अन्तर अनुशासनात्मक उपागम: महत्व एवं लाभ|Interdisciplinary Approach: Importance and Benefits

अन्तर अनुशासनात्मक उपागम: महत्व एवं लाभ|Interdisciplinary Approach: Importance and Benefits

अन्तर अनुशासनात्मक उपागम क्या है? इसके महत्व व लाभ का वर्णन कीजिए।

अन्तर अनुशासन उपागम (Interdisciplinary Approach) – अन्तर अनुशासन अध्ययन क्षेत्र वह प्रक्रिया है जो प्रश्नों के उत्तर देने की समस्या समाधान या प्रकरण से परिचित कराना है जो एक अध्ययन क्षेत्र या व्यवसाय के द्वारा प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास करता है तथा अध्ययन क्षेत्र परिप्रेक्ष्य में उत्तरों को प्राप्त कर उनमें एकीकरण द्वारा अंतर्दृष्टि विकसित कर सोचने व समझने के दायरे को फैला देता है।

विलियन के अनुसार, अन्तर अध्ययन क्षेत्र एक ऐसी पद्धति है जो पाठ्यक्रम रूपरेखा अनुदेशन जिसमें व्यक्ति संकाय या टीम पहचान करती है। मूल्यांकन कर सूचनाओं का एकीकरण, दत्त संकलन, विधि उपकरण परिप्रेक्ष्य, सम्प्रत्यय या सिद्धान्त जो दो या दो से अधिक अनुसन्धान द्वारा विद्यार्थी के ज्ञान को बढ़ाती है। अन्तर अध्ययन क्षेत्र उन्नति की क्षमता, मुद्दों को समझने की क्षमता, समस्याओं से परिचित कराने की क्षमता तथा नये उपागम व समाधानों को खोजना जो एक अध्ययन क्षेत्र से परे हो या अनुदेशन क्षेत्र से परे हो।

डायन रॉलेन के द्वारा अन्तर अनुशासन पाठ्यक्रम क्षेत्र अनुसन्धान का वह माध्यम या तरीका है जिसके द्वारा ऐसी समस्याओं का समाधान किया जाता है जो किसी एक अध्ययन क्षेत्र या अनुसन्धान अभ्यास के क्षेत्रों के बाहर या परे होता है। इस अनुसन्धान में अनुसन्धानकर्ता के द्वारा सूचनाओं का एकीकरण, दत्त संकलन, विधि, उपकरण, परिप्रेक्ष्य, सम्प्रत्यय व सिद्धान्तों जो दो या दो से अधिक अन्तर अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं, जिसके द्वारा आसानी से समस्या के मूल को समझ कर विशिष्ट तरीके से समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया जाता है।

अंतरशास्त्रीय के पाठ्यक्रम क्षेत्र में कई असम्बन्धित शैक्षिक अध्ययन इस तरह अनुसन्धान क्षेत्र में कार्य करते हैं कि दोनों विषय अपनी सीमाओं को पार कर नवीन ज्ञान व सिद्धान्त का निर्माण करते हैं जो सामान्यतया अनुसन्धान का लक्ष्य और उद्देश्य होता है।

अंतरशास्त्रीय शिक्षा अध्ययन क्षेत्र उपागम का उपयोग कर समस्या कथन का अध्ययन करती है जो अन्तर्दृष्टि के आधार पर विभिन्न अध्ययन को एक-दूसरे से सार्थक बनाती है। इस अध्ययन क्षेत्र का विश्लेषण कर उसके योगदान की समझ तथा कई दृष्टि के आधार पर समस्या से सम्बन्धित विचारों को पूर्ण करने तथा विश्लेषण की रूपरेखा में सहायक होता है जैसे- स्वास्थ्य देखभाल, आनुवांशिक परिमार्जित खाना जैसी समस्याओं का अध्ययन अंतर शास्त्रीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

अन्तर-उपागम का महत्व व लाभ इनका बिन्दुवार वर्णन निम्नलिखत है-

  1. सह शिक्षण का लाभ
  2. छात्रों के कौशलों का विकास
  3. छात्रों में समझने की शक्ति विकसित करना।
  4. अध्यापक व छात्रों के मध्य सम्पर्क को बढ़ानो।
  5. सकारात्मक वातावरण का निर्माण
  6. लोकतांत्रिक वातावरण का निर्माण
  7. शिक्षण में पूर्ण तकनीक का प्रयोग करना
  8. ज्ञान के स्तर को बढ़ाना
  9. एकीकृत शिक्षण में लाभ
  10. मूल्यांकन में सहायक
  11. चिन्तनशक्ति एवं बौद्धिकता को विकसित करने में सहायक।

दक्षता किसे कहते हैं? दक्षता आधारित शिक्षण का अर्थ स्पष्ट करते हुये इसके उपयोगी अवयवों का वर्णन कीजिए।

जब किसी कार्य को योग्यता एवं गुणवत्ता के साथ किया जाता है तब उसे दक्षता से किया हुआ कार्य कहा जाता है। अतः जब दक्षता की बात की जाती है तब ‘कार्य करने’ से भी उसका सम्बन्ध है, बिना कार्य किये दक्षता को समझना मुश्किल है।

परिभाषा-

गुड (1973) के अनुसार, “वे कौशल, संकल्पनायें एवम् अभिवृत्तियाँ जो कार्य करने वाला व्यक्ति प्रदर्शित करता है, जो किसी व्यवसाय या विशिष्ट कार्य से सम्बन्धित होती हैं, दक्षता कहते हैं।”

ह्यरुसटन और हाऊजैम (1972) “दक्षता से तात्पर्य किसी कार्य की पर्याप्तता और उससे सम्बन्धित वांछित ज्ञान, कौशल व योग्यताओं के अधिग्रहण से है। दक्षता प्राप्त ज्ञान को प्रदर्शित करने की योग्यता पर बल देती है।”

दक्षता आधारित शिक्षण का अर्थ- आप मानते हैं कि शिक्षा का जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिये। परन्तु वर्तमान में शिक्षा जीवन के लिए उपोयगी साबित नहीं हो रही है। उदाहरणार्थ मनुष्य को समाज में रहने के लिए, जीवन यापन करने के लिए व स्वयं का विकास करने के लिए विशेष दक्षताओं की आवश्यकता होती है। साधारण-सी बात है जीवन-यापन के लिए व्यक्ति कोई व्यवसाय चुनता है परन्तु इस व्यवसाय से सम्बन्धित ज्ञान उसके पास नहीं होता जबकि वह 14-15 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करता है। इसी प्रकार समाज में रहने के लिए मानवीय सम्बन्धों का ज्ञान आवश्यक है। जबकि विद्यालय में यह सब नहीं सिखाया जाता। ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि शिक्षा का दैनिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है।

“राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रत्येक बालक गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करते हुए उन आधारभूत क्षमताओं का विकास करे जो कहीं न कहीं उसके जीवन में उपयोगी हों एवम् विकास के लिए अनिवार्य हों।”

समाज व व्यक्ति शिक्षा से कुछ अपेक्षा रखता है, जिससे समाज व व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। यहीं से दक्षता आधारित शिक्षण की आवश्यकता महसूस होने लगी। दक्षता आधारित शिक्षण ‘कार्य’ पर बल देता है। उदाहरणार्थ, एक शिक्षक को ज्ञान है कि शिक्षण को प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है परन्तु कक्षा शिक्षण के समय वह प्रभावी रूप से पढ़ नहीं सकता। दक्षता आधारित शिक्षण क्रियात्मक उद्देश्यों पर आधारित है। यहाँ यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षक क्या जानता है, अधिक जरूरी है कि वह कक्षा में क्या करता है? इस प्रकार दक्षता आधारित शिक्षण क्रियात्मक उद्देश्यों पर आधारित है। अधिक जरूरी है कि वह कक्षा में क्या करता है। इस प्रकार दक्षता आधारित शिक्षण में निम्नलिखित विशेषतायें निहित हैं-

  • ज्ञान की उपलब्धि
  • अनुप्रयोग की योग्यता
  • अनुप्रयोग हेतु वांछित कौशल का विकास

शिक्षा जो छात्रों की विशिष्ट दक्षताओं की प्राप्ति पर केन्द्रित हो, दक्षता आधारित शिक्षण है।”

“ऐसी शिक्षा जिसमें अधिगम उद्देश्यों का समावेशन हो, जिन्हें इस प्रकार परिभाषित किया गया हो, जिससे उनकी प्राप्ति का निरीक्षण किया जा सके एवम् जिन्हें अधिगमकर्ता अपने व्यवहार द्वारा प्रदर्शित कर सके।”

“ऐसा शिक्षण जो निर्धारित मानकों के सन्दर्भ में किसी व्यक्ति को सफलतापूर्वक एवम् संतोषप्रद पद्धति से कार्य को सम्पादित करना सिखाये, दक्षता आधारित शिक्षण कहलाता है।”

उदाहरण के लिए गणित में ब्याज की गणना हेतु सूत्र बताना और उदाहरण के लिए दो प्रश्न हल करना पर्याप्त नहीं है। यह सिखाना आवश्यक है कि विद्यार्थी किसी भी मूलधन व्याज की गणना स्वयं कर लें। इसी प्रकार विज्ञान के प्रदर्शन दिखाना पर्याप्त नहीं है। छात्रों में उपकरण का रख-रखाव, उनका उपयोग आदि में दक्षतायें उत्पन्न करना आवश्यक है। दक्षतायें मानसिक भी होती हैं। सोचना, बर्क देना मानसिक दक्षता है।

दक्षता आधारित शिक्षण के उपयोगी अवयवों की सूची

दक्षता आधारित शिक्षण के अवयवों पर चर्चा से पूर्व आइये एक उदाहरण पर विचार करें। मान लीजिये आपको स्कूटर चलाना सीखना है। आप स्कूटर चलाने में दक्षता हासिल करना चाहते हैं। सर्वप्रथम आपको यह ज्ञान होना आवश्यक है कि स्कूटर में ब्रेक, गीयर, एक्सीलेटर व क्लच कहाँ हैं? इन सभी भागों के नाम व उनके कार्य का ज्ञान भी आवश्यक है। अब आप उपयुक्त स्थान का चयन करते हैं जहाँ स्कूटर चलाना सीखा जा सकता है। अर्थात् जहाँ भीड़ न हो, सड़क खुली हो आदि। अब आपका साथी जो आपको स्कूटर सिखाता है, सभी भागों के कार्य व उनमें आपसी समन्वय के बारे में बताता है। आप सब कुछ बड़े ध्यान से देखते हैं। स्कूटर चलाने के पूर्व आपको कुछ कौशलों का ज्ञान होना चाहिये जैसे स्कूटर को सन्तुलित करना, गीयर और क्लच का उपयोग, ब्रेक का सही उपयोग आदि। इन सभी कौशलों के सही उपयोग हेतु आप अभ्यास करते हैं तथा साथी के समक्ष उसका प्रदर्शन भी करते हैं। तत्पश्चात् साथी और आप गल्तियों पर चर्चा करते हैं। इस प्रकार आप गल्तियाँ कम करने का प्रयास करते हैं व अपेक्षित व्यवहार बार-बार दोहराते हैं। इस प्रकार बार-बार कौशलों का अभ्यास कर स्कूटर चलाने में आप दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।

उक्त उदाहरण के आधार पर आप दक्षता आधारित शिक्षण के अवयवों का पता लगा सकते हैं। ये अवयव निम्नलिखित हैं

  •  सम्बन्धित क्रिया का सम्पूर्ण ज्ञान।
  • कौशलों का ज्ञान व प्रदर्शन।
  • गल्तियों की पहचान व उन पर चर्चा।
  • वातावरण का निर्माण जिसमें दक्षता सम्बन्धी क्रियाओं का अभ्यास किया जा सके।
  • निर्धारितै स्तर पर सम्पादित कार्य का मूल्यांकन।

किसी भी कार्य में दक्षता हेतु शिक्षण में उक्त पदों व अवयवों का समावेश आवश्यक है।

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