संचार और शिक्षा का जन माध्यम(Mass media of communication and education)

संचार और शिक्षा का जन माध्यम(Mass media of communication and education)

संचार या सम्प्रेषण वह है जिसके द्वारा दो मनुष्य या एक समुदाय के बीच संवाद होते हैं, गति का अहसास होता है जो जीवन के चलायमान होने का प्रतीक है। बिना संवाद के मनुष्य मृतक सा है, बिना संवाद के जीवन है इसकी कल्पना भी असम्भव है। यह संवाद ही है जो जीवन का परिचायक होने के साथ-साथ मनुष्य के व्यक्तित्त्व विकास में सहायक होता है क्योंकि संवादों का यही आदान-प्रदान उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने तथा दूसरों की भावनाओं को समझने का अवसर देता है। मनुष्य
के मुख से निकले संवाद उसके व्यक्तित्व को बनाते तथा बिगाड़ते हैं। संवाद का सम्प्रेषण मानव जीवन में जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जिसकी समाप्ति मनुष्य के जीवन के अन्त के साथ होती है। एक गूंगा भी जिसके पास वाणी नहीं होती अपने विचारों की अभिव्यक्ति विभिन्न विधियों से करता है। आवश्यकता आविष्कार की जननी है वह अपने लिये कोई न कोई तरीका ढूँढ़ ही लेता है।

मनुष्य के जीवन में यह प्रक्रिया जन्म के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है। शिशु का पहला क्रन्दन इसी का प्रतीक है। इसके बाद भी जब तक वह बोल नहीं पाता अपनी आवश्यकताओं को पूरा करवाने के लिये स्वर संचार माध्यम का ही सहारा लेता है। अलग-अलग आवश्यकताओं पर उसके रोने की शैली, गति, आवाज, सुर में अन्तर होता है। खुशी की किलकारियों में भी अन्तर होता है। नवजात शिशु के समान ही जीवन पर्यन्त मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा अपनी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने के लिए संचार या सम्प्रेषण की मदद लेता है और यह प्रक्रिया मनुष्य की पहली सांस से अन्तिम सांस तक चलती है। इस प्रक्रिया का रुकना मानव जीवन का अन्त हैं। मनुष्य के विचारों की अभिव्यक्ति तथा आदान-प्रदान प्रक्रिया में समस्त ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय होती हैं। मनुष्य अपने आँख, कान, जीभ, त्वचा तथा नाक को अपने इस कार्य में सहभागी बनाता है। मनुष्य अपनी ज्ञानेन्द्रियों की मदद से दूसरों के विचार अनुभव ग्रहण करता है तथा अपने विचार भावनाएँ तथा अनुभव दूसरों तक पहुँचाता है। यह ग्रहण करने तथा दूसरों तक अपने विचार, अनुभव पहुँचाना ही संचार है। यह दोहरी क्रिया है इसलिये इसे Two way Process कहते हैं। जब भाषा का विकास नहीं हुआ था उस समय एक गूंगे के समान मनुष्य अपनी भाव भंगिमाओं, शरीर के अंगों का प्रयोग कर अपनी बात दूसरों को समझाता था। आज कल्पना करने पर यह क्रिया मुश्किल लगती है पर जब पूरा मानव समाज उसी विधि का प्रयोग करता था तो उनके अपने संकेत थे। आज गूंगे बहरे उन्हीं संकेतों का प्रयोग कर अपनी सांकेतिक भाषा में अपने विचारों का आदान- प्रदान करते हैं। ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ भाषा तथा अनेक ललित कलाओं का विकास हुआ जो संचार के माध्यम बने। इन साधनों की मदद से मनुष्य की विचार अभिव्यक्ति भी आसान हो गई। हिन्दी में जिसे हम संचार या सम्प्रेषण कहते हैं उसी का अंग्रेजी रूपान्तर Communication है। आज संचार के बहुत से साधन हैं। एक समय संचार के साधन बोलना (Speech) लिखना (Writing) थे यह शब्द भी पुराने हैं। अतः डिक्शनरी में इसका अर्थ यही मिलता है कि अपने विचारों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान बोलकर या लिखकर करना। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Communicate शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है To give information, make common अर्थात् अपनी भावनाओं, विचारों तथा उपलब्ध जानकारियों को सर्वमान्य (सबके लिये) बनाकर दूसरों में अभिव्यक्त करना और यह क्रिया सम्प्रेषण या संचार (Communication) है। एक अच्छी शिक्षा विधि में संचार का प्रयोग लाभकारी तथा सकारात्मक परिणाम देता है।

परिभाषाएँ – ओ. पी. धामा के अनुसार, “सम्प्रेषण वह क्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने ज्ञान, भावनाओं, विचारों तथा सूचनाओं को आपस में बाँटता है।”

डॉ. रणजीत सिंह के अनुसार, “सरल शब्दों में संचार का अर्थ है प्रेषक तथा प्रेषित एक सन्देश के लिये बंधें हों अर्थात् संचार किन्हीं दो व्यक्तियों के मध्य संदेश के सम्प्रेषण (आदान- प्रदान) की प्रक्रिया है।”

डॉ. आर. पी. तिवारी के अनुसार, “संचार जीवन की गतिविधि है और इस गतिविधि के कारण यह जीवन से जटिलता से जुड़ा है। जीवन संचार के बिना अकल्पनीय है इसी कारण कहा जाता है कि संचार जीवन के साथ प्रारम्भ होता है इसका अन्त भी जीवन के साथ ही होता है। अन्य शब्दों में संचार जीवन का संलग्नक है।”

डॉ. एस. सी. दुबे – “संचार समाजीकरण का मुख्य माध्यम है। संचार द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है। संचार की विभिन्न विधाओं के बिना सामाजिक निरन्तरता बनाये रखने की कठिनाइयों का अनुमान सहज ही किया जा सकता है। समाजीकरण की प्रत्येक स्थिति और इसका हर रूप संचार पर आश्रित होता है। मनुष्य जैविकीय
प्राणी से सामाजिक प्राणी तब बनता है जब वह संचार द्वारा सांस्कृतिक अभिवृत्तियों, मूल्यों और व्यवहार के प्रकारों को आत्मसात कर लेता है।”

विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ यही प्रमाणित करती हैं कि संचार एक वह क्रिया है जिसके द्वारा व्यक्तियों के बीच उनके ज्ञान, विचार, भावनाओं तथा जानकारियों का प्रभावकारी आदान- प्रदान होता है। यह एक आपसी सहमति से होने वाली साझेदारी है। यह साझेदारी दोनों पक्षों के बीच (जानकारी लेने वाले तथा जानकारी देने वाले) बनी रहे इसके लिये यह अत्यनत आवश्यक है कि जो भी संवाद हों वे अर्थपूर्ण हों निरर्थक न हों तथा प्रभावशाली हों। क्योंकि यदि संवादों का अर्थ नहीं होगा तो वे दूसरे पक्ष के लिये किसी लाभ के नहीं होंगे। संचार तभी सफल कहलाता – है जब सन्देश देने वाले के भावों को ग्रहण करने वाला उसी अर्थ में ग्रहण करे जो देने वाले का मनोरथ था अन्यथा संचार सफल नही हो पाता है। सूचनाएँ देने तथा ग्रहण करने की यह प्रक्रिया दोनों पक्षों या व्यक्तियों को एक-दूसरे के नजदीक लाती है और उन्हें आपस में एक-दूसरे को समझने में मदद करती है। संवाद जो संचार द्वारा प्रेषित किये जाते हैं विधि कोई भी हो वह संवाद तथा संचार तभी सफल होता है जब मनुष्य के आपसी सम्बन्धों तथा मूल्यों को सुरक्षा प्रदान करें क्योंकि संचार प्रक्रिया जीवन की प्रथम सांस से अन्तिम सांस तक चलने वाली प्रक्रिया है।

सम्प्रेषण वह माध्यम है, वह हथियार है जो मानवीय मूल्यों तथा सम्बन्धों को केवल सुरक्षा ही प्रदान नहीं करती सुरक्षा के साथ-साथ मानवीय सम्बन्ध तथा मूल्य स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संचार हमारे कुशल नागरिक बनने में सहायक हैं। यह समाजीकरण का प्रमुख साधन माना गया है। मनुष्य की भावनाओं को अभिव्यक्त करने के साधन ही संचार साधन हैं। समय के साथ- साथ इसके रूप बदलते गये। संचार माध्यम केवल विचार अभिव्यक्ति के साधन मात्र नही हैं ये हमारी संस्कृति, रीतिरिवाजों को सहेज कर रखते हैं। ये साधन हमारे अस्तित्व को सुरक्षित रखते हैं इसलिये संचार को जीवन माना गया है। उसके बिना जीवन की कल्पना भी फीकी तथा निरर्थक है।

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