टीवी और कथासार पर संक्षिप्त लेख लिखिये।Write a short article on TV and story.

टीवी और कथासार पर संक्षिप्त लेख लिखिये।Write a short article on TV and story.

कथासार इसको हॉलीवुड की भाषा ‘स्टोरी आउट लाइन’ कहा जाता है। कथासार में मुख्यतः कहानी की मुख्य मुख्य बातें लिखी जाती हैं। ट्रीटमेण्ट के मुकाबले यह बहुत ही संक्षिप्त होती है। कथाकार मुख्यतः फिल्म-लेखन की शब्दावली है। यह कॉन्सेप्ट नोट से भिन्न होता है। कॉन्सेप्ट नोट में अगर संक्षेप में विचार और उस विचार के उद्देश्य और सार्थकता की चर्चा होती है। लेकिन कथासार में सक्षेप में फिल्म की कहानी लिखी जाती है। फिल्म लेखन के तीन चरण होते हैं- (i) कहानी, (ii) पटकथा, (iii) संवाद तो समझ लीजिए की कथासार पहला चरण होता है। इसी को आधार बनाकर पटकथा लिखी जाती है।

उदाहरण के लिए 1953 में बनी निर्मात-निर्देशक विमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा ‘जमीन’ की कहानी का कथासार प्रस्तुत है :

भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए इस देश का सुख-दुःख उसमें रहने वाले करोड़ों किसानों के सुख-दुःख पर निर्भर करता है।-

दो साल के सूखे के कारण जनता बड़ी बेहाली में दिल काट रही थी। आखिरकार पानी बरसता है सब खुश होकर नाचने-गाने लगते हैं।

शम्भू अपने वृद्ध पिता, अपनी पत्नी पार्वती और पुत्र कन्हैया के साथ रहता है। वे सब भी वर्षा का स्वागत करते हुए नाचने-गाने लगते हैं। परन्तु शम्भू की खुशी क्षणिक साबित होती है। जमींदार फैक्ट्री बनवाने के लिए उसकी दो बीघा जमीन माँगता है। पर चूँकि यह जमीन उसकी जीविका का एकमात्र साधन है, इसलिए शम्भू अपनी पुश्तैनी जमीन देने से इनकार कर देता है।

जमींदार कोर्ट में जाकर जोड़-तोड़ करके यह आदेश हासिल कर लेता है कि या तो शम्भू तीन महीने में जमींदार का कर्ज अदा कर दें या फिर उसकी जमीन जब्त कर ली जाएगी। जमींदार के जमीन हथियाने के प्रयत्नों से शम्भू का यह निश्चय और दृढ़ हो जाता है कि वह जमीन को हाथ से नहीं निकलने देगा। उसके मित्र उसे सलाह देते हैं कि निर्धारित समयावधि में पैसा जुटाने के लिए उसे कलकत्ता जाना चाहिए। जहाँ वह आसानी से इतने पैसे कमा सकता है। शम्भू कलकत्ते को चल पड़ता है। उसका पुत्र भी उसके साथ चल पड़ता है। दोनों गांव के – निवासी शहर में अपने आपको असहज पाते हैं। उनके पास सिर छुपाने के लिए भी जगह नहीं होती है। कन्हैया बीमार पड़ जाता है। यही नहीं उनका सामान भी चोरी हो जाता है।

इन बाधाओं से घबराये बिना शम्भू बस्ती क्षेत्र में रहना शुरू कर देता है। वह बस्ती गरीबों की रिहाइश है। यहाँ वह एक बूढ़े रिक्शा खींचने वाले की मदद करता है जो कि बाद में उसका दोस्त बन जाता है।

टीवी और कथासार पर संक्षिप्त लेख लिखिये।Write a short article on TV and story.

शम्भू को रिक्शा खींचने वाला बन जाता है। बूढ़ा रिक्शावाला उसे इस धन्धे के गुर सिखाता है। शम्भू का पुत्र कन्हैया भी बूट पॉलिश करके थोड़े-बहुत पैसे कमाने लगता है। गाँव में शम्भू की पत्नी पार्वती एक ठेकेदार के यहाँ काम करने लगती है।

ठीक उसी समय जबकि शम्भू को लगता है कि वह अपनी जमीन को बचाने में सफल हो जाएगा, उसके साथ एक दुर्घटना घट जाती है और वह बिस्तर पकड़ लेता है। कन्हैया भी बेकार हो जाता है क्योंकि उसके बूट-पॉलिस के सामान का झोला गुम हो जाता है। जैसे-जैसे मियाद पूरी होती जाती है, शम्भू की चिन्ता बढ़ती जाती है, गम्भीर बीमारी के बावजूद वह काम पर जाना चाहता है। अपने पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिन्तातुरं कन्हैया अपनी माँ को पत्र लिखकर कलकत्ता आने का अनुरोध करता है, ताकि उसकी सहायता से वह अपने पिता को रिक्शा खींचने से रोक सके। परन्तु कलकत्ता पहुँचने पर पार्वती एक शहरी गुण्डे के जाल में फँस जाती है और बचने का प्रयास करते हुए एक गम्भीर दुर्घटना का शिकार हो जाती है। जनता उसे हस्पताल पहुँचाने के लिए शम्भू रिक्शेवाले को आवाज देती है। यह दृश्य देखकर शम्भू को बहुत धक्का पहुँचता है।

उधर कन्हैया बुरी सोहबत में पड़ जाता है। वह आसानी से पैसा कमाने के चक्कर में चोरी करने लगता है। ऐसे में उसका अपनी माँ से एकं नाजुक मोड़ पर मुलाकात होती है और वह चुराए हुए नोटों को फाड़ देता है। शम्भू और कन्हैया द्वारा मेहनत से कमाया गया धन पार्वती के इलाज पर खर्च हो जाता है।

जब वे तीनों अपने गाँव पहुँचते हैं। तब तक उनकी जमीन नीलाम हो चुकी होती है और . उस एक फैक्ट्री बन रही होती है। यह देखकर बूढ़ा पिता पागल हो जाता है। शम्भू अपनी जमीन से एक मुट्ठी धूल उठाता है, परन्तु चौकीदार को उस पर शक हो जाता है और वह उससे उसकी मुट्ठी खाली करवा लेता है। तीनों एक नयी जिन्दगी शुरू करने के लिए कहीं और चल पड़ते हैं।

यह कथासार है विमल रॉय की प्रसद्धि यथार्थवादी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ की। फिल्मों में आमतौर पर यह भी होता है कि कथा साहित्य किसी और की होती है, पटकथा कोई और तैयार करता है और संवाद कोई और लिखता है। जैसे कि अगर हम ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म को ही लें तो पाएँगे कि इस फिल्म के संवाद-लेखक है पॉल महेन्द्र। इसलिए वर्तमान काल में यानी ‘है’ शैली में कहानी लिखी जानी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म एक दृश्य- माध्यम है। इसलिए ऐसी कोई भी बात नहीं लिखनी चाहिए जिसकी आप दृश्यात्मक कल्पना नहीं कर सकते हों।

संचार माध्यम के रूप में रेडियो लेखन की विधि का वर्णन कीजिये।

टेलीविजन में कथासार दूसरे प्रकार से तैयार किया जाता है जैसाकि ऊपर बताया जा चुका है। जितने एपिसोड का प्रस्तावित धारावाहिक है उतने एपिसोड को हर एपिसोड के मुताबिक कथा। उसी तरह ट्रीटमेण्ट नोट का भी महत्त्व टेलीविजन के लिए ज्यादा है।

संचार माध्यम के रूप में रेडियो लेखन की विधि का वर्णन कीजिये।

रेडियो एक दृश्यहीन संचार माध्यम है इसे अन्ध माध्यम (Blind Medium) भी कहा गया है। यह एक ध्वनि आधारित माध्यम है। रेडियो प्रसारण के तीन प्रमुख तत्त्व होते हैं- (1) संवाद, (2) संगीत, (3) ध्वनि।

यह प्रसारक की आवाज पर आधारित माध्यम है। इसमें उद्घोषक की आवाज का संगीत और ध्वनि प्रभावों के साथ मिश्रण किया जाता है। रेडियो प्रसारण में वक्ता और श्रोता के बीच माइक्रोफोन सबंधकर्ता होता है। माइक्रो फोन हाई-फाई (High-Fidility Faith Fulness) यंत्र है, जो हल्की से हल्की साँस, सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि को सरलता से ग्रहण कर लेता है। रेडियो एक अन्तरंगता का माध्यम है. इसमें उद्घोषक को यह महससू करना पड़ता है कि उसका श्रोता उसके ठीक सामने बैठा है। रेडियो एक जनसंचार माध्यम है। इसकी पहुँच देश के जन-जन तके है। इसका प्रस्तोता या उद्घोषक करोड़ों व्यक्तियों से एक साथ संवाद करता है।

रेडियो की कुछ खास-खास विशेषताएँ ऊपर बतायी गयीं। समर्थ एवं व्यावसायिक रेडियो लेखन ही इन सारी विशेषताओं को स्वयं में समेट सकता है। रेडियो लेखन में इसके ऊपर बताये गये तत्वों – शब्दों (आवाज), ध्वनि प्रभाव और संगीत का आश्रय लेना पड़ता है। रेडियो आज सर्वव्यापी माध्यम है। ट्रांजिस्टर के आविष्कार ने तो इसे खेत, खलिहान, दुकान, बाथरूम, रसोई, छत तक पहुँचा दिया है। इसका श्रोता कहीं भी रहकर प्रसारण सुन सकता है। रेडियो एक. सचल संचार माध्यम है। अतः रेडियो लेखक के लिए यह अनिवार्य हैं कि वह प्रारम्भ से अन्त तक अपने आलेख में रोचकता, उत्सुकता, नवीनता, सहज, सरल, सुबोध भाषा के साथ प्रभावकारी वार्तालापशैली अपनाकर चले। रेडियो लेखन एवं तकनीकी लेखन है। इसके लेखन में आलेखक के लिए अधोलिखित तकनीकी आधारों को ध्यान में रखना अनिवार्य हैं-

(1)रेडियो की भाषा, (2) आकर्षक प्रारम्भ, (3) विषय सामग्री की नवीनता, (4) संक्षिप्तता। (1) रेडियोलेखन की भाषा- रेडियो लेखन में सामान्य भाषा से अलग हटकर

श्रव्य भाषा (आडियो लैंग्वेज) अपनाना पड़ता है। चूँकि यह दृश्यहीन माध्यम है, अतः इसकी भाषा ऐसे होनी चाहिए, जो दृश्यहीनता की क्षतिपूर्ति कर सके। इसे श्रोताओं के मस्तिष्क में दृश्यप्रभाव व कल्पना जगाने में सक्षम होनी चाहिए। रेडियो उद्घोषक अपने श्रोता के लिए बोलता है। अतः रेडियो लेखन की भाषा वक्ता-श्रोता संबंध पर आधारित हो। यह पढ़ने की भाषा न होकर सुनने और सुनकर कल्पना जागृत करने वाली भाषा हो। रेडियो लेखन के वाक्यांश मुद्रित माध्यमी लेखन जैसे न हो। रेडियो लेखन की भाषा इस प्रकार की होनी चाहिए

(1) वाक्य सरल व छोटे हों।

(2) शब्द अत्यन्त सरल व प्रचलित भाषा के हों।

(3) आशय की व्यंजना कम से कम शब्दों में हो।

(4) रेडियो पर वाक्य दोहराये नहीं जाते, अतः वाक्य रचनां स्पष्ट होनी चाहिए।

(2) आकर्षक प्रारम्भ- श्रव्य माध्यम होने के कारण रेडियो लेखन की भाषा ऐसी होनी चाहिए, जो अपने श्रोता का ध्यान तुरन्त आकर्षित कर ले। लेखक की भाषा इतनी आकर्षक हो कि वह श्रोता की श्रवणशक्ति पर पूरा अधिकार कर ले। रेडियो प्रसारण का प्रारम्भ आकर्षक न होने पर, श्रोता तुरन्त रेडियो बन्द कर देता है या उसका बैन्ड बदलने लगता है। रेडियो एक अन्तरंग माध्यम है। इसके उद्घोषक को यह महसूस करना होता है कि श्रोता उसके समीप ही बिल्कुल सामने बैठा है। अतः श्रोता को आकर्षित करने के लिए, प्रारम्भ में उसे ऐसी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे उससे श्रोता की अन्तरंगता स्थापित हो जाये। ऐसा करने के लिए उसे सम्बोधन की आकर्षक शब्दावली का प्रयोग करना पड़ता है।

प्रस्थान बिन्दु के आधार पर लघु कथा-लेखन विधि

(3) विषय सामग्री की नवीनता – रेडियो का श्रोता जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है। वह रेडियो का प्रसारण नवीन सूचनाओं से अवगत होने के लिए सुनता है। रेडियो पर दी गयी बासी व पुरानी सूचनाएँ श्रोता को आकर्षित नहीं करतीं। वह तो नये-नये शोधों और तत्काल घटी घटनाओं की नवीन सूचनाओं से अवगत होना चाहता है। अतः रेडियो लेखक को चाहिए कि वह अपने श्रोताओं हेतु सर्वथा नवीन विषय सामग्री जुटाये।

(4) संक्षिप्तता – रेडियो का आलेख अखबार के आलेख जैसा विस्तृत नहीं होना चाहिए। रेडियो प्रसारण की एक निर्धारित समयावधि होती है, उसी में उद्घोषक को अपनी बात कहनी होती है। गीतमालाओं को छोड़कर, श्रोता, रेडियो पर लम्बे कार्यक्रम सुनने का आदी नहीं होता। रेड़ियो आलेख अति संक्षिप्त व कलात्मक होना चाहिए। यह श्रोताओं की श्रवणशक्ति और धैर्य की परीक्षा लेने वाला न हो।
संक्षेप में, रेडियो लेखन की भाषा अत्यन्त सरल, सहजग्राह्य, व आकर्षक होनी चाहिए। रेडियो प्रसारण शिक्षित, अशिक्षित, बाल, वृद्ध सभी सुनते हैं। अतः इसके लेखन की भाषा सर्वजन ग्राह्य होनी चाहिए। इसमें सामान्य जनजीवन की शब्दावली और मुहावरों का प्रयोग बहुतायत से किया जाना चाहिए। इसका प्रारम्भ भाइयों! बहिनों ! प्रिय श्रोताओं आदि संबोधनों से होना चाहिए।

प्रमुख जनसंचार माध्यमों पर टिप्पणी लिखिए।

जनसंचार – जनसंचार का अर्थ होता है विस्तृत आकार के बिखरे हुए समूह तथा संचार माध्यमों द्वारा सन्देश या सूचना पहुँचाना। समूह का निर्धारण समान हितों, मूल्यों तथा सामान्य हितों की पूर्ति के लिए संगठित एवं अन्तः क्रियाओं के आधार पर होता है। अतः जन से समूह भिन्न हैं।

जन संचार का प्रवाह अति व्यापक एवं असीमित होता है। इसका क्षेत्र इतना व्यापक हो गया है कि उसे किसी परिधि में बाँधना बहुत कठिन है। जनसंचार माध्यमों की व्यापकता एवं महत्व को देखते हुए मार्शल मैक्लूहान ने कहा है कि ‘माध्यम ही सन्देश है।’ माध्यम का अर्थ ‘मध्यस्थता करने वाला होता है जो कि दो बिन्दुओं को जोड़ता है। व्यवहारिक दृष्टि से संचार माध्यम एक ऐसा सेतु है जो स्त्रोत से श्रोता के बीच ट्यूब, वायर, प्रवाह इत्यादि द्वारा पहुँचता है।’

इस प्रकार हम देखते हैं कि जनसंचार तकनीकी आधार पर विशाल अथवा व्यापक रूप में लोगों तक सूचना के संग्रह एवं प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। आधुनिक समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति जनसंचार माध्यम-समाचार, पत्र-पत्रिकायें, रेडियो, टेलीविजन एवं फिल्म द्वारा होता है।

जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना है। इतना ही नहीं, जनसंचार के माध्यमों द्वारा जनमत का निर्माण भी सहज संभव होता है।

जनसंचार की विशेषताएँ-

(1) जनसंचार की सबसे प्रमुख विशेषता है कि यह साधारण जनता के लिए होता है अर्थात् यह विशेष वर्ग के लिए नहीं होता।

(2) जनसंचार की दूसरी विशेषता यह है कि यह अपना सन्देश तीव्रतम गति से गंतव्य तक पहुँचाता है। समाचार पत्र, रेडियो तथा टेलीविजन के माध्यम से तीव्रगति से कोई भी सन्देश जन-सामान्य तक पहुँचाया जा सकता है।

(3) जनसंचार का माध्यम लिखित या मौखिक कोई भी हो सकता है। मौखिक में भाषण या वक्तव्य द्वारा लिखित में समाचार पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं।

(4) जनसंचार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकता है। प्रत्यक्ष रूप से जनता के समक्ष खड़े होकर सन्देश दिया जा सकता है। अप्रत्यक्ष रूप से पर्दे के पीछे रहकर जनता को सन्देश दिया जा सकता है।

(5) जनसंचार की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें जन-सामान्य की प्रतिक्रिया का पता चल जाता है।

(6) जनसंचार का प्रभाव गहरा होता है और उसे बदला भी जा सकता है।

जनसंचार के माध्यम – जनसंचार के समस्त माध्यमों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

(1) शब्द संचार माध्यम-प्रेस- इसके अन्तर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ तथा
पुस्तकें आदि आते हैं।

(2) श्रव्य संचार माध्यम- इसके अन्तर्गत रेडियो, कैसेट तथा टेपरिकार्डर आदि आते हैं।

(3) दृश्य संचार माध्यम- इस कोटि के अन्तर्गत दूरदर्शन, वीडियो तथा फिल्म आदि आतें हैं।

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