राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024|National Education Policy 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024|National Education Policy 2024

“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।”

उपयुक्त पंक्तियां दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की हैं, जिन्होंने अफ्रीका की रंगभेद नीति को समाहप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संघर्ष को व्यापक रूप प्रदान करने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

भारतीय संदर्भ में भी शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया जा रहा है, जहां स्वतंत्रता आंदोलन को प्रभावी व व्यापक बनाने में भारत के बौद्धिक वर्ग का महवपूर्ण स्थान रहा है, जिसमें महात्मा गांधी, भगत सिंह, सरदान वल्लभभाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रमुख हैं। वहीं आधुनिक समय में भी शिक्षा की अपनी अलग महत्ता है क्योंकि यह सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक व राजनीतिक पूंजी को समृद्धि प्रदान करती है।

शिक्षा के महत्व को सम्झते हुए हुए स्वतंत्रता पश्चात से ही शिक्षा के प्रसार हेतु कार्य किया जा रहा है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सर्वप्रथम वर्ष 1968 में प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गई जिसका उद्देश्य देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था। बाद में सभी नागरिकों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं प्रदान करना था। बाद के वर्षों में समय की आवश्यकतानुसार इसकी समीक्षा की जाती रही है।

शिक्षा एक राष्ट्रीय लक्ष्य है। यह एक ऐसा उत्प्रेरक साधन है, जिससे देश का भविष्य यपांतरित हो सकता है। भारत की 1.2 अरब जनसंख्या लगभग आधा 26 वर्ष से कम है और यह संभावना है कि 2026 तक 29 वर्ष की औसत आयु के साथ यह दुनिया का सबसे युवा देश होगा। इस जनसांख्यिकी का लाभ उठाने तथा लोगों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान संबंधी बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लिए भारत सरकार ने एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस नीति का उद्देश्य छात्रों को जरूरी कौशलों एवं ज्ञान से लैंस करना और विज्ञान, प्रौद्योगिकी अकादमिक क्षेत्र एवं इंडस्ट्री में लोोगों की कमी को दूर करते हुए देश को नॉलेज सुपरपावर के रूप में स्थापित करना होगा। उल्लेखनीय है कि देश की विशाल युवा आबादी की समकालीन एवं भविष्य की आवश्यताओं को पूरा करने के लिए वर्तमान में प्रचलित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 (वर्ष 1992 में संशोधित) में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।

शिक्षा के महत्व को देखते हुए हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा, इसे ‘समवर्ती सूची’ में शामिल किया गया है ताकि स्थानीय व राष्ट्रीय आवश्यकताओं को देखते हुए शिक्षा नीति में प्रासंगिक परिवर्तन समय-समय पर किए जा सके। राज्य सरकारें जहां राज्य स्तर पर स्थानीय भाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने में महत्वूपर्ण भूमिका निभा रही है और देश के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित हो रही है, वहीं केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर संवाद, कौशल व नवाचार की दिशा में कार्य कर रही है। शिक्षा के महत्व को देखते हुए इसे संविधान के भाग-3 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा अनुच्छेद 21A को जोड़ा गया अथर्थात, शिक्षा को प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार बनाया गया। इस अनुच्छेद के तहत छः से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया। अनुच्छेद-21A का अनुसरण करते हुए बच्चों को मुफत और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 अधिनियमित किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024|National Education Policy 2024

31 मई, 2019 को डॉ. के. कस्तुरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 के मसौदे को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और मानव संसाधन राज्य मंत्री संजय शामराव धोत्रे के समक्ष प्रस्तुत किया। यह मसौदा अभिगम्यता, निष्पक्षत, गुणवत्त, वहनयोग्यता और जवाबदेही की आधारभूत संरचना पर निर्मित है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 एक भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली की कल्पना करती है, जो सभी को उच्च च्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करके, देश को एक न्यायसंगत और जीवंत समाज में लगातार बदलने में में योगदान देती है।

इसकी मुख्य सिफारिशें-

वर्ष 2025 तक 3-6 वर्ष आयु के प्रत्येक बच्चे के लिए मुफ्त, सुरक्षित उच्च गुणवत्तापूर्ण, विकासात्मक स्तर के अनुरूप देखभाल और शिक्षा की पहुँच को सुनिश्चित करना। वर्ष 2025 तक पांचवीं कक्षा एवं उससे ऊपर के सभी विद्यार्थी बुनियादी साक्षरता एवं संख्याज्ञान अर्जित कर सकें। वर्ष 2030 तक 3-18 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य गुणवत्तपूर्ण स्कूली शिक्षा की पहुंच एवं भागीदारी सुनिश्चित करना। वर्ष 2022 तक शिक्षाक्रम और शिक्षाशास्त्र में आमूल-चूल परिवर्तन करना, ताकि रटने के प्रचलन को खत्म किया जा सके। स्कूली शिक्षा के सभी स्तर के सभी विद्यार्थियों का शिक्षण उत्साहित, प्रेरित, उच्च योग्यता वाले, प्रशिक्षित और निपुण शिक्षकों द्वारा हो। एक समतामूलक और समावेशी व्यस्था स्थापित करना, जिससे सभी बच्चों को सीखने और सफल होने के समान अवसर उपलब्ध हों और परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक सभी लैंगिक और सामाजिक वर्गों की शिक्षा में भागीदारी और सीखने के प्रतिफल के सतर पर समानता सुनिश्चित हो। उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार करके देशभर में बहुअनुशासनात्मक उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित करना और वर्ष 2045 तक सफल अनुपात (Gross Enrollment Ratio GER) को कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाना। बच्चों कके एक ज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के चरणों के आधार पर एक 5+3+3+4 रूपी पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचनाः मूलभूत चरण (आयु 3-18 वर्ष), 3 वर्ष का पूर्व-प्राथमिक + ग्रेड 1-24, प्रारंभिक चरण (8-11 वर्ष) ग्रेड 3-5, मध्य चरण (11-14 वर्ष) ग्रेड 6-8 और माध्यमिक चरण (14-18 वर्ष) ग्रेड 9- 12 तक।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024

शिक्षकों हेतु न्यूनतम डिग्री अर्हता 4 वर्षीय एकीकृत चरण वाले विशिष्ट बी.एड. कार्यक्रम के रूप में निर्धारित होंगी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तीन प्रकार के उच्च शिक्षण संस्थानों के पुनर्गठन की योजना भी प्रस्तावित है-

टाइप 1 – विश्वस्तरीय अनुसंधान और उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण पर केंद्रित संस्थान।

टाइप 2- अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के साथ ही विषयों में उत्त्व गुणवत्ता वाले शिक्षण पर केंद्रित संस्थान।

टाइप 3- पूर्वस्नातक शिक्षा (Undergraduate education) पर केंद्रित उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण हेतु समर्पित संस्थान।

यह कार्यक्रम दो मिशनों द्वारा संचालित होगा-मिशन नालंदा और मिशन तक्षशिला 3- 4 साल की अवधि के अंडरगेजुएट प्रोग्राम (जैसे-बीएससी, बीए, बीकॉम और बीवीओसी) की पुनःसंरचना होगी और इसमें कई प्रवेश और निर्गम के विकल्प उपलब्ध होंगे। केंद्र और राज्यों के बीच प्रयासों के समन्वय के लिए एक नए शीर्ष निकाय ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ की स्थापना का प्रस्ताव दिया गया है। उच्च शिक्षा में अनुसंधान क्षमता निर्मित करने के लिए तथा एक मजबूत अनुसंधान संस्कृति के सृजन हेतु एक सर्वोच्च निकाय ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ के निमार्ण की योजना प्रस्तावित है। व्यावसायिक शिक्षा सहित सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एकमात्र नियामक ‘राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण’ होगा। भारतीय और शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने तथा पाली, फारसी और प्राकृत (Prakrit) के लिए तीन नए राष्ट्रीय संस्थानों और एक ‘भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान’ (IITI: Indian Institute of Translation & Interpretation) की स्थापना की सिफारिश की गई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024|National Education Policy 2024

3 जून, 2019 को नई शिक्षा के नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर उठे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने नई शिक्षा निति का संशोधित मसौदा जारी किया। इसमें गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य करने के विवादित प्रावधान को हटा दिया गया है। तमिलनाडु में द्रमुक और अन्य जबरदस्त विरोध किया था और आरोप लगाया था कि यह गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी भाषा थोपने जैसा है। वर्ष 1968 से तमिलनाडु राज्य में तमिल और अंग्रेजी का द्विभाषी फॉर्मूला चल रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, यह मसौदा रिपोर्ट है न कि अभी कोई नीति। इससे जुड़े सभी पक्षकारों की राय मांगी गई है। आम जनता की राय तथा राज्य सरकारों से परामर्श के पश्चात ही केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम रूप दिया जाएगा।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि शिक्षा के महत्व को समझते हुए इसे समय-समय पर प्रासंगिक बनाने के कार्य किए जाते रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी विकास, अंतरिक्ष में पहुंच, बेहतर स्वास्थ सुविधाएं, समावेश विकास आदि सभी में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। इस संबंध में अमेरिकी शिक्षक होरेसन मैन (Horace Man) की ये पंक्ति काफी महत्वपूर्ण है- “बिना शिक्षा प्राप्त किए कोई व्यक्ति अपनी परम ऊंचाइयों को नहीं छू सकता।”

उम्मीद है कि देश का भविष्य सुरक्षित होगा। प्रत्येक छात्र को समान अवसर प्राप्त होंगे एवं उनके लिए समान शिक्षा व्यवस्था होगी जिससे कि देश उतरोत्तर ज्ञान के क्षेत्र में दुनिया को प्रकाशित करेगा।

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