संस्मरण लेखन और सृजनधर्मिता पर लेख लिखिये।Write an article on memoir writing and creativity.
संस्मरण क्या है? – संस्मरण एक प्रकार का व्यक्तिगत आख्यान है, जो लेखक के जीवन के एक विशिष्ट पहलू या अवधि पर केंद्रित होता है। यह आम तौर पर प्रथम-व्यक्ति के दृष्टिकोण से लिखा जाता है और लेखक की अपनी यादों, अनुभवों और टिप्पणियों पर आधारित होता है। संस्मरण अक्सर लेखक के लिए किसी विशेष घटना या घटनाओं की श्रृंखला पर विचार करने के तरीके के रूप में लिखे जाते हैं, जिनका उनके जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, और उनमें अक्सर कहानी कहने और आत्मनिरीक्षण के तत्व शामिल होते हैं। संस्मरण किसी के द्वारा भी लिखे जा सकते हैं, लेकिन वे अक्सर प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा लिखे जाते हैं।
संस्मरण की विशेषताएँ- रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम संस्मरण की विशेषताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
* संस्मरण महापुरुषों से सम्बन्धित होते हैं।
* इसमें व्यक्तिपरकता का तत्व विद्यमान होता है।
* इसका वर्णन आत्मीयता से किया गया है।
* संस्मरण विश्वसनीय होते हैं।
संस्मरण के प्रकार- रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम संस्मरण के प्रकार के बारे में बताने जा रहे है।
* यात्रा
* अध्यात्मिक खोज
* सक्रियता
* कन्फेशनल
* पोर्ट्रेट संस्मरण
* पेशेवर
* व्यक्तिगत
संस्मरण के नियम – रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम संस्मरण के नियम के बारे में बताने जा रहे है।
* पहले शब्द से ही पाठक को बांधे रखें।
* पाठक के साथ विश्वास बनाये।
* पाठक के मन से भानाएँ बाहर लाएँ।
* एक काल्पनिक लेखक की तरह सोचें।
* पाठक के साथ-साथ अपने लिए भी लिखें।
एक साहित्यिक विधा के रूप में संस्मरण क्या है?- रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम साहित्यिक विधा के रूप में संस्मरण क्या है? के बारे में जानते है। संस्मरण एक प्रकार की साहित्यिक विधा है, जो लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों पर केंद्रित होती है। यह गैर-काल्पनिक लेखन का एक रूप है, जो पहले व्यक्ति में लिखा जाता है और इसमें अक्सर लेखक के व्यक्तिगत विचार और राय शामिल होते हैं। संस्मरण विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर कर सकते हैं, जिनमें लेखक के रिश्ते, बचपन की यादें, महत्वपूर्ण जीवन की घटनाएं और बहुत कुछ शामिल हैं। एक आत्मकथा के विपरीत, जो किसी व्यक्ति के पूरे जीवन का एक व्यापक विवरण है, एक संस्मरण लेखक के जीवन के एक विशिष्ट पहलू या अनुभव पर केंद्रित होता है। संस्मरण अक्सर किसी विशेष घटना या अनुभव पर व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए लिखे जाते हैं, और यह लेखक के लिए किसी विशेष विषय के बारे में अपने विचारों और भावनाओं का पता लगाने का एक तरीका हो सकता है।
एक संस्मरण कैसे संरचित होता है?- रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम एक संस्मरण कैसे संरचित होता है? के बारे में जानते है। संस्मरण आमतौर पर एक कालानुक्रमिक संरचना का पालन करते है, जिसका अर्थ है कि संस्मरण में वर्णित घटनाओं को उसी क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, जिसमें वे घटित हुए थे। हालाँकि, कुछ संस्मरण सख्त कालानुक्रमिक क्रम का पालन करने के बजाय किसी विशेष विषय या विचार के आसपास संरचित हो सकते हैं। इन मामलों में संस्मरण की घटनाओं को खोजे जा रहे विषय या विचार को बेहतर ढंग से फिट करने के लिए पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है।
सामान्य तौर पर, एक संस्मरण एक परिचय या प्रस्तावना के साथ शुरू होगा, जो पुस्तक में वर्णित घटनाओं के लिए कुछ संदर्भ प्रदान करता है। इसके बाद अध्यायों की एक श्रृंखला है, जिनमें से प्रत्येक लेखक के जीवन की किसी विशेष घटना या अनुभव पर केंद्रित है। संस्मरण में पुस्तक में वर्णित घटनाओं के बारे में लेखक के विचार या अंतर्दृष्टि भी शामिल हो सकते हैं।
कुल मिलाकर, एक संस्मरण की संरचना लेखक को अपने व्यक्तिगत अनुभवों और विचारों को इस तरह से साझा करने की अनुमति देने के लिए डिज़ाइन की गई है, जो पाठक के लिए आकर्षक और सार्थक हो।
संस्मरण लिखने की युक्तियाँ- रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर से सम्बंधित इस लेख में हम संस्मरण लिखने की युक्तियों के बारे में विस्तार से जानते है।
* संस्मरण किसी व्यक्ति के जीवन के एक विशिष्ट पहलू का व्यक्तिगत विवरण है। यह आपके अनुभवों को प्रतिबिंबित करने और उन्हें दूसरों के साथ साझा करने का एक शक्तिशाली तरीका हो सकता है। एक सफल संस्मरण लिखने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:
* ध्यान केंद्रित करने के लिए एक विशिष्ट विषय या घटना चुनें। एक संस्मरण एक व्यापक जीवनी नहीं है, इसलिए लिखने के लिए अपने जीवन के एक विशिष्ट पहलू को चुनना महत्वपूर्ण है। यह कोई विशिष्ट घटना, समयावधि या संबंध हो सकता है।
* चूँकि एक संस्मरण आपके अनुभवों का एक व्यक्तिगत विवरण है, इसलिए इसे पहले व्यक्ति में लिखना सबसे अच्छा है। यह आपको अपने विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोणों को अंतरंग और प्रामाणिक तरीके से साझा करने की अनुमति देता है।
* अपनी कहानी को जीवंत बनाने के लिए संवेदी विवरण का उपयोग करें। संस्मरण केवल घटनाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि अपने अनुभवों को दूसरों के साथ साझा करने का एक तरीका है।
* संस्मरण आपके अनुभवों और भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करने का एक अवसर है। अपने लेखन में ईमानदार और असुरक्षित होने से न डरें। इससे आपके पाठकों को आपसे और आपकी कहानी से जुड़ने में मदद मिल सकती है।
* संस्मरण लिखना एक प्रक्रिया है, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह स्पष्ट, संक्षिप्त और आकर्षक है, अपने काम को संपादित और संशोधित करना महत्वपूर्ण है। अपने लेखन को दूसरों के साथ साझा करने और अपने काम को बेहतर बनाने में मदद के लिए प्रतिक्रिया मांगने पर विचार करें।
संस्मरण के स्वरूप एवं विकास का वर्णन कीजिये।
संस्मरण-स्वरूप और विकास- ‘संस्मरण’ शब्द ‘सम्’ उपसर्ग और ‘स्मरण’ शब्द के योग से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है- सम्यक् स्मरण और सम्यक् स्मरण के मूल में ‘गंभीरे चिंतन’ होता है। मानव जीवन की कटु-तिक्त और मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती हैं तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं। आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य में संस्मरण एक आकर्षक और आत्मनिष्ठ आधुनिकतम विधा है। जीवनीपरक साहित्य का यह अत्यंत ललित और लघु कलात्मक अंग है। जीवन अभिव्यक्ति का यह रूप संस्मरण पर आधारित है। वस्तुतः संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। संस्मरणकार अपनी स्मृति के धरातल पर अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने संपर्क में आये हुए अन्य व्यक्तियों के जीवन के. विशिष्ट पहलू को कथात्मक शैली में रेखांकित करता है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अनेक व्यक्तियों, के संपर्क में आता है। सामान्य व्यक्ति उन क्षणों को विस्मृत कर देता है किंतु संवेदनशील और भावुक व्यक्ति इन स्मृतियों को अपने मनःपटल पर अंकित कर लेता है। इन क्षणों की स्मृतियाँ जब कभी उसे आकुल कर देती हैं, तभी संस्मरण साहित्य की सृष्टि होती है।
संस्मरण के मूल में अतीत की स्मृतियाँ निहित रहती हैं, जो व्यक्तिगत संपर्क कां’. परिणाम होती हैं। उन्हीं स्मृतियों को संस्मरणकार सजीव रूप में प्रस्तुत करता है। संस्मरण के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए डॉ. गोविंद त्रिगुणायत की परिभाषा अधिक समीचीन जान पड़ती है- “भावुक कलाकार जब अतीत की अनंत स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अनुरंजित कर व्यंजनामूलक संकेत-शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से विशिष्ट कर रोचक ढंग से यथार्थ रूप में व्यक्त कर देता है, तब उसे संस्मरण कहते हैं।” संस्मरणकार केवल महत्त्वपूर्ण बातों को ही नहीं लेता है, बल्कि छोटी-से-छोटी घटना को भी चारूता के साथ अंकित कर देता है।
डॉ. आशा कुमारी ने संस्मरण के संदर्भ में लिखा है- “संस्मरण लेखक जो कुछ देखता है और अनुभव करता है, उसे अपनी अनुभूतियों से राग-रंजित कर प्रस्तुत कर देता है। वह इतिहासकार की भाँति तथ्यपरक विवरण भर नहीं देता, वरन् अपनी अनुभूतियों को साहित्यिकता से अभिमंडित कर उपस्थित करता है।” ‘हिंदी जीवनी सिद्धांत और अध्ययन’ में डॉ. भगवानशरण भारद्वाज ने संस्मरण के अनेक नियामक महत्त्वपूर्ण तत्वों की ओर संकेत किया है। सहानुभूतिपूर्ण हृदय की अनिवार्यता, व्यक्तिगत संपर्क की अनिवार्यता, लेखक के स्वनिरीक्षण की क्षमता, रचना के प्रारंभ तथा अंत का रोचक होना आदि प्रमुख तत्त्व डॉ. भारद्वाज ने बताये हैं।
संस्मरण सफलता की प्रथम शर्त संहानुभूतिपूर्ण हृदय की अनिवार्यता है। व्यक्ति के स्वभाव में झाँकने का अवसर सहानुभूति के द्वारा ही प्राप्त होता है। संस्मरण की दूसरी शर्त व्यक्तिगत संपर्क है, जिसके अभाव में व्यक्ति की रुचि अरुचि, आकर्षण-विकर्षण आदि का पता नहीं चल सकता है। व्यक्तिगत संपर्क के द्वारा वातावरण आत्मीयतापूर्ण हो जाता है तथा रचना में अतिरिक्त प्रभविष्णुता आ जाती है। इस परंपरा की तीसरी शर्त लेखक के स्व-निरीक्षण की क्षमता है। संस्मरण में लेखक को स्वभाव का निःसंग विवेचन करना पड़ता है जिससे रचना में गहराई आ पाती है। इसकी चौथी शर्त रचना का आदि से अंत तक रोचक होना है। प्रारंभ के रोचक होने पर पाठक रचना की ओर आकृष्ट होता है तथा अंत के रोचक होने पर पाठक के हृदय पर अमिट छाप अंकित हो जाती है।
संस्मरण नितांत वैयक्तिक हुआ करते हैं। अतः इसके प्रस्तुतीकरण में भी भिन्नताएँ हुआ करती हैं। इन भिन्नताओं के कारण संस्मरण साहित्य को मोटे तौर पर छः कोटियों में विभाजित किया जा सकता है- आत्मकथात्मक संस्मरण, यात्रा-विवरणात्मक संस्मरण, डायरीनुमा संस्मरण, जीवनीमूलक संस्मरण, श्रद्धांजलिमूलक संस्मरण और मूल्यांकनपरक संस्मरण। यद्यपि इन प्रकारों में साहित्य और गणित जैसा अंतर नहीं है, फिर भी अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से उक्त कोटियों का निर्धारण अपेक्षित जान पड़ता है।
संस्मरण-लेखकों में अयोध्या प्रसाद गोपलीय के कई संकलन समय-समय पर प्रकाशित हो चुके हैं। ‘जन-जागरण के अग्रदूत’ इनका प्रसिद्ध संग्रह है। इनके संस्मरण अधिकतर जीवनीपरक हैं। इसी प्रकार उपेंद्रनाथ अश्क के ‘माण्टो मेरा दुश्मन’ संस्मरण में सबसे अधिक सूझ-बूझ मिलती है। इस विषय में डॉ. भगवानशरण भारद्वाज ने लिखा है – “इन संस्मरणों को पढ़कर पाठक स्तब्ध और अभिभूत रह जाता है। एक रस्साकशी का बिंब संस्मरण के दौरान पाठक के दिमाग पर छाया रहता है। उतना ही गहरा, उत्सुक झुंझलाहटपूर्ण तनाव जिनमें हार-जीत का कोई फैसला नहीं आता है और अंत में जो एक झटके में मुँह के बल पर गिर पड़ता है, वह पाठक के साथ विजेता की भी सारी करुणा का अधिकारी बन जाता है।” इसके अतिरिक्त पं. रामवृक्ष बेनीपुरी, रामनाथ सुमन, रामनरेश त्रिपाठी, शांतिप्रिय द्विवेदी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, देवेंद्र सत्यार्थी, राहुल सांस्कृत्यायन, गुलाबराय, जैनेंद्र कुमार, सेठ गोविंद दास, इलाचंद्र जोशी, राजेंद्र यादव, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, रामधारीसिंह दिनकर, डॉ. नगेंद्र, ओंकार शरद, विष्णु प्रभाकर आदि ने भी अपने उत्कृष्ट संस्मरण हिंदी गद्य साहित्य को दिये और संस्मरण साहित्य विधा के भंडार को समृद्ध बनाया है।
इस प्रकार हिन्दी का संस्मरण साहित्य 20 वीं शताब्दी में जन्मा है, परंतु अल्पकाल में ही उसमें उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हिन्दी में संस्मरण साहित्य की प्रगति को देख कर लगता है कि भविष्य में संस्मरण साहित्य निबंध, कहानी और उपन्यास से अधिक रोचक एवं उत्कृष्ट हो जायेगा और अपने अपूर्व भंडारण से हिंदी गद्य को महार्द्ध प्रदान करेगा। अस्तु, हिंदी का संस्मरण साहित्य आज बहुत समृद्ध और पर्याप्त लोकप्रिय हो चुका है।
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