कौशल विकास योजना – चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development Scheme – Challenges and Format

कौशल विकास योजना – चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development Scheme – Challenges and Format

एक राष्ट्र तभी विकास कर सकता है जब उस राष्ट्र के युवा कुशल हों और उन्हें उनकी कुशलता के अनुरूप रोजगार भी प्राप्त हों। इसी उद्देश्य से कौशल विकास योजना का खाका तैयार किया गया था।

आखिर स्किल इंडिया यानी कौशल विकास है क्या? दरअसल कौशल विकास हुनरमंद और दिमाग को और ज्यादा हुनरमंद और कुशल बनाना है। चूकिं भारत के पास सबसे बड़ी पूंजी अपनी युवा आबादी है, लिहाजा उसके पास इसे सबसे बड़ी पूंजी अपनी बनाने का जरिया कौशल विकास ही हो सकता है। इस सरकार के पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री की अगुवाई में ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कौशल विकास निगम’ बनाए गए। यह बात और है कि पिछली ‘सरकार के बनाए इस ढांचे के तहत जैसा काम चल रहा था, उससे वर्ष 2013-14 में सिर्फ 76.3 लाख लोग ही प्रशिक्षित किए जा सके।

विश्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक भारत में कुशल कारीगरों की कमी है। देश में करीब 30 करोड़ लोग या तो पूरी तरह से या फिर आंशिक रूप से बेरोजगार हैं। देश की काम करने योग्य जनसंख्या 49 करोड़ है। इसमें से सिर्फ 3 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जबकि बाकी 46 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में हैं, जबकि 92 फीसदी नौकरियां असंगठित क्षेत्र में हैं, जबकि 5 प्रतिशत संगठित नौकरियां निजी क्षेत्र में हैं। जाहिर है कि असंगठित क्षेत्र की नौकरियों में न तो निरंतरता की गारंटी और न ही सहूलियतों की। जाहिर है कि भारत के आर्थिक विकास का जो चकमीला चेहरा दिखाया जा रहा है,, वह आंशिक ही है। असंगठित क्षेत्र पर नब्बे फीसदी से ज्यादा आबादी का निर्भर रहना निश्चित तौर पर स्याह चेहरा ही पेश करता है। एक और आंकड़े पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। दरअसल अपने देश की शिक्षा व्यवस्था हर साल करीब एक करोड़ नए युवाओं को काम के मैदान में धकेल देती है, जबकि हकीकत यह है कि उनमें से 80 फीसदी के पास कोई व्यावसायिक योग्यता हुनर नहीं होता। इस लिहाज से देखें तो अगले पांच साल में मौजूदा काम करने वाली आबादी में पांच करोड़ का इजाफा हो जाएगा, जबकि दौरान दुनिया में छह करोड़ श्रमशक्ति की कमी होगी। कहना न होगा कि इसी में कौशल विकास की कामयाबी का सूत्र छिपा हुआ है। यानी यदि भारत अपनी काम करने योग्य आबादी को सही और कुशल व्यावसायिक शिक्षा दे पाता है, तो चीन की तरह उसके पास भी कार्यशील मानव श्रम की अपार पूंजी होगी।

चीन जैसी मानव संसाधन पूंजी को हासिल करने के लिए भारत को भी चीन जैसे ही कदम उठाने होंगे। चीन व्यावसायिक शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का ढाई प्रतिशत खर्च करता है, जबकि भारत में व्यवसायिक शिक्षा यानी कौशल विकास पर सिर्फ 0.1 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण भी मानता है कि भारत में 15 से 29 साल तक के उम्र वाले युवाओं में से सिर्फ दो फीसदी को ही संस्थागत व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल हो पाता है, जबकि आठ फीसदी को गैर-संस्थानिक व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल हो पाता है। जबकि कोरिया में यह आंकड़ा 96 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और ग्रेट ब्रिटेन में 68 फीसदी है। जाहिर है कि इन देशों की विकास की कहानियों में यहां के मानव श्रम को मिलने वाली व्यावसायिक शिक्षा का बड़ा योगदान है।

भारत की विशेष परिस्थितियों के अनुरूप कार्यक्रम नही बनाने से हमारे विकास में जो अस्थिरता आ गई है, उसका कारण है-मानव संसाधन विकास। अपना देश मनुष्यों की बहुतायत वाला देश है, जहां तुलनात्मक रूप से जनसंख्या घनत्व कुछ ज्यादा ही है। नतीजातन, यह प्रति व्यक्ति के आधार पर भूमि आधारित संसाधनों के मामले में भी कम से कम संपन्न देशों में से है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया की आबादी का 17 फीसदी हिस्सा भारत में है, लेकिन इसके पास दुनिया सिर्फ तीन फीसदी कोयला है। तेल और गैस की उपलब्धता के मामले में भी भारत की हालत कुछ खास नहीं है। भारत के पास दुनिया का आधा फीसदी ही तेल और गैस हे। इसलिए सभी प्राथमिकताओं में सबसे ज्यादा जोर मानव संसाधन विकास पर दिया जाना चाहिए।

कौशल विकास योजना - चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development Scheme – Challenges and Format

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्किल इंडिया’ के साथ ‘मेक इन इंडिया’ का भी नारा दिया है। मेक इन इंडिया के पीछे उनकी सोच स्किल इंडिया से निकले लोगों को मेक इन इंडिया में काम दिलाना है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में सिर्फ व्यावसायिक शिक्षा और मेक इन इंडिया के जरिए ही आर्थिक विकास दर हासिल नहीं की जा सकती।

वर्ष 1909 में लिखा गांधी का हिंद स्वराज याद आता है। दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और चौधरी चरण सिंह के भी आर्थिक दर्शन में दरअसल भारतीयता मूलक, ग्राम स्वराज की अवधारणा पर आधारित स्वावलंबी ग्रामीण भारत की कल्पना पर जोर हैं। अगर पांच-दस सदी पहले तक दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 55 से लेकर 28 फीसदी तक थी तो उसके पीछे औद्योगिक उत्पादन की बजाय ग्रामीण स्वावलंबन पर आधारित अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा थी। यूरोप में औद्योगिक क्रांति के वाहक होने के बावजूद जर्मनी और इटली जैसे देशों में लघु और मध्यम स्तर के उद्योग भारी संख्या में हैं। इनके जरिए वहां हुनरमंद हाथों को अपने ही इलाके में काम मिल जाता है और वे अपने उत्पादन के जरिए देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं। चीन ने भी अपने लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों को भी औद्योगिक क्राति में मरने नहीं दिया है। उसने भारत की तरह पापड़ और अचार बनाने वाले स्थानीय विशेषज्ञता वाले उद्योगों के लिए विदेशी पूंजी और श्रम की राह नहीं खोली है, जबकि भारत में ऐसी कोई नीति नहीं है। जिस पारंपरिक भारतीय कौशल के जरिए यहां पापड़, आचार, नमकीन और मिठाइयों की अपनी सुगंध दुनिया भर में फैलती रही है, टसर औश्र दूसरे उद्योग चमकते रहे हैं, उदारीकरण में उस पारंपरिकता को दरकिनार करके उन्हें भी बड़े-बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले कर दिया गया। टमाटर की चटनी से लेकर कोल्ड ड्रिंक तक का उत्पादन अब बहुराष्ट्रीय निगम कर रहे हैं। ऐसी नितियों के चलते पारंपरिक भारतीय कौशल हतोत्साहित हुआ है। शायद यही वजह है कि भारतीय मध्यम और कुटीर उद्योग प्राचीन और मध्यकाल की तरह गौरवपूर्ण नहीं रहे। इसकी वजह से आर्थिक गति भले ही बड़े उद्योगों के जरिए आगे बढ़ी, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रोजगार का संकट बढ़ता गया और स्थानीय उत्पादन घटता चला गया है।

कौशल विकास योजना - चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development

ऐसी हालत में भारत में स्किल इंडिया के साथ-साथ स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा दिया जाना एक बड़ा कदम है। जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तरह पूरे भारत की हालत एक जैसी नहीं है। यहां पहाड़ी इलाकों के लिए स्थानीय उद्यम आधारित कौशल विकास होना चाहिए, तो मैदानी इलाकों के लिए अलग। जरूरत के मुताबिक कौशल विकास और स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने के साथ ही भौगोलिक क्षेत्र की आवश्यकता के मुताबिक कौशल विकास का मॉड्यूल तैयार करने पर जोर होना चाहिए। इस हिंसाब से पहाड़ी इलाकों के लिए वन्य जीवन, जड़ी-बूटी और वानिकी आधारित कौशल विकास होना चाहिए तो मैदानी इलाकों के लिए डेयरी, कृषि उत्पादन, मत्स्य पालन, कताई-बुनाई, खाद्य प्रसंस्करण, बागवानी, भवन निर्माण, पशुपालन, कुक्कुट पालन, फार्मिंग आदि पर जोर होना चाहिए। इसी तरह आदिवासी इलाकों के लिए वनोपज, स्थानीय दस्तकारी आधारित कौशल विकास किया जाना चाहिए। इसके साथ ही औद्योगिक क्षेत्र के लिए मांग आधारित कौशल विकास के साथ ही सेवा क्षेत्र आदि के लिए भी विकसित तौर पर कौशल विकास की सहूलियत होनी चाहिए। मौजूदा आर्थिक उदारीकरण में माना जा रहा है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से आर्थिक विकास दर तेज की जा सकती है, क्योंकि महिलाओं की प्रतिबद्धता और काम के प्रति समर्पण पुरूषों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत जैसे देशों में कुल कार्यशील मानव श्रम पूंजी में महिलाओं की भागीदारी 70 फीसदी तक बढ़ा दी जाए तो आर्थिक विकास दर 4.2 फीसदी तक हासिल की जा सकती है। इस लिहाज से भारत में महिलाओं की भागीदारी कम है। स्थानीय स्तर पर असंगठित क्षेत्रों में उनकी भागीदारी है भी तो अकुशलता ज्यादा है। इस लिहाज से कौशल विकास में महिलाओं को भी जोड़ा जाना चाहिए।

कौशल विकास योजना - चुनौतियां और स्वरूप|Skill Development Scheme – Challenges and Format

नए कंपनी कानूनों के मुताबिक हर निगम और हर बड़ी कंपनी को अपने मुनाफे का दो प्रतिशत निगमित सामाजिक दायित्व यानी ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी यानी सीएसआर के तहत खर्च करना जरूरी हो गया है। ज्यादातर उद्योग इस रकम को सिर्फ दिखावे के लिए उल- जलूल कर्यों में खर्च करते हैं। बेहतर होगा कि कौशल विकास कार्यक्रम में इसे भी जोड़ा जाए और जिन इलाकों में ये उद्योग हों, उन इलाकों में स्थानीय स्तर की जरूरत के मुताबिक स्थानीय समुदाय की श्रमशील मानव पूंजी के कौशल विकास में निवेश करें। लैटिन अमेरिकी देशों ने ‘जोविनेस ‘प्लान’ (स्पेनिश भाषा के शब्द ‘जोविनेस’ का मतलब ‘युवा’ होता है) नाम से व्यापक और बड़ी योजना चलाई। इसके तहत वहां बेरोजगार और पिछड़े युवाओं पर फोकस किया गया और उनके हुनर को और तराशा गया और उनकी कार्यशीलता को बेहतर बनाया गया। इसका असर यह हुआ कि लैटिन अमेरिकी देशों में बेरोजगारी भी घटी और वहां उत्पादन बढ़ा और उसकी गुणवत्ता भी बेहतर रही।

बहरहाल मादी सरकार ने कौशल विकास की तरफ तेजी से कदम बढ़ाया है। उसने सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम यह उठाया कि उसने कौशल विकास के लिए एक ही नोडल मंत्रालय का गठन किया। कैबिनेट सचिवालय के मुताबिक कौशल विकास मंत्रालय को कौशल विकास का एक उपयुक्त फ्रेमवर्क, बनाने, कुशल श्रमशक्ति मांग और पूर्ति के बीच की दूरी को व्यावसायिक शिक्षा तकनीकी प्रशिक्षण, कौशल विकास तथा नए कौशल निर्माण के जरिए कम करने का काम मिला है। इसके साथ ही मौजूदा कौशल विकास मंत्रालय को दिया गया है। इस योजना की सफलता हेतु आईआईटी के साथ तमाम-स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी इस योजना के तहत समन्वय किया गया है। इसके साथ ही एनजीओ सेक्टर और धार्मिक संस्थओं को भी इसके जरिए जोड़ा गया है। नई नीति में कौशल विकास से जुड़े तमाम मुद्दों को गंभीरता से जोड़ा गया है, ताकि देश में हर हाथ को काम देने और उसके जरिए देश के विकास की नई इबारत लिखने की कामयाब कोशिश की जा सके।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस योजना का स्परूप विकसित हो रहा है। चुनौतियां बहुत हैं पर संभावनाएं भी बड़ी हैं। आवश्यकता मात्र इसके कार्यावन्यन और समाज को इससे जोड़ने की है ताकि अन्य योजनाओं की तरह यह भी आरोपित न हो।

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