संचार के तत्वों का वर्णन (Description of means of communication)

संचार के तत्वों का वर्णन (Description of means of communication)

संचार के तत्व : महत्त्व और विशेषताएँ – संचार प्रणाली के अध्ययन के अन्तर्गत संचार के विभिन्न तत्वों की चर्चा होती है, जो निम्नलिखित हैं-

(क) संचारक

(ख) संदेश

(ग) संचार माध्यम

(घ) प्राप्तकर्ता

संचारक (Communicator)-संचार प्रक्रिया का स्रोत् या आरम्भकर्ता संचार्क होता है। इसे प्रारम्भ बिन्दु भी कहा जा सकता है। प्रसार प्रणाली में इसके कई नाम या रूप हो सकते हैं, यथा- स्रोत, प्रेषक, सूचनावाहक, संचारक, वक्ता इत्यादि। वह संकेतीकरण भी करता है, अतः संकेतक भी कहलाता है। किसी तथ्य या सत्य को प्रस्तुत करना और लोगों को उसके द्वारा प्रभावित करना अत्यन्त चुनौतीभरा तथा दायित्वपूर्ण कृत्य है। संचारक का कर्त्तव्य सामाजिक जिम्मेदारियों से परिपूर्ण होता है। उसकी प्रस्तुति मात्र तथ्यों, विचारों, सूचनाओं आदि को ही प्रेषित नहीं करती, वरन लोगों को परिवर्तन की ओर भी अग्रसर करती है। अतः संचारक को अत्यन्त सूझ-बूझ के साथ काम करना पड़ता है। संचारक को सन्तुलित व्यक्तित्व का होना चाहिए, उसके पास अपने विषय का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए, विविध संचार माध्यमों की समझ होनी चाहिए, विवेकपूर्ण निर्णय-क्षमता होनी चाहिए और सबसे बड़ी बात अपने काम के प्रति रुचि एवं ईमानदारी होनी चाहिए, ईमानदारी को प्रभावशाली संचार की एक महत्वपूर्ण शर्त मानते हुए वर्षों पहले अरस्तू ने भी संचारक के अच्छे होने पर बल दिया था। संचारक को सहिष्णु, हष्णु, दयालु, विनम्र, मित्रवत एवं चाहिए। निःस्वार्थ होना ऐसा ही व्यक्ति जन-कल्याण के विषय में सोच सकता है तथा सही सूचनाएँ प्रसारित कर सकता है। संचारक के प्रति विश्वसनीयता ने अनेक समाचारपत्रों, रेडियो तथा टेलीविजन कार्यक्रमों को स्थापित कर दिया और दर्शकों, श्रोताओं तथा पाठकों को इनके लिए लालायित होते देखा गया है। किसी समाचार विशेष के संदर्भ में लोगों का कहना ‘रेडियो पर कहा है’, रेडियो के प्रति विश्वसनीयता दर्शाता है। आज यदि पूरे विश्व में बी.बी.सी. द्वारा प्रसारित समाचार पूरी विश्वसनीयता के साथ सुने तथा देखे जाते हैं तो इसका एकमात्र कारण उनकी विश्वसनीयता है। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों में अनेक नेताओं ने मार्गदर्शन कराया, किन्तु लोग सर्वाधिक आकर्षित होते थे महात्मा गाँधी या जवाहरलाल नेहरू की सभाओं में। विश्वसनीयता एक चारित्रिक विशेषता होती है, जिसकी जड़ें जमाने के लिए संचारक का पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कर्त्तव्य निर्वाह करना होता है। यह और बात है कि कुछ लोगों का व्यक्तित्व इतना आकर्षक होता है या बातें करने का ढंग इतना मोहक होता है कि वे लोगों पर जादुई प्रभाव छोड़ते हैं। संसार के जितने भी बड़े-बड़े नेता या समाज सुधारक हुए हैं उनमें यह गुण पाया गया है। वे उत्तम कोटि के संचारक रहे क्योंकि वे लोगों में विश्वसनीय थे और उनकी ओर लोग सहज ही खिंच जाते थे। उनके स्वर में उत्साह, आवेग, निर्भीकता, गतिशीलता एवं स्पष्टता थी। वे लोगों की मनोभावनाओं को समझते थे अतः समानानुभूति को महत्व देते थे। लोग उनकी बातों में अपनी भावनाएँ पाते, उनकी बातों से अपनी समस्याओं के हल ढूँढ़ते और हल उन्हें प्राप्त भी हो जाते। तभी तो लोग उनकी ओर आकर्षित होते थे। यही है संचारक के प्रति विश्वसनीयता, जिसे कोई भी संचारक अपने कर्त्तव्य निर्वाह में निष्ठा लाकर ही प्राप्त कर सकता है।

संचार एक सुनियोजित प्रक्रिया है। इसके निमित्त सूझ-बूझ से परिपूर्ण पूर्व नियोजित कार्यक्रम महत्वपूर्ण है। जैसा कि कहा जा चुका है, संचारक या प्रेषक इस प्रक्रिया का स्रोत बिन्दु होता है। संचार-विषय का जन्मदाता होने के कारण संचार प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व उसे कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) सन्देश का चयन

(ii) सन्देश की विवेचना

(iii) संचार माध्यम का चयन

iv) प्राप्तकर्ता का चयन 

(i) सन्देश का चयन (Selection of Message)-संचार-प्रक्रिया के अन्तर्गत, संचारक

का प्रथम कार्य सन्देश या उसकी विषय-वस्तु का चयन करना होता है। यह कार्य प्रायः मानसिक धरातल पर प्रारम्भ होता है। एतदर्थ गहन सोच-विचार आवश्यक है। सन्देश की विषय-वस्तु महत्वपूर्ण, उपयोगी, समसामयिक तथा सर्वानुकूल होने के साथ-साथ रुचिकर भी होनी चाहिए। अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित करने की क्षमता भी होनी चाहिए। जैसे गेहूँ और चावल की खेती देश के अधिकांश कृषक करते हैं। अतः इन खाद्यान्नों से सम्बन्धित बातें एक बड़े वर्ग के लिए उपयोगी सिद्ध होंगी। किन्तु इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि सही समय पर इनसे सम्बन्धित बातें कहीं या छापी जाएँ। अर्थात् जब बोआई या रोपनी का मौसम हो तो उर्वरक + खाद – सिंचाई की बात होनी चाहिये। इसी प्रकार जब पौधे खड़े हों तो उनका रख-रखाव, कीटनाशक दवाओं का छिड़काव इत्यादि की चर्चा होनी चाहिये तथा कटाई के समय भण्डारण की बातें। एक बात और जब चावल की खेती का मौसम हो तो चावल की खेती विषयक बातें ही उपयोगी एवं रुचिकर होंगी तथा लोगों को आकर्षित करेंगी। उदाहरण के लिए, गृहिणियों को यदि गोभी के मौसम में गोभी के विविध व्यंजन, अचार आदि बनाने के विषय में जानकारी दी जाये तो प्रदत्त जानकारियों का लाभ वे उठा सकती हैं। गर्मी या बरसात के मौसम में गोभी की चर्चा, समसामयिक नहीं होने के कारण, अनुपयोगी साबित होगी तथा संचार में गृहणियाँ रुचि नहीं लेंगी। संचारक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दी जाने वाली जानकारी लोगों के लिए लाभप्रद हो। यह लाभ प्रत्यक्ष या परोक्ष, ज्ञानवर्द्धक हो सकता है। लाभ का लोभ सभी को रहता है, चाहे वह सन्देश ग्राहक ही क्यों न हो।

(ii) सन्देश की विवेचना (Treatment of Massage)-विषय-वस्तु के चयन के पश्चात् दूसरा महत्वपूर्ण चरण होता है विषय-वस्तु की प्रस्तुति तथा उसका प्रतिपादन। किसी भी विषय को प्रस्तुत करने के लिए सम्यक भूमिका बांधना आवश्यक है। भूमिका इतनी सजीव तथा लुभावनी होनी चाहिए कि वह लोगों को सहज ही आकर्षित कर सके। किसी भी विषय की प्रस्तुति यदि निर्जीव, बेजान, नीरस या घिसे-पिटे ढंग से की जाती है, तो लोग पत्र या पत्रिकाओं के पन्ने पलट देते हैं और यदि भाषण चल रहा होता है तो सभा छोड़कर चल देते हैं। अतः संचारक को अपनी बातों की प्रस्तुति करते समय शब्दों का मोहक एवं आकर्षक जाल बिछाना चाहिए। किन्तु शब्द जाल में ग्राहक को अधिक देर तक बाँधे रखना सम्भव नहीं। अतः मूल विषय की प्रस्तुति भी होना आवश्यक है। मूल जानकारियों को प्रस्तुत करते समय, सहज एवं स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। शब्दों का चयन ग्राहक के शैक्षिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए। विषय-वस्तु के विभित्र बिन्दुओं की क्रमबद्धता सटीक होनी चाहिए तथा इन्हें एक-दूसरे से उलझना नहीं चाहिए। विषय-वस्तु के विभिन्न पहलुओं को क्रमिक ढंग से एक के बाद एक स्पष्ट करते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए। यथासम्भव उदाहरणों का प्रयोग करते हुए अपनी बात अधिक स्पष्ट करनी चाहिए। संचारक को अपनी बात नपे तुले शब्दों में प्रस्तुत करनी चाहिए। एक ओर जहाँ शब्दों का अल्प व्यवहार विषय-वस्तु के सुस्पष्ट होने में बाधक हो सकता है, वहीं दूसरी ओर विषय की अत्यधिक व्याख्या ग्राहक को बोझिल बना सकती है। अतः संचारक को इस दिशा में विशेष सतर्कता का निर्वाह करना चाहिए। विषय- वस्तु के विभिन्न पक्षों को बताने के पश्चात, सभी बिन्दुओं को समेटते हुए संदेश का समापन करना चाहिए, जिससे पूरी प्रस्तुति एक सूत्र में बंध जाए। साथ ही, संचार में प्रतिपुष्टि के महत्व को देखते हुए, संचारक को ग्राहक के विचार या जिज्ञासा आमन्त्रित करनी चाहिए। संचार-प्रक्रिया में विषय- वस्तु की प्रस्तुति एक अत्यन्त महत्वपूर्ण चरण है। संचारक यदि चाहे तो अत्यन्त गम्भीर एवं नीरस विषय को भी नितांत सहज एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत कर उसे सरस-सजीव बना सकता है।

(iii) संचार माध्यम का चयन (Selection of Communication Channel)- यद्यपि मानव संचार का इतिहास अत्यन्त पुराना है, किन्तु संचार माध्यमों के इतिहास में बीसवीं शताब्दी में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सदियों तक विभिन्न लोक माध्यम, जैसे लोक गीत, लोक नाटक, लोक नृत्य, कठपुतली के खेल, भांड, लावणी बाउल इत्यादि संचार माध्यम रहे। आज तकनीकी विकास के फलस्वरूप, संचारक के पास अनक माध्यम हैं, जैसे रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, चित्रकला, फिल्म, पोस्टर, नाट्य, मंच, काव्य मंच, पोस्टर, बैनर इत्यादि इत्यादि। अपनी बात संचारित करने के लिए संचारक को इनमें से किसी माध्यम का चयन करना होता है। सफल संचार प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक है कि संचार माध्यम का चयन सही हो, हर माध्यम हर बात के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है। उदाहरणार्थ भारत में साक्षरता दर मात्र पचास प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में छपित माध्यमों के द्वारा देश के समस्त जन समुदाय को सम्बोधित नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार, यदि किसी गाँव में बिजली नहीं है तो अत्यन्त सशक्त माध्यम होने के बावजूद, टेलीविजन का उपयोग वहाँ नहीं किया जा सकता। अतः संचारक को माध्यम का चुनाव करते समय, उसकी उपलब्धता तथा व्यवहार्यता को ध्यान में रखना चाहिए। जब उसे विराट जन समूह को सम्बोधित करना हो तो ऐसे माध्यम का चयन करना चाहिए जो विराट जन सम्पर्क स्थापित कर सके। आवश्यकता पड़ने पर, एक से अधिक माध्यमों का एक साथ सहारा लिया जा सकता है। चुनाव अभियान के क्रम में, प्रायः प्रत्याशी एक साथ बैनर, पोस्टर, लाउडस्पीकर, पैम्फलेट इत्यादि का सहरा लेते हैं। यदि महिलाओं को टमाटर का सॉस बनाना सिखाना हो तो छोटे समूह में विधि प्रदर्शन, रेडियो या टीवी द्वारा व्यंजन विधि का प्रसारण अथवा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से छपित रूप में इसे बताया जा सकता है। विराट जन सभा में इस प्रकार के प्रदर्शन सफल सिद्ध नहीं होंगे। इसी प्रकार पोस्टर, फोटोग्राफ निकट से देखे जाते हैं जबकि होर्डिंग को दूर से देखा जा सकता है।

(iv) प्राप्तकर्त्ता का चयन (Selection of Receiver)- सन्देश के प्राप्तकर्त्ता पाठक, श्रोता तथा दर्शक सामान्य रूप से हुआ करते हैं। सन्देश को प्राप्त करने वाले प्रायः संचार माध्यम से सम्बद्ध होते हैं। उदाहरणार्थ जिनके पास टेलीविजन है, वे उसक माध्यम से सन्देश प्राप्त कर सकते हैं, जो पढ़े-लिखे हैं उनके लिए अनेकानेक छपित माध्यम उपलब्ध होते हैं।

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