि आज भी देशों के पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र हैं। यदि एक बार युद्ध के रूप में हिंसा पुनः आरम्भ हो जाएगी, तो यह सम्पूर्ण विनाश करने के पश्चात् ही रूकेगी। आइए, हम सब मिलकर अहिंसा के मार्ग को अपनाएँ। इससे निश्चित रूप से हम ऐसी सृष्टि का निर्माण कर पाएँगे, जहाँ सभी सुख में रहेंगे और अपने जीवन लक्ष्यों को पूरा कर पाएँगे।
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- पाठ्यक्रम का सामाजिक आधार: Impact of Modern Societal Issues
- मनोवैज्ञानिक आधार का योगदान और पाठ्यक्रम में भूमिका|Contribution of psychological basis and role in curriculum
- पाठ्यचर्या नियोजन का आधार |basis of curriculum planning
राष्ट्रीय एकता में कौन सी बाधाएं है(What are the obstacles to national unity) - पाठ्यचर्या प्रारुप के प्रमुख घटकों या चरणों का उल्लेख कीजिए।|Mention the major components or stages of curriculum design.
- अधिगमकर्ता के अनुभवों के चयन का निर्धारण किस प्रकार होता है? विवेचना कीजिए।How is a learner’s choice of experiences determined? To discuss.
- विकास की रणनीतियाँ, प्रक्रिया के चरण|Development strategies, stages of the process
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