पाठ्यक्रम का सामाजिक आधार: Impact of Modern Societal Issues

पाठ्यक्रम का सामाजिक आधार: Impact of Modern Societal Issues

पाठ्यक्रम के सामाजिक आधार का वर्णन कीजिए। वर्तमान समाज की समस्याओं का पाठ्यक्रम पर क्या प्रभाव पड़ा है?

सामाजिक आधार एवं पाठ्यक्रम (Sociological Basis and Curriculum)- वर्तमान समय में लोकतंत्रीय प्रणाली का प्रचलन होने से पाठ्यचर्या में सामाजिक आधार पर बहुत बल दिया जाता है। अब पाठ्यचर्या में उन विषयों एवं क्रियाओं को स्थान देने की बात कही जाती है जो छात्र में सामाजिकता की भावना का विकास करें। इस दृष्टि से पाठ्यचर्या में भाषा, इतिहास, साहित्य, समाजशास्त्र, भूगोल व नीतिशास्त्र को स्थान दिया जाता हैं सामाजिक आधार पर संगठित पाठ्यचर्या मुख्य रूप से सामाजिकता की भावना पर आधारित होती है। सामाजिक आधार पर पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नवत् हो सकता है-

(1) समाज में व्याप्त विभिन्नताओं के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा-शक्ति के आधार पर आवश्यकताओं की पूर्ति शिक्षा के माध्यम से करता है। अतः पाठ्यचर्या इस प्रकार निर्मित की जानी चाहिए जो बदलते समय की परिस्थितियों के अनुरूप समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सहायक हो।

(2) विद्यालयी विषयों के अन्तर्गत सभ्यता व संस्कृति के विकास को शामिल किया जाये।

(3) विद्यालयी विषयों के अन्तर्गत सामाजिकता की भावना को विकसित करने वाले तथ्यों को शामिल करके छात्रों में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण का प्रयास किया जाये।

(4) समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के आधार पर पाठ्यचर्या के स्वरूप में भी परिवर्तन होना चाहिए।

(5) पाठ्यचर्या को इस प्रकार निर्मित किया जाना चाहिए कि जिसके आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्नताओं को समाप्त करके समानता की भावना को विकसित किया जा सके। अतः पाठ्यचर्या में ऐसे विषय शामिल किये जा सकते हैं जो छात्रों को एक-दूसरे के साथ जोड़ कर रखते हैं।

(6) पाठ्यचर्या सामाजिक सुधारों पर आधारित हो ताकि समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया जा सके।

(7) पाठ्यचर्या को सामाजिक आधार के अन्तर्गत नैतिक मूल्यों के आधार अथवा विकास पर निर्मित किया जाना चाहिए।

वर्तमान समाज की समस्याओं का पाठ्यक्रम पर प्रभाव व परिणाम (Effect of Problems of Society on the Curriculum) – पाठ्यक्रम के सामाजिक आधारों एवं वर्तमान समाज की समस्याओं के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम नियोजकों को इन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षा, समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। इसके लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण आवश्यक है। शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण साधन है किन्तु सामाजिक परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली आवश्यकताओं एवं समस्याओं से शिक्षा भी प्रभावित होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तथा समस्याओं के समाधान का उपाय ढूँढ़ने के लिए शिक्षा को अपने उद्देश्यों एवं पाठ्यक्रम में समय-समय पर परिवर्तन करना
पड़ता है। भारतीय समाज की वर्तमान प्रवृत्तियों के प्रभाव के कारण पाठ्यक्रम में जिन परिवर्तनों की नितान्त आवश्यकता है, उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-

वर्तमान समाज की समस्याओं का पाठ्यक्रम पर प्रभाव व परिणाम (Effect of Problems of Society on the Curriculum) -

1. शैक्षिक उद्देश्यों का पुनर्निर्धारण।

2. पाठ्यक्रम की अन्तर्वस्तु एवं अधिगम-अनुभवों का नवीन ढंग से चयन तथा परम्परागत पाठ्यक्रम में संशोधन एवं परिवर्धन ।

3. विद्यालय-व्यवस्था में परिवर्तन।

4. पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन पर अधिक बल देने की आवश्यकता।

5. नवीन शिक्षण-विधियों एवं सहायक सामग्री की खोज करना।

6. नवीन शैक्षिक तकनीकी का अधिकाधिक प्रयोग।

7. विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल।

8. अवकाश के सदुपयोग हेतु उपयुक्त संसाधनों का विकास।

9. परम्परागत पारिवारिक दायित्वों को संभालने के लिए नवीन संस्थाओं के विकास की व्यवस्था।

10. व्यावसायपरक शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता।

11. नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देने की आवश्यकता।

12. राष्ट्रीय एकता के विकास हेतु पाठ्यक्रम में समुचित संशोधन की आवश्यकता।

13. नागरिकता एवं प्रजाजान्त्रिक मूल्यों की शिक्षा की उपयुक्त व्यवस्था।

14. अन्तर्राष्ट्रीय-सद्भाव के विकास की आवश्यकता।

15. जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम में अधिक-से-अधिक समावेश।

16. कृषि शिक्षा को अधुनातन रूप प्रदान करना।

पाठ्यक्रम निर्धारक के आर्थिक आधार की विस्तृत विवेचना कीजिए।

आर्थिक आधार (Economical Basis)- आर्थिक विचार पाठ्यक्रम निर्माण एवं उसके निर्धारण का महत्वपूर्ण आधार है। किसी भी पाठ्यक्रम के क्रियान्वयन का आधार आर्थिक ही होता है। यह क्रियान्वयन हेतु भौतिक सुविधाएँ, शैक्षिक सामग्री का विकास तथा प्रशिक्षित अध्यापकों की भर्ती के प्रावधान समेत अनेक कार्यवाहियों की आवश्यकता होती है। इन सब प्रावधानों पर आवर्ती (Recurring) व्यय होता है। यह व्यय सरकार और सुमदाय तथा अन्य संस्थाओं द्वारा वहन किया जाता है। नियोजन सदैव अधिगम अवसर प्रदान करने की लागत के विषय में निर्णय लेते हैं। शैक्षिक अवसर प्रदान करने की वैकल्पिक पद्धतियों की लागत भिन्न- भिन्न होती है। पाठ्यचर्या आयोजन को यह सुनिश्चित करना होता है कि क्या विद्यालय के आसपास का समुदाय प्रस्तावित पाठ्यचर्या के व्यय को वहन कर पायेगा। सरकार द्वारा शिक्षा के सभी स्तरों पर वित्तीय संसाधन जुटाने पर भी स्थानीय समुदाय को शिक्षा सम्बन्धी व्यय का कुछ भाग जुटाना पड़ता है। समुदाय के लोग ही अपने बच्च्चों को स्कूल भेजेंगे। यदि समाज की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वह शिक्षा की लागत वहन कर सके तो समाज अपने सदस्यों की सेवा करने की स्थिति में नहीं होगा।

अतः पाठ्यचर्या की योजना बनाते समय चार प्रकार की लागत का ध्यान रखना चाहिए। इनमें आरम्भिक लागत, रख-रखाव की लागत, पूरक लागत तथा कार्मिक लागत शामिल है। उदाहरण के लिए यदि व्यावसायिक पाठ्यचर्या में टंकण (टाइपिंग) का प्रस्ताव किया जाता है तो इसमें टाइपिंग मशीनें खरीदने की आरम्भिक लागत, मशीनों को चालू स्थिति में रखने का अनुरक्षण व्यय अर्थात् रख-रखाव की लागत, कागज, कार्बन, रिबन आदि जैसी पूरक सामग्री की लागत तथा टंकण (टाइपिंग) में दक्ष किसी प्रशिक्षित अध्यापक को काम पर रखने की लागत शामिल होगी। इसके साथ ही पाठ्यचर्या के निर्माण/विकास हेतु आर्थिक आधार आर्थिक आवश्यकताओं

पर भी आधारित होते हैं।
आज प्रत्येक राष्ट्र अपने आपको विकसित देशों की पंक्ति में खड़ा करना चाहता है। इसके लिए प्रत्येक राष्ट्र को आर्थिक रूप से मजबूत होने की आवश्यकता है जिसके लिए आर्थिक विकास आवश्यक है। अतः आर्थिक विकास से अभिप्राय है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था में सभी लोगों को समान रूप से आजीविका के साधन उपलब्ध हों और उनका जीवन स्तर उच्च ‘ हो। इस आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए चूँकि शिक्षा एक माध्यम का कार्य करती है। अतः पाठ्यचर्या भी आर्थिक आवश्यकताओं पर आधारित होनी चाहिए जिसके आधार पर पूरी शिक्षा प्रणाली को प्रभावी व आर्थिक व्यवस्था के अनुकूल बनाया जा सके। इस सन्दर्भ में पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा का व्यावसायीकरण आवश्यक है अर्थात् व्यावसायिक पाठ्यचर्या को स्थान मिलना चाहिए। इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान दिया जाए-

(1) व्यावसायिक शिक्षा पर राज्य विभागों द्वारा अलग-अलग राज्यों में 8+ के विद्यार्थियों के लिए प्रयोगात्मक विधियों द्वारा छोटे-छोटे स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्धन किया जाए।

(2) तकनीकी संस्थाओं से जुड़े विद्यालयों के भीतर विभिन्न वषयों के आधार पर पाठ्यचर्या के अन्तर्गत डिप्लोमा तथा एडवान्स डिप्लोमा को लागू किया जाना चाहिए ताकि शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को तकनीकी ज्ञान प्रदान करने योग्य बनाया जा सके।

(3) व्यावसायिक शिक्षा पर आधारित पाठ्यचर्या के अन्तर्गत लड़कियों के लिए गृह पर आधारित पाठ्यचर्या पर शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

(4) प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर पाठ्यचर्या के भीतर कॉमर्शियल कोर्सों को शामिल किया जाए जिसके आधार पर छात्रों को औद्योगिक प्रणाली का ज्ञान प्रदान किया जा सके एवं जिसके आधार पर वह आर्थिक विकास से सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त कर सके।

(5) पाठ्यचर्या के अन्तर्गत विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। वे व्यवसाय व्यक्ति व समुदाय की आवश्यकता व माँगों के अनुसार होने चाहिए।

पाठ्यक्रम विकास के निर्धारक के रूप में पर्यावरणीय आधार पर एक निबन्ध लिखिए।

पर्यावरण आधार (Environmental Basis) – पाठ्यक्रम निर्धारकों में पर्यावरणीय आधार का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका दृष्टिकोण व्यापक होता है। क्योंकि यह परिवेश में सम्मिलित सभी तथ्यों को समाहित कर विश्लेषण करता है। किसी परिवेश में व्यक्ति, संस्था या समुदाय के आसपास की भौतिक और सामाजिक स्थितियाँ शामिल होती हैं। पर्यावरण प्राकृतिक भी होता है और मानव निर्मित भी मानव जाति का अस्तित्व और निरन्तर विकास प्राकृतिक संसाधनों और परिवेश के विवेकपूर्ण व नियोजित विकास एवं प्रयोग पर निर्भर करता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति से हमें परिवेश पर नियन्त्रण रखने और विकास के अभूतपूर्व स्तरों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। औद्योगीकरण संचार क्रान्ति, शहरीकरण आदि ने मानव जाति के लिए असंख्य चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। संचार प्रौद्योगिकी में क्रान्ति ने विश्व समुदाय को एक विश्व ग्राम में बदल दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने स्वास्थ्य और सफाई की स्थितियों पर गहरा प्रभाव डाला है और ये अनेक जानलेवा बीमारियों पर काबू पाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। तथापि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति और इसके फलस्वरूप समाज पर उनके प्रभाव से गम्भीर परिवेशात्मक अपकर्ष प्राकृतिक संसाधनों की निःशेषता, गन्दी बस्तियों का विस्तार, नई बीमारियों का जन्म, सशस्त्र संघर्षों में राष्ट्रों द्वारा नई प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग आदि को बढ़ावा मिला है। अपनी पाठ्यचर्या के माध्यम से शिक्षा प्रणाली को मानव जाति की उपलब्धियों से छात्र को अवगत कराना चाहिए।

चुनौतियों का सामना – इसी के साथ छात्र को उन चुनौतियों से भी पूर्णतया अवगत कराया जाए जिनका सामना उसे द्रुतगति के विकास के चलते करना पड़ता है। पाठ्यचर्या आयोजकों को उन तरीकों व उपायों पर भी विचार करना चाहिए ताकि छात्र को उपर्युक्त ज्ञान व कौशल सिखाया जा सके और संसाधनों के परिवेश को प्रयोग में लाया जा सके।
देश को अनेक अपूर्व चुनौतियों का सामना करना है। उनमें से एक उदारीकरण की परिस्थितियों, निजीकरण और भूमण्डलीकरण के वे प्रभाव हैं जिनका आज दुनिया के अनेक हिस्सों पर प्रभाव पड़ रहा है। भूमण्डलीकरण किसी भी तरह से शिक्षा का सम्पूर्ण कायाकल्प नहीं कर सकता। इसलिए शिक्षा को अपने पारम्परिक बुनियादी लक्ष्यों को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर भूमण्डलीकरण द्वारा लोगों के लिए ज्ञानयुक्त समाज में अधिक स्वायत्तता लाई जा सकती है जिसका मतलब यह है कि पाठ्यचर्या द्वारा विद्यालयों को अपने छात्रों में ऐसी क्षमता पैदा करनी होगी कि वे उपयुक्त ज्ञान अर्जित करें और नवीन मूल्यों को अपनाकर उसकी व्याख्या करें जो आगे चलकर उन्हें अपने विकासोन्मुखी पर्यावरण और परिवेश के साथ अद्यतन बने रहने की गारण्टी देगा।

इसी प्रकार सूचना व संचार प्रौद्योगिकी की चुनौतियों का सामाना भी पाठ्यचर्या के माध्यम से करना होगा। नई प्रौद्योगिकी में इतनी क्षमता है कि वह शिक्षा में क्रान्ति ला सकती है। यह उम्मीद की जाती है कि इससे औपचारिक शिक्षा और औपचारिक विद्यालय व्यवस्था का एकाधिकार इन संस्थाओं से बाहर प्राप्त किए गए ज्ञान और अनुभव के द्वारा समाप्त हो जाएगा। शिक्षक एक प्रोत्साहनदाता बन जाएगा और पुस्तकालयों का अधिक से अधिक उपयोग किया जायेगा। इस प्रकार सूचना व संचार प्रौद्योगिकी वर्तमान शैक्षिक ढाँचे का कायाकल्प करेगी, वर्तमान पाठ्यचर्या को बदलेगी व नवीन शिक्षण सामग्रियों का विकास करेगी। अतः दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक पर्यावरण के आकार का विस्तार करते हुए शैक्षिक योजनाओं को इस प्रकार अद्यतन बनाना होगा कि कम्प्यूटर का अध्ययन पाठ्यचर्या का अभिन्न अंग बने। वह केवल पाठ्यचर्या में समेकित ही नहीं किया जाय बल्कि विद्यालयी प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन जाए।

अतः पाठ्यक्रम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य छात्रों में परिवेश, मानव कल्याण तथा निजी नैतिकता का विकास करना है। विज्ञानों, सामाजिक विज्ञानों तथा भाषा सम्बन्धी पाठ्यचर्या छात्रों में परिवेश और मानव जाति, राष्ट्रों, समुदायों तथा व्यक्तियों के शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति प्रभावशाली अभिकृति जाग्रत कर सकती है। पाठ्यचर्या तैयार करते समय पाठ्यचर्या आयोजक को इन उभरती हुई आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हैं।

शिक्षणशास्त्रीय आधार का वर्णन कीजिए। एक लोकतांत्रिक समाज में शैक्षिक उद्देश्यों से संबंधित पाठ्यक्रम की विवेचना कीजिए।

शिक्षणशास्त्रीय आधार (Pedagogical Basis) – अध्यापन की प्रक्रिया शिक्षक द्वारा संपन्न की जाती है। प्रत्येक अध्यापक किसी न किसी पाठ्यक्रम को सम्पादित करता है। शिक्षक शिक्षणशास्त्रीय प्रणाली का अभिन्न अंग होता है। पाठ्यचर्या में शामिल होता है। अतः पाठ्यचर्या नियोजित करते समय नियोजक को अध्यापन के शिक्षणशास्त्रीय सिद्धान्तों का भी ध्यान रखना चाहिए। प्रत्येक पाठ्यचर्या के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण तथा अनुभव से युक्त शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो पाठ्यचर्या का सफलतापूर्वक संचालन कर सकें और छात्रों को पाठ्यचर्या के उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता दे सकें। पाठ्यचर्या में शामिल विषयवस्तु और कार्यकलाप का प्रकार व स्तर इससे निर्धारित होगा कि शिक्षक में किस प्रकार की शिक्षणशास्त्रीय क्षमता (Pedagogical skill) है- उनके शैक्षिक स्तर तथा उनसे अपेक्षित शिक्षण व्यवहार किस प्रकार सम्भव है। इसी प्रकार, क्या वांछित प्रकार के शिक्षक तुरन्त उपलब्ध हैं या उन्हें तैयार करना होगा अथवा कार्यरत शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण देना होगा। ये सभी बातें पाठ्यचर्या के शिक्षणशास्त्रीय आधार के अन्तर्गत आती हैं। इसके अतिरिक्त हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि क्या शिक्षकों की शिक्षणशास्त्रीय दक्षता में वृद्धि हेतु पाठ्यचर्या सम्पादन की दिशा में सेवा पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता है तथा पाठ्यचर्या संचालन में समर्थ बनाने के लिए उन्हें किस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाए और इसके लिए कितना समय संचालन में समर्थ बनाने के लिए उन्हें किस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाए और इसके लिए कितना समय लगेगा। अतः पाठ्यचर्या नियोजन में, योग्य तथा सक्षम अध्यापक, उनकी शिक्षण क्षमता एक मूल कारक है जिस पर विचार करना आवश्यक है। अतः शिक्षणशास्त्रीय आधार को भी पाठ्यचर्या
नियोजकों द्वारा यथोचित महत्व दिया जाना चाहिए।

लोकतांत्रिक समाज में शैक्षिक उद्देश्यों से सम्बन्धित पाठ्यक्रम – शिक्षा-संस्थाओं का वातावरण बालक के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोकतान्त्रिक समाज के पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को सम्मिलित किया जाना चाहिये जिससे जनता की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हो सके। लोकतान्त्रिक समाज में शैक्षिक उद्देश्यों से सम्बन्धित पाठ्यक्रम निम्न हैं-

क्रियात्मकता पर बल (Emphasis on Activity) – वर्तमान शिक्षा में सभी स्तरों पर प्रायः सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक बल दिया जाता है, जिससे बालकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन नहीं हो पाता है। क्रिया द्वारा अधिगम अधिक स्थायी होता है तथा व्यवहार भी रूपान्तरित होता है। अतः पाठ्यक्रम में क्रियात्मकता को प्रधानता दी जानी चाहिए। गाँधीजी ने भी बुनियादी शिक्षा में क्रियात्मकता पर ही अधिक बल दिया था।

बहुमुखी पाठ्यक्रम (Diversified Curriculum) – सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते तथा उनमें व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से पाठ्यक्रम बहुमुखी होना चाहिए जिससे विभिन्न रुचियों, क्षमताओं एवं अभिवृत्तियों की पूर्ति की जा सके। इसके लिए पाठ्यक्रम में उन सभी विषयों एवं क्रियाओं का समावेश किया जाना चाहिए जो सभी बालकों को कुशल नागरिक बनाने एवं सफल जीवन बिताने की योग्यता प्रदान कर सकें।

पाठ्यक्रम में लचीलापन (Elasticity in Curriculum) – लोकतान्त्रिक मूल्यों के अनुसार पाठ्यक्रम में लचीलापन होना आवश्यक है। कुछ आधारभूत विषयों को अनिवार्य तथा शेष विषय ऐच्छिक होने चाहिए, जिससे प्रत्येक बालक. अपनी-अपनी रुचि, बुद्धि, योग्यता एवं आवश्यकतानुसार विषयों एवं क्रियाओं को चुन सकें।

सामान्य शिक्षा का अनिवार्य पाठ्यक्रम (Compulsory Curriculum for General Basic Education) – भारतीय संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक के बालको के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान है अर्थात् प्रारम्भिक आठ वर्षीय अनिवार्य सामान्य शिक्षा की व्यवस्था की गई है। सामान्य शिक्षा के इस पाठ्यक्रम में दो भारतीय भाषाएँ, भारतीय संस्कृति एवं इतिहास, विज्ञान, गणित, शारीरिक शिक्षा, शारीरिक श्रम, स्वास्थ्य विज्ञान- धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा तथा समाज सेवा कार्यक्रम अनिवार्य रूप से सम्मिलित किये जाने चाहिये |

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